साहित्य को भाषाई सरहदों में बांधना ठीक नहीं: गीतांजलि श्री
हिदी साहित्य और भाषा के संवर्धन के लिए प्रभा खेतान फाउंडेशन ने दैनिक जागरण एवं एहसास वुमन ऑफ एनसीआर के साथ मिलकर कलम अपनी भाषा अपने लोग के गुरुग्राम चैप्टर का वर्चुअल आयोजन किया।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: हिदी साहित्य और भाषा के संवर्धन के लिए प्रभा खेतान फाउंडेशन ने दैनिक जागरण एवं एहसास वुमन ऑफ एनसीआर के साथ मिलकर कलम 'अपनी भाषा, अपने लोग' के गुरुग्राम चैप्टर का वर्चुअल आयोजन किया। इसमें 'माई', 'हमारा शहर', 'उस बरस', 'तिरोहित' और 'रेत समाधि' जैसी पुस्तकों की लेखिका गीतांजलि श्री से आराधना प्रधान ने भाषा और साहित्य पर चर्चा की।
आराधना ने पूछा कि अच्छी शिक्षा ग्रहण करने और अंग्रेजी के ज्ञान होने के बाद भी उन्होंने पुस्तक लेखन के लिए हिदी भाषा को क्यों चुना। इसपर गीतांजलि ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि आप अच्छी शिक्षा ग्रहण कर लें तो अपनी मातृभाषा को भूल जाएं। उन्होंने कहा कि हिदी उनकी भाषा है और उससे उन्हें लगाव है, इसलिए लेखन के लिए हिदी ने उन्हें आकर्षित किया।
कहते हैं, भाषा विशेष के साहित्य में अन्य किसी भाषा के शब्दों समावेश नहीं किया जाना चाहिए, इसपर गीतांजलि ने कहा कि वे इस बात से बिलकुल सहमत नहीं हैं कि साहित्य को भाषाई सरहदों में बांधा जाए। ऐसा करने से साहित्य, साहित्य नहीं रहेगा। किसी भी भाषा में इस तरह की पाबंदियां उसे खत्म कर देंगी। भाषा तो पनपती ही आदान-प्रदान और संवाद से है। दूसरी हवाओं को आने देने से भाषा फलेगी-फूलेगी। केवल अंग्रेजी या उर्दू के शब्द ही नहीं, बल्कि देश की क्षेत्रीय भाषाओं से भी शब्द लेने चाहिए। कई बार अपनी भाषा में वह शब्द और वह भाव नहीं मिल पाता जो दूसरी भाषा में मिल जाता है।
भाषाओं को जोड़ने से बहुत से भाव व्यक्त करने का बेहतर जरिया मिल जाता है। हां, एक बात है कि दूसरी भाषाओं के शब्द जबरदस्ती न डाले जाएं कि वे व्यर्थ और बोझिल लगने लगें। हिदी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने कहा कि हिदी को जीवन की सहज और रोजमर्रा के जीने का हिस्सा बनाना होगा। आप नई पीढ़ी को मात्र साहित्य पढ़ाकर हिदी से नहीं जोड़ सकते। इस कार्यक्रम के अंत में अहसान वुमन श्वेता अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। इसमें इना पुरी, शिजिनी कुलकर्णी सहित अन्य लोग भी शामिल हुए।