पिता से मिली सत्यनिष्ठा और मूल्यों के साथ जीने की सीख : आकाश चौधरी
आकाश इंस्टीट्यूट एजुकेशन सर्विसेज लिमिटेड के निदेशक व सीईओ आकाश चौधरी का कहना है कि पिता के मार्गदर्शन में संस्थान को केवल व्यवसायिक निपुणता से ही नहीं बल्कि उनके दिए संस्कारों और मूल्यों के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
एक सफल पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाना जितना अच्छा है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। जरा से लीक से हटे नहीं कि प्रतिस्पर्धा भरे युग में हर कोई आपकी जगह लेने को तैयार है। आकाश इंस्टीट्यूट एजुकेशन सर्विसेज लिमिटेड के निदेशक व सीईओ आकाश चौधरी का कहना है कि वे पिता के मार्गदर्शन में संस्थान को केवल व्यवसायिक निपुणता से ही नहीं, बल्कि उनके दिए संस्कारों और मूल्यों के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। फादर्स डे पर पिता और आकाश इंस्टीट्यूट एजुकेशन सर्विसेज लिमिटेड के चेयरमैन जेसी चौधरी को सफलता का श्रेय देते हुए आकाश कहते हैं कि पिता ने सत्यनिष्ठा, लगन और मेहनत की नींव न दी होती, तो आज इमारत शायद इतनी खूबसूरत न बन पाती। जब की थी गलती, तो पिता बने दोस्त
आकाश भी अन्य बच्चों की तरह गलतियां करते थे, तो पिता से उन्हें खूब डांट पड़ती थी। ऐसे में वे गलतियां छुपा जाते थे, लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने हमेशा के लिए पिता से बातें छुपाना छोड़ दिया। दरअसल, एक बार उन्होंने कोई ऐसी गलती की कि उसे सुलझाने की कोशिश में वे और उलझाते चले गए। फिर हिम्मत करके वे पिता के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। पिता के व्यवहार ने एक पल के लिए उन्हें हैरत में डाल दिया कि उन्होंने बजाय उन्हें डांटने के उनसे दोस्ताना अंदाज में बात की और कहा कि आगे से वे सभी समस्याएं मिलकर सुलझाएंगे। पिता-पुत्र हैं एक ही सत्ता
आपके काम करने के तरीके और पिता के काम करने के तरीके में अंतर होगा। क्या इस तरह की स्थितियां आईं हैं, जब आप दोनों किसी मुद्दे पर एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हों, इस सवाल का जवाब देते हुए आकाश कहते हैं कि पिता-पुत्र दो अलग-अलग पीढि़यों से हैं। अलग-अलग विचारधारा से हैं, तो कई बार ऐसी स्थितियों का आना स्वाभाविक है। वे उसे लटकाकर नहीं रखते, बल्कि उस बारे में बात करते हैं। ऐसा करके वे किसी भी मुद्दे पर तुरंत निर्णय ले लेते हैं। आकाश का मानना है कि ऐसा न करने पर मतभेद और रिश्तों में दूरियां आने लगती हैं। एक-दूसरे से विश्वास उठने लगता है। वे कहते हैं कि भले ही वे पीढ़ी और विचारों में पिता से कुछ भिन्न हो सकते हैं, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं लगता है कि दोनों एक ही सत्ता हैं। पिता से मिलती है हर समस्या के हल की कुंजी
आकाश ने पिता के व्यवसाय को 2006 में ज्वाइन किया। उन्होंने कहा कि पहले काम को देखकर उसे सीखें और फिर उसे करें। आकाश ने वही किया। पहले मुंबई की फ्रेंचाइजी ज्वाइन की और फिर तीन साल बाद दिल्ली आए। इस दौरान उन्हें पिता के सानिध्य में काम करने का मौका मिला, तो पता चला कि वे इतने सफल कैसे हुए। उनके विचारों में स्पष्टता, सोच में दूरदर्शिता और काम करने के निराले अंदाज से रूबरू होने का मौका मिला, तो आकाश को लगा जैसे उन्हें हर बार समाधान तलाशने का एक अनूठा लैंस मिल गया है। आकाश प्रतिस्पर्धा से नहीं डरते, क्योंकि उनके पिता ने उन्हें सिखाया कि खुद को मजबूत करने में विश्वास रखें, न कि किसी को गिराकर ऊपर उठने में। अगर यह सोच विकसित हो गई, तो कोई प्रतिस्पर्धा सफलता की राह का रोड़ा नहीं बन सकती। घर व कामकाज में सामंजस्य
वैसे तो यह बहुत मुश्किल होता है। आपको दोनों में सामजस्य बिठाने में थोड़ी परेशानी आती है, लेकिन मेरे लिए स्थितियां थोड़ी अलग हैं। उनका कहना है कि उन्हें घर-परिवार से इतना सहयोग मिला है कि वे अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं। इसके अलावा घर पर ही पिता से व्यवसायिक मुद्दों पर बातचीत हो जाती है, तो कई बार मुद्दे जल्दी सुलझाने में मदद मिल जाती है।