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सप्ताह का साक्षात्कार: महज औपचारिकता निभाने से ही बेहतर नहीं होगी आबोहवा

गुरुग्राम सहित दिल्ली-एनसीआर के लिए आज वायु प्रदूषण एक अति गंभीर खतरा बन चुका है। पिछले कुछ दिनों से यहां की आबोहवा काफी हद तक जहरीली हो गई है। जिससे सभी का दम फूलने लगा है। वातावरण में पीएम 2.5 का स्तर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। गुरुग्राम में एयर क्वलिटी इंडेक्स 972 पीएम 2.5 तक पहुंच चुका है। अक्टूबर की शुरुआत के साथ ही वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक होने लगता है। जिससे सांस से जुड़ी बीमारियां बढ़ने लगती हैं। आखिर आबोहवा में जहर का स्तर किस कारण बढ़ रहा है। इस मामले में सरकार एवं प्रशासन द्वारा क्या किया जा रहा है और क्या होना चाहिए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 04:45 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 04:45 PM (IST)
सप्ताह का साक्षात्कार: महज औपचारिकता निभाने से ही बेहतर नहीं होगी आबोहवा
सप्ताह का साक्षात्कार: महज औपचारिकता निभाने से ही बेहतर नहीं होगी आबोहवा

गुरुग्राम सहित दिल्ली-एनसीआर के लिए आज वायु प्रदूषण एक अति गंभीर खतरा बन चुका है। पिछले कुछ दिनों से यहां की आबोहवा काफी हद तक जहरीली हो गई है। जिससे सभी का दम फूलने लगा है। वातावरण में पीएम 2.5 का स्तर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। दीपावली की रात गुरुग्राम में पीएम 2.5 का एयर क्वालिटी इंडेक्स 972 तक पहुंच गया था। अक्टूबर की शुरुआत के साथ ही वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक होने लगता है। जिससे सांस से जुड़ी बीमारियां बढ़ने लगती हैं। आखिर आबोहवा में जहर का स्तर किस कारण बढ़ रहा है। हालांकि प्रशासन ने इमारत निर्माण पर रोक लगा रखी है। इसके अलावा सरकार एवं प्रशासन द्वारा क्या किया जा रहा है और क्या होना चाहिए। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता यशलोक ¨सह ने पर्यावरणविद विवेक कंबोज से बातचीत की। प्रस्तुत है इसके प्रमुख अंश :

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गुरुग्राम की आबोहवा इतनी जहरीली क्यों होती जा रही है ?

गुरुग्राम में वायु प्रदूषण के एक या दो नहीं बल्कि कई कारण हैं, जिससे आबोहवा तीव्र गति से जहरीली होती जा रही है। आज यहां रहने वाले हर इंसान का दम घुटने लगा है। आंखों में जलन, गले में खरास और खांसी आना आम बात हो गई है। हर व्यक्ति प्रतिदिन 40 से 45 सिगरेट के बराबर प्रदूषण अपने अंदर सांसों के जरिए खींच रहा है। केवल दीपावली पर आतिशबाजी या पराली के जलाने से ही ऐसा नहीं हो रहा है। पराली तो तीन-चार दशक पहले से जलाई जा रही है। तब ऐसी विकट स्थिति नहीं पैदा हुई थी। मैं यहां आतिशबाजी या पराली जलाने की वकालत नहीं कर रहा हूं। मेरा सीधा सा मानना है कि वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, अरावली का उजड़ना, डीजल ऑटो, खुले में कूड़ा जलाना और उड़ती धूल है। इस पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक इससे राहत मिलना संभव नहीं है। सरकारी स्तर पर वायु प्रदूषण से निपटने के जो प्रयास किए जा रहे हैं वह काफी हैं?

मुझे तो ऐसा लग ही नहीं रहा है कि सरकारी एवं प्रशासनिक स्तर पर वायु प्रदूषण से निपटने के कोई ठोस इंतजाम किए जा रहे हों। सरकारी अमला वायु प्रदूषण को लेकर तभी सक्रिय होता है जब सुप्रीम कोर्ट एवं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)के निर्देश सख्त होते हैं। यह सक्रियता भी सिर्फ और सिर्फ दिखाने के लिए होती है। कंस्ट्रक्शन के कार्य को बंद कराने के आदेश का सही से पालन नहीं हो रहा है। शहर में कई स्थानों पर बि¨ल्डग मैटेरियल के सामान खुले में बिना ढके डाले गए हैं। यहां से रेत और डस्ट वातावरण में उड़ती रहती है। सड़कों से धूल साफ करने के लिए जो गाड़ियां आई हैं उनका भी सही तरीके से इस्तेमाल नहीं हो रहा है। पानी का छिड़काव भी कुछ विशेष स्थानों पर ही किया जा रहा है। कुल मिलाकर वायु प्रदूषण को लेकर सरकारी अमला सिर्फ औपचारिकता निभाने का ही काम कर रहा है। डीजल ऑटो वायु प्रदूषण के लिए किस हद तक जिम्मेदार हैं?

गुरुग्राम में 30 हजार से अधिक डीजल ऑटो चल रहे हैं। इन पर तुरंत प्रभाव से रोक लगानी चाहिए। यदि डीजल ऑटो हट जाएं तो वायु प्रदूषण स्तर में काफी कमी आएगी। सड़कों पर यह ऑटो काला धुआं उगलते हुए चलते हैं। इन ऑटो में मिलावटी तेल डाला जाता है। काफी ऑटो वाले डीजल में मिट्टी का तेल भी डालते हैं जिससे वायु प्रदूषण का खतरा और बढ़ जाता है। यह बात समझ में नहीं आ रही है कि सरकारी अमला इन ऑटो पर पाबंदी क्यों नहीं लगा रहा है। वायु प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए आप क्या सुझाव देना चाहते हैं?

मैं यही सुझाव सरकार एवं प्रशासन को देना चाहता हूं कि अरावली की हरियाली को ना उजाड़ा जाए। अरावली दिल्ली-एनसीआर का फेफड़ा है। जिस गति से इनका खनन हुआ है और इसकी हरियाली को उजाड़ा गया है उससे वायु प्रदूषण से लेकर तापमान में वृद्धि तक की समस्या सामने आ रही है। वहीं गुरुग्राम में विकास के नाम पर लगातार पेड़ों को काटा जा रहा है। वन विभाग पेड़ पौधों को लगाने व इनके संरक्षण का काम कम और इन्हें काटने की एनओसी अधिक दे रहा है। इस पर रोक लगनी चाहिए। ऐसा होगा तो यहां की आबोहवा बेहतर होगी। सड़कें गड्ढा मुक्त होनी चाहिए। कंस्ट्रक्शन साइटों पर एनजीटी द्वारा निर्धारित मानकों का ठोस पालन सुनिश्चित कराया जाए। गुरुग्राम में पर्यावरण संरक्षण का काम कुछ लोगों द्वारा ही व्यक्तिगत स्तर पर किए जा रहे है। परिचय :

नाम : विवेक कंबोज

जन्मतिथि: नवंबर, 1968

शिक्षा: डिप्लोमा इन इंजीनिय¨रग (पूसा पॉलिटेक्निक दिल्ली)

कार्य : पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में सक्रिय

उपलब्धि : मांगर बनी को बचाने के लिए लड़ी कानूनी लड़ाई, ¨टबर माफिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए


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