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बचाएं बूंद-बूंद पानी: पानी के परंपरागत स्त्रोत के संसाधनों को पहुंचाया नुकसान, अब महत्व जाना

भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। पूरे जिले को डार्क जोन घोषित किया गया है। बरसाती पानी हो या घरों से निकलने वाला अपशिष्ट पानी। इसको बचाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। योजनाएं बनती हैं। पर योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 06:27 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 06:29 PM (IST)
बचाएं बूंद-बूंद पानी:  पानी के परंपरागत स्त्रोत के संसाधनों को  पहुंचाया नुकसान, अब महत्व जाना
बचाएं बूंद-बूंद पानी: पानी के परंपरागत स्त्रोत के संसाधनों को पहुंचाया नुकसान, अब महत्व जाना

महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)

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भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। पूरे जिले को डार्क जोन घोषित किया गया है। बरसाती पानी हो या घरों से निकलने वाला अपशिष्ट पानी। इसको बचाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। योजनाएं बनती हैं। पर योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं। परंपरागत जल स्त्रोत बावड़ी व तालाब विकास की भेंट चढ़ गए। तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एक प्रयास शुरू किया। दो साल पहले तालाब एवं अपशिष्ट जल प्राधिकरण का गठन किया गया। अधिकारी तालाबों के पुनर्जीवन के काम को लेकर भी गंभीर नहीं हैं।

पानी को संरक्षित करने के लिए प्राचीन काल की कई बावड़ी बनी हुई थी। बादशाहपुर में बावड़ी का निर्माण सेठ मोहनलाल मंगला ने कराया था। इसके साथ ही एक बड़े तालाब का निर्माण भी किया गया था। बावड़ी और तालाब पानी से लबालब भरे होते थे। अरावली की पहाड़ी से भी इनमें पानी आने की व्यवस्था थी। इनका पानी धीरे-धीरे धरती में चला जाता था।

सेक्टर 66-67 रोड के बीच में आने की वजह से इस बावड़ी का अस्तित्व खतरे में है। जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ी इस बावड़ी को बचाने के लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं। धुमसपुर गांव में प्राचीन बावड़ी बनी हुई थी। यह बावड़ी जिला परिषद के अधीन है। एक चर्च ने इस बावड़ी के चारों तरफ की जमीन खरीद ली। बावड़ी बीच में आने के कारण इसको पूरी तरह से पाट दिया गया। कुछ लोगों ने इस को बचाने के प्रयास भी किए पर वे कामयाब नहीं हो पाए। प्राचीन काल की बनी बावड़ी जल स्त्रोत का सबसे बेहतर जरिया थी। इनमें न केवल पानी का संचयन होता था, बल्कि यह हमारी सामाजिक व सांस्कृतिक धरोहर भी है। जहां हम एक ओर जल के महत्व को महसूस कर रहे हैं। परंपरागत धरोहरों को हम हाशिए पर पहुंचा रहे हैं। पानी की एक-एक बूंद बचाने के प्रयास करने की जरूरत है।

डा. पारुल मुंजाल, एसोसिएट प्रोफेसर, कला और वास्तुकला स्कूल, सुशांत विश्वविद्यालय जीएमडीए के साथ मिलकर आइएम गुड़गांव ने इस बार बरसाती पानी को संचयन करने पर काम किया। उसके बेहतर परिणाम भी आए। गोल्फ कोर्स रोड पर इस बार बरसात का पानी व्यर्थ नहीं बहा। ड्रेन बनाने का कोई औचित्य नहीं है। पानी के परंपरागत रास्तें अवरुद्ध न हो। अधिकारियों को अलर्ट रहने की ओर लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।

लतिका ठकराल, को-फाउंडर, आइएम गुड़गांव अरावली से आने वाले बारिश के पानी को बचाने के लिए बहाव की तरफ चेक डैम बनाए जाएं। वन विभाग ने अरावली की पहाड़ियों में कई चेक डैम बनाए भी हैं। बारिश का पानी हो या घरों से निकलने वाले पानी-पानी की एक-एक बूंद को बचाकर धरती के अंदर ले जाने की जरूरत है। जल संरक्षित कर भूगर्भ में जाएगा। तभी भूमिगत जल स्तर ऊपर आने की संभावना बन सकती है।

वीएस लांबा, हाइड्रोलाजिस्ट पहाड़ से आने वाले पानी को पहाड़ की तलहटी में प्राकृतिक व कृत्रिम झील बनाकर वही एकत्रित किया जाए। ताकि सड़कों पर बारिश का पानी आने ही ना पाए। ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत पानी के जोहड़ में पानी पहुंचाने की संबंधित विभाग व्यवस्था बनाए। इसके साथ ही जल स्त्रोतों तक पहुंचने वाले जल मार्गों को अतिक्रमण मुक्त किया जाए।

डा. शिव सिंह रावत, अधीक्षण अभियंता, सिचाई (गुरुग्राम)

- जल संरक्षण के लिए प्राचीन तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए

- अरावली के खनन पर रोक लगाई जाए

- अधिक से अधिक पौधे रोपे जाएं एवं उनका वृक्ष बनने तक संरक्षण किया जाए

- जल संरक्षण के लिए परंपरागत जल स्त्रोतों व जल मार्ग पर अतिक्रमण रोका जाए

- जल संरक्षण के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार को सख्त कानून बनाना चाहिए

- रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम वास्तव में मजबूत किया जाए, सिर्फ कागजों में नहीं भूजल के मामले में जिले की स्थिति

गुरुग्राम खंड

भूजल स्तर, वर्ष

35.42- 2010

32.77- 2018

27.74- 2020

--

सोहना खंड

25.81- 2010

24.90- 2018

22.74- 2020

--

फरुखनगर खंड

20.75- 2010

19.92- 2018

17.43- 2020

--

पटौदी खंड

37.47- 2010

35.49- 2018

29.23,-2020

(भूजल स्तर मीटर में)


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