फाइलों में दफन हो गया जेनरेटर घोटाला
नगर निगम में लगभग डेढ़ साल पहले हुआ जेनरेटर घोटाला निगम अधिकारियों ने फाइलों में दफन कर दिया। इतना समय बीतने के बावजूद न तो इसकी जांच की गई और न ही कोई कार्रवाई की गई।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: नगर निगम में लगभग डेढ़ साल पहले हुआ जेनरेटर घोटाला निगम अधिकारियों ने फाइलों में दफन कर दिया। इतना समय बीतने के बावजूद न तो इसकी जांच की गई और न ही इसमें संलिप्त कर्मचारियों और अधिकारियों पर कोई कार्रवाई की गई। नगर निगम के बूस्टिग स्टेशनों में जेनरेटर के नाम पर अलग-अलग डिवीजन में एक्सईएन और एसडीओ ने मोटे बिल बनाए थे। करीब डेढ़ साल में किराये के जेनरेटरों के लिए लगभग तीन करोड़ रुपये के बिलों का भुगतान किया गया था। इतने रुपये खर्च कर नगर निगम खुद के 50 जेनरेटर खरीद सकता था, लेकिन सिर्फ किराये में ही तीन करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान कर दिया गया। जेनरेटरों के इस खेल में एक्सईएन से लेकर कई उच्चाधिकारी संदेह के घेरे में हैं। गठित की गई थी कमेटी
निगम अधिकारियों की एक कमेटी गठित कर इसकी जांच शुरू की गई थी। पुराने बिलों की डिटेल निगम की लेखा शाखा से मांगी गई थी। नगर निगम क्षेत्र में करीब 50 बूस्टिग स्टेशन हैं। नियमानुसार बूस्टिग स्टेशनों पर ज्यादा लंबे समय तक बिजली कटौती होने, बिजली कनेक्शन कट जाने या फिर इमरजेंसी में ही जेनरेटरों का इस्तेमाल किया जा सकता है। कई बूस्टिग स्टेशनों पर तो पूरे माह जेनरेटर चालू दिखाकर 15 से 20 लाख रुपये के बिल भी बना दिए गए। अब सवाल यह है कि क्या पूरे महीने बूस्टिग स्टेशन को बिजली मिली ही नहीं? पांच से छह लाख रुपये है जेनरेटर की कीमत
एक जेनरेटर की मार्केट में कीमत करीब पांच से छह लाख रुपये है। तीन करोड़ रुपये में नगर निगम खुद के करीब 50 जेनरेटर खरीद सकता था, लेकिन अपनी जेबें भरने के लिए निगम अधिकारियों ने जेनरेटर खरीदने के बजाय इनको किराये पर लेकर गड़बड़झाला शुरू कर दिया। - जेनरेटर मामले में जांच करवाई जाएगी। इसके लिए पुराना रिकार्ड चेक किया जाएगा।
रमन शर्मा, मुख्य अभियंता, नगर निगम गुरुग्राम।