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महासमर 2024: दिल्ली-NCR में बढ़ रहा है सड़क हादसों में मौत का आंकड़ा, जिंदगी बचाने को हाईवे पर बनाएं ट्रामा सेंटर

दिल्ली-NCR में सड़क हादसों में मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हाईवे और एक्सप्रेसवे के किनारे अत्याधुनिक ट्रामा सेंटर की सुविधा उपलब्ध नहीं है। अगर प्रशासन हाईवे और एक्सप्रेसवे के किनारे ट्रामा सेंटर बनवाए तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। हाईवे और एक्सप्रेसवे पर काफी घायल इलाज शुरू होने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।

By Aditya Raj Edited By: Abhishek Tiwari Published: Sun, 31 Mar 2024 11:50 AM (IST)Updated: Sun, 31 Mar 2024 11:50 AM (IST)
महासमर 2024: दिल्ली-NCR में बढ़ रहा है सड़क हादसों में मौत का आंकड़ा

जागरण संवाददाता, आदित्य राज। जिंदगी अनमोल है। शासन-प्रशासन को यह पता है। यह भी पता है कि हादसे में एक की मौत नहीं होती है बल्कि एक मौत से पूरा परिवार तबाह हो जाता है। साल दर साल मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हादसे के शिकार लोगों को समय पर इलाज न मिलना है।

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हादसा होने के आधे से पौन घंटे के भीतर इलाज शुरू हो जाना चाहिए लेकिन ट्रामा सेंटरों की सुविधा न होने से इलाज शुरू होने में समय लग जाता है। नतीजा यह होता है कि काफी घायल इलाज शुरू होने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।

कब तक सड़कों पर खत्म होती रहेंगी जिंदगियां?

जिंदगी बचानी है तो हाईवे व एक्सप्रेस-वे के किनारे जगह-जगह अत्याधुनिक ट्रामा सेंटर की सुविधा विकसित करनी होगी अन्यथा सड़कों पर जिंदगियां खत्म होती रहेंगी। कहा जाता है कि समय व ईंधन बचाने के लिए हाईवे व एक्सप्रेस-वे पर जोर देना आवश्यक है। जब जिंदगी ही नहीं बचेगी फिर हाईवे व एक्सप्रेस-वे बनाकर क्या करेंगे।

दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे को दुनिया का बेहतर एक्सप्रेस-वे बताया जा रहा है। इस एक्सप्रेस-वे के किनारे भी अत्याधुनिक ट्रामा सेंटर की सुविधा नहीं है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिंदगी बचाने को लेकर शासन-प्रशासन कितना गंभीर है।

हादसों में मौत के आंकड़ा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में हर साल औसतन 1200 लाेगों की मौत होती है। आइटी, आइटी इनेबल्ड, टेलीकाम, आटोमोबाइल एवं गारमेंट सेक्टर में पूरी दुनिया में पहचान बनाने वाले गुरुग्राम में हर साल औसतन 400 लोगों की मौत होती है। प्रस्तुत है गुरुग्राम से मुख्य संवाददाता आदित्य राज की रिपोर्ट-

हाईवे व एक्सप्रेस-वे किनारे आवश्यक है ट्रामा सेंटर

हाईवे व एक्सप्रेस-वे पर वाहनों की रफ्तार काफी अधिक हाेती है। अधिकतर हाईवे पर अधिकतम 120 किलोमीटर प्रति घंटा तक वाहनों की रफ्तार निर्धारित है। अधिकतर वाहनों की लगभग इतनी रफ्तार होती ही है। कुछ वाहनों की रफ्तार 150 से 200 किलाेमीटर प्रति घंटा तक पहुंच जाती है।

खासकर दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे, यमुना एक्सप्रेस-वे, दिल्ली-पानीपत हाईवे, द्वारका एक्सप्रेस-वे पर अधिकतर वाहनों की रफ्तार औसतन 100 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। ऐसे में हादसे होने की आशंका रहती है। जब तक चालक संभलते हैं तब तक हादसा हो जाता है।

वाहनों की रफ्तार अधिक होने की वजह से हादसा होने पर काफी गंभीर चोट लगती है। खासकर सिर में चोट लगने पर तत्काल इलाज की आवश्यकता होती है। यदि ट्रामा सेेंटर नजदीक में हो तो तत्काल इलाज शुरू हो सकता है। इससे अधिकतर लोगों की जिंदगी बच सकती है।

कनेक्टिविटी बेहतर करने के साथ-साथ समय व ईंधन बचाने के लिए हाईवे व एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जा रहा है। मेरा सवाल है कि किसके लिए कनेक्टिविटी बेहतर की जा रही है। कनेक्टिविटी बेहतर करने की चिंता करने से पहले जिंदगी बचाने की चिंता करनी चाहिए। जब तक जिंदगी बचाने की चिंता नहीं की जाएगी तब तक हाईवे व एक्सप्रेस-वे के किनारे ट्रामा सेंटर विकसित करने पर जोर नहीं दिया जाएगा। मानता हूं कि कुछ लोग ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते हैं, इस वजह से हादसे होते हैं। अधिकतर लोग दूसरों की गलती से हादसों के शिकार होते हैं। इंसानियत यही है कि सभी को समय पर इलाज मिलना चाहिए। इलाज तभी मिलेगा जब ट्रामा सेंटर की सुविधा होगी।

