तंत्र के गण: शहर ने तय किया छोटे से अस्पताल से मेडिकल हब तक का सफर
वर्ष 1966 में हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद भी गुरुग्राम में स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर थीं। यहां पुराने छोटे से भवन में 50 बेड का अस्पताल बनाया गया।
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
वर्ष 1966 में हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद भी गुरुग्राम में स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर थीं। गुरुग्राम हरियाणा बनने के पहले से ही जिला था। यहां पुराने छोटे से भवन में 50 बेड का अस्पताल बनाया गया। इस अस्पताल में इक्का-दुक्का चिकित्सक होते थे और मामूली सर्जरी हो जाया करती थी। स्थिति यह थी कि डिलिवरी के लिए सिजेरियन की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। बस यहां एक तरह से प्राथमिक चिकित्सा ही दी जाती थी और बड़ी बीमारी या सर्जरी के लिए मरीजों को दिल्ली भेज दिया जाता था। आज के वक्त में यह बातें थोड़ी हैरान करने वाली लगती हैं लेकिन उस दौर के देख चुके लोग बताते हैं कि कैसे स्वास्थ्य के क्षेत्र में जिले ने तरक्की की सीढि़यां चढ़ी हैं।
बढ़ती जरूरत से बढ़ी सुविधाएं
सिविल अस्पताल के स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा के पूर्व निदेशक और बाल रोग विशेषज्ञ डा. एनके जैन के मुताबिक पंजाब और हरियाणा बंटवारे के समय गुरुग्राम की जनसंख्या तकरीबन 40 हजार थी। ऐसे में सिविल लाइंस स्थित इस छोटे अस्पताल में हर आय वर्ग के लोग आते थे। आबादी बढ़ती गई तो धीरे-धीरे इस अस्पताल को अपग्रे़ड किया जाने लगा। समय के साथ निजी नर्सिंग होम और क्लीनिक बनने लगे।
बंसीलाल की सरकार आई तो उस दौरान प्रदेश भर में नए अस्पताल और नए बस स्टैंड बनाए गए थे। उसी क्रम में इस अस्पताल को 50 बेड से अपग्रेड करके 120 बेड का कर दिया गया। अभी भी यहां न तो विशेषज्ञ थे और न ही संसाधन। जरूरत बढ़ती गई तो 1975 में नया अस्पताल बना था। 1981 में जनसंख्या एक लाख हो गई। अस्पताल को अपग्रेड करके 200 बेड का बना दिया गया। डाक्टरों की संख्या बढ़ाकर 19 कर दी गई। धीरे-धीरे शहरी इलाकों में लोकल डिसपेंसरी खोली जाने लगीं। अर्बन हेल्थ सेंटर बनाए गए। इसके बाद दौर शुरू हुआ निजी नर्सिंग होम और कारपोरेट अस्पतालों के बनने का।
सिविल अस्पताल में बदलाव
उधर सिविल अस्पताल को अपग्रेड करके वर्ष 2000 में 300 बेड का कर दिया गया। आवश्यकता बढ़ गई और यहां डाक्टरों की संख्या बढ़ाकर 50-60 कर दी गई। इसी दौर में अलग से मातृत्व देखभाल और चाइल्ड केयर विभाग बना दिया गया। फिर वर्ष 2014 में यह निर्णय लिया गया कि इस अस्पताल को 500 बेड का कर दिया जाएगा। तीन वर्ष पहले यह निर्णय लिया गया।
निजी अस्पतालों का दौर
वर्ष 2009 में शहर में मेदांता अस्पताल बनाया गया। इसके बाद से स्वास्थ्य के क्षेत्र में शहर की तस्वीर बदल गई। मेडिकल टूरिज्म की शुरुआत हो गई। विदेश से मरीज बड़ी संख्या में इलाज के लिए गुरुग्राम आने लगे। इसके अलावा अन्य कारपोरेट अस्पतालों में भी चिकित्सा सुविधाएं बेहतर हो गई और एक वर्ग को राहत मिलने लगी।
धीरे-धीरे ही सही, चिकित्सा सुविधाओं में बढ़ोतरी तो हुई लेकिन बढ़ती आबादी के साथ स्वास्थ्य व्यवस्था कदमताल नहीं कर पा रही है। चिकित्सा विज्ञान तेजी से विकसित हुआ है और उसके लिए बड़े निवेश की जरूरत है लेकिन सरकार बजट का एक प्रतिशत भी स्वास्थ्य पर नहीं देती। दिल्ली सरकार स्वास्थ्य बजट 19 प्रतिशत देती है। हमें भी दस से बारह प्रतिशत बजट की आवश्यकता है।
- डा. एनके जैन, पूर्व निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा वर्ष 1966 में हरियाणा बना था तो उस समय पलवल, नूंह, रेवाड़ी का कुछ इलाका भी गुरुग्राम जिले का हिस्सा था। उस दौर में छोटी-छोटी डिस्पेंसरी थीं। बाद में अलग जिले बनते गए, सुविधाएं बढ़ती गईं। उस समय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हुआ करते थे। अब जिला अस्पताल भी तरक्की कर गया है और सरकार इसे बढ़ाने की बात कर रही है। इसके अलावा निजी क्षेत्र के अस्पतालों ने जिले को स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी बना दिया है।
- उदयभान ग्रोवर, सेवानिवृत डिप्टी सुपरिटेंडेंट, सिविल अस्पताल