कालापानी व लिपुलेख सदियों से है भारत का हिस्सा
कालापानी व लिपुलेख सदियों से भारत का हिस्सा है। इनके ऊपर नेपाल का दावा पूरी तरह गलत है। लिपुलेख को लेकर चीन के साथ भारत के कई समझौते हुए हैं उस दौरान नेपाल ने कभी भी अपना विरोध नहीं जताया।
आदित्य राज, गुरुग्राम
कालापानी व लिपुलेख सदियों से भारत का हिस्सा है। इनके ऊपर नेपाल का दावा पूरी तरह गलत है। लिपुलेख को लेकर चीन के साथ भारत के कई समझौते हुए हैं, उस दौरान नेपाल ने कभी भी अपना विरोध नहीं जताया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपनी कुर्सी बचाने के लिए इसे विवाद का विषय बना रहे हैं। वह नेपाल की जनता के सामने भारत का विरोध करके अपने आपको सबसे ताकतवर नेता दिखाना चाहते हैं। जब भी उन्हें लगता है कि कुर्सी खतरे में है तो भारत विरोधी बयान देना शुरू कर देते हैं। भारत विरोधी बयान देने से सरकार व पार्टी के भीतर उनका विरोध कम हो जाता है।
दैनिक जागरण से बातचीत में नेपाल में भारत के राजदूत रहे (2013-2017) रंजीत राय ने कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी एवं नेपाल के बीच 1816 में सुगौली संधि हुई थी। उस पर दोनों पक्ष ने हस्ताक्षर किए थे। संधि के बाद नेपाल ने दो और गांव कंपनी से मांगे थे। इस पर कंपनी ने दो गांव लौटा दिए थे। इसके बाद फिर उसने दो गांव मांगे जिसे कंपनी ने देने से मना कर दिया था। संधि के मुताबिक काली नदी का पश्चिमी छोर भारत है जबकि पूर्वी छोर नेपाल है। उस समय स्त्रोत को लेकर विवाद हो गया था। नेपाल का दावा था कि काली नदी का स्त्रोत लिम्पियाधुरा है जबकि कंपनी ने स्पष्ट कर दिया था कि काली नदी का स्त्रोत कालापानी ही है। अब लिम्पियाधुरा के इलाके पर नेपाल अपना दावा करता है जबकि यह क्षेत्र भारत में है। कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि काली नदी का स्त्रोत कालापानी ही है। यह क्षेत्र पूरी तरह भारत में है। वर्ष 1997 से शुरू हुआ विवाद
पूर्व राजदूत रंजीत राय ने बताया कि नेपाल ने अपने नए मानचित्र में कालापानी, लिम्पियाधुरा एवं लिपुलेख को अपना हिस्सा बताया है, यह पूरी तरह गलत है। इसका कोई आधार ही नहीं है। लिपुलेख सदियों से भारत का हिस्सा है। 1954 के दौरान तिब्बत को लेकर भारत-चीन समझौते में भी इस बात का जिक्र है कि लिपुलेख का इलाका भारत का हिस्सा है। 1997 के दौरान कालापानी के ऊपर नेपाल ने दावा जताया था। अब कालापानी के साथ ही लिम्पियाधुरा एवं लिपुलेख पर दावा जताने लगा है। पूरे हिमालय क्षेत्र पर चीन दबदबा बढ़ाना चाहता है
पूर्व राजदूत ने कहा कि केपी शर्मा ओली की वामपंथी सरकार मजबूत रहे इसमें चीन का अपना हित है। चीन अपना सामान नेपाल में भेजना चाहता है। वह चाहता है कि नेपाल की निर्भरता भारत के ऊपर न रहे। इसे ध्यान में रखकर नेपाल की मदद कर रहा है। दरअसल वह पूरे हिमालय क्षेत्र पर अपना दबदबा जमाना चाहता है। इसी को ध्यान में रखकर नेपाल की मदद कर रहा है। नेपाल तक सड़क व रेल सुविधा विकसित करने से लेकर कई योजनाओं के ऊपर वह काम कर रहा है। हालांकि चीन के लिए नेपाल तक भारत की तरह सामान पहुंचाना आसान नहीं। हिमालय पार करके उसे नेपाल आना होगा। अभी भी कोलकाता से होकर ही चीन का सामान नेपाल पहुंचता है। जहां तक वर्तमान केंद्र सरकार का सवाल है तो सभी मुद्दों पर बेहतर रूख है। चीन यह भी दिखाना चाहता है कि नेपाल के पास केवल भारत ही विकल्प नहीं है बल्कि कई और हैं।