-- डॉ. एनके जैन, पूर्व निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं, हरियाणा

15 से 20 किलोमीटर के अंतराल पर होनी चाहिए सुविधा

हाईवे या एक्सप्रेस-वे पर 15 से 20 किलोमीटर के अंतराल पर अत्याधुनिक ट्रामा सेंटर की सुविधा होनी चाहिए। उसमें सर्जिकल, आर्थोपेडिक केयर एवं न्यूरो सर्जरी केयर की बेहतर सुविधा होनी चाहिए। एक एंबुलेंस, एक क्रेन एवं फार्मासिस्ट की सुविधा भी होनी चाहिए।

15 से 20 किलोमीटर के अंतराल पर ट्रामा सेंटर की सुविधा होने पर आधे घंटे के भीतर घायल को पहुंचाया जा सकता है। इससे अधिक समय लगने पर खून काफी बह जाता है। फिर गंभीर रूप से घायल को खासकर जिसे सिर में चोट लगी है, बचाना मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि जिन्हें सिर में चोट लगती है, उनमें से अधिकतर की मौत हो जाती है।

दिल्ली के ट्रामा सेंटरों पर एनसीआर का भी बोझ

  • दिल्ली में अधिकृत ट्रामा सेंटर : 3
  • कुल बेड क्षमता : 446
  • एम्स ट्रामा सेंटर : 264 बेड
  • आरएमएल अस्पताल का ट्रामा सेंटर : 111 बेड
  • सुश्रुत ट्रामा सेंटर : 71 बेड

सफदरजंग अस्पताल में है सबसे बड़ा इमरजेंसी ब्लाक

सफदरजंग अस्पताल में एनसीआर का सबसे बड़ा इमरजेंसी ब्लाक है, जिसकी बेड क्षमता 500 है। हादसा पीड़ितों के लिए भी बेड आरक्षित हैं। एम्स ट्रामा सेंटर के बाद सबसे ज्यादा हादसा पीड़ित सफदरजंग अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती होते हैं।

इन दोनों अस्पतालों में एनसीआर के शहरों हादसा पीड़ित इलाज के लिए पहुंचते हैं। इसे देखते हुए दिल्ली में ट्रामा सेंटरों की संख्या तेजी से बढ़ाने की आवश्यकता है। कुछ जगहों पर निर्माण चल रहा है। बाहरी दिल्ली के संजय गांधी स्मारक अस्पताल में 362 बेड का ट्रामा सेंटर निर्माणाधीन है, जो जल्द शुरू होगा।

बाहरी दिल्ली में ही जीटी करनाल रोड के नजदीक सिरसपुर में 2716 बेड का अस्पताल बनना है। पहले चरण में अगस्त 2020 से 1164 बेड के अस्पताल का निर्माण कार्य चल रहा है।

दूसरे चरण में 1552 बेड के अस्पताल ब्लाक का निर्माण होगा। इसमें ट्रामा सेंटर भी होगा। हादसा पीड़ितों के बेहतर चिकित्सा सुविधा के लिए दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के इलाके में भी अत्याधुनिक ट्रामा सेंटर होना चाहिए।

जिले हर साल औसतन मौत
गुरुग्राम 400
फरीदाबाद 250
रेवाड़ी 100
गौतमबुद्ध नगर 700
गाजियाबाद 200
पलवल 250
नूंह 300
सोनीपत 350

हाईवे व एक्सप्रेस-वे बेहतर से बेहतर बनाने पर जोर दिया जा रहा है। यह अच्छी बात है। देश के विकास के लिए हाईवे व एक्सप्रेस-वे का निर्माण आवश्यक है लेकिन जिसके लिए बना रहे हैं उसकी सुरक्षा की भी चिंता करनी चाहिए। 15 से 20 किलोमीटर के अंतराल पर ट्रामा सेंटर बनाने पर जोर दिया जाए। दुर्भाग्य है कि कभी भी चुनाव में यह मुद्दा होता ही नहीं। जिंदगी कैसे बचे, यह मुद्दा सबसे ऊपर होना चाहिए। एनसीआर में हाईवे का जाल बिछा है। इसे ध्यान में रखकर चारों तरफ ट्रामा सेंटर खोलने पर तत्काल प्रभाव से जोर दिया जाए। कहीं भी अधिकतर अस्पताल जिसमें ट्रामा की सुविधा है, वे सड़क से काफी अंदर हैं। ट्रैफिक का दबाव इतना रहता है कि एंबुलेंस के पहुंचने में भी समय लग जाता है। यही वजह है कि अधिकतर लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती है।

- गजेंद्र त्यागी, प्रबंध निदेशक, क्लासिक सिविल इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड


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