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FD में से 100 करोड़ से ज्यादा खर्च करने का मामला गरमाया, पार्षद बोले- खर्च करें खुद, सुझाव हमसे मांगे

पार्षद रविंद्र यादव ने कहा कि सुझाव देने के लिए पार्षद तैयार हैं लेकिन खर्च करते वक्त भी निगम अधिकारियों को पार्षदों से सलाह लेनी चाहिए। अगर बिना आय के करोड़ों रुपये खर्च किए जाएंगे तो निगम का खजाना खाली हो जाएगा।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 12:42 PM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 12:42 PM (IST)
FD में से 100 करोड़ से ज्यादा खर्च करने का मामला गरमाया, पार्षद बोले- खर्च करें खुद, सुझाव हमसे मांगे
एफडी में से 100 करोड़ से ज्यादा खर्च करने का मामला

गुरुग्राम [संदीप रतन] नगर निगम में इन दिनों उल्टी गंगा बहाई जा रही है। निगम में एफडी (फिक्स्ड डिपाजिट) में से 100 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने का मामला सदन की बैठकों में गरमाने के बाद अब निगम अधिकारियों ने पार्षदों से आय बढ़ाने को लेकर सुझाव मांगे हैं। हालांकि नगर निगम में हिसाब किताब का गणित रखने वाले लेखा व लेखा परीक्षण शाखा के एक्सपर्ट (एकाउंट व आडिट ब्रांच) से लेकर लाखों रुपये के वेतन पर सलाहकार भी नियुक्त हैं। लेकिन पार्षदों द्वारा करोड़ों रुपये की एफडी तोड़ने का मामला सदन की बैठक में उठाने से अब उन्हीं से ही आय बढ़ाने के सुझाव मांगे जा रहे हैं। मेयर व नगर निगम आयुक्त कार्यालय की ओर से पार्षदों को पत्र भेजकर सात दिन में सुझाव भेजने को कहा है।

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बता दें कि दैनिक जागरण के 17 नवंबर के अंक में आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया : एफडी में से खर्च हो गए 100 करोड़ रुपये शीर्षक से खबर प्रकाशित होने के बाद पार्षदों ने इस मुद्दे पर 18 नवंबर को सदन की बैठक में निगम अधिकारियों को घेरा था। 2019 में नगर निगम की कई बैंकों में 1077 करोड़ रुपये की एफडी थी, जो लगभग एक साल में ही घटकर लगभग 950 करोड़ रुपये से भी कम रह गई है। पार्षदों का कहना है कि एफडी में से करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, अगर आय नहीं बढ़ाई गई तो विकास कार्य तो दूर निगम कर्मचारियों व अधिकारियों को वेतन का भी संकट हो जाएगा।

बागवानी, सफाई, मलबे पर करोड़ों रुपये खर्चशहर के पार्कों की स्थिति भले ही न सुधरे, लेकिन इसके लिए 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का टेंडर किया गया है। इसके अलावा सफाई कार्यों व मलबे के उठान पर सालाना 200 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च किए जा रहे हैं। 2008 में नगर निगम का गठन किया गया था। जो पंचायतें नगर निगम में शामिल हुई थीं, उनकी एफडी को नगर निगम के खातों में जमा कर दिया गया था। इस एफडी का लगभग 85 करोड़ रुपये का ब्याज भी हर साल नगर निगम को मिलता है। इसके ब्याज से ही कर्मचारियों के वेतन आदि का भुगतान किया जा सकता है।

पार्षद बोले, एफडी तोड़ते वक्त तो पूछा नहीं

पार्षद आरएस राठी ने बताया कि वित्त एवं संविदा समिति की बैठक में बिना जरूरत के भी हर बार 25 से 30 करोड़ रुपये के एस्टिमेट पास किए जाते हैं। यह बजट का दुरुपयोग है। बिल्डरों से जमीन का सस्ता सौदा करने से निगम को 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसकी रिकवरी होनी चाहिए। एफडी तोड़ते वक्त तो निगम अधिकारियों ने पार्षदों से सुझाव नहीं मांगे थे।

पार्षद रविंद्र यादव ने कहा कि सुझाव देने के लिए पार्षद तैयार हैं, लेकिन खर्च करते वक्त भी निगम अधिकारियों को पार्षदों से सलाह लेनी चाहिए। अगर बिना आय के करोड़ों रुपये खर्च किए जाएंगे तो निगम का खजाना खाली हो जाएगा। यह चिंता का विषय है, खर्चे कम करके आमदनी बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।

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