जब स्वास्थ्य शिविर में पहुंचे थे दस हजार लोग
एक वक्त था जब गुरुग्राम ऐसा नहीं था। इतनी समृद्धि इतनी स्वास्थ्य सेवाएं और ऐसी आधुनिकता नहीं थी। आज जरा सी चोट भी लगे तो लोग पसंदीदा अस्पताल तक पहुंच जाते हैं लेकिन उस दौर में डाक्टर और अस्पताल लोगों से कोसों दूर थे।
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
एक वक्त था जब गुरुग्राम ऐसा नहीं था। इतनी समृद्धि, इतनी स्वास्थ्य सेवाएं और ऐसी आधुनिकता नहीं थी। आज जरा सी चोट भी लगे तो लोग पसंदीदा अस्पताल तक पहुंच जाते हैं लेकिन उस दौर में डाक्टर और अस्पताल लोगों से कोसों दूर थे। बात कर रहे हैं बीती सदी के सातवें दशक की। उस दौरान स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर गुरुग्राम में एक सरकारी अस्पताल था। ऐसे में कुछ लोगों ने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने का बीड़ा उठाया। उन्हीं चंद लोगों में से एक हैं 86 वर्षीय मदन लाल मलिक। पेश से वकील मदन लाल मलिक ने अपने काम के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी लंबे समय तक कार्य किया। वे उस वक्त लोगों तक चिकित्सा सुविधाएं पहुंचाते थे जब अस्पतालों दूर थे, चिकित्सक मिलते नहीं थे और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव था।
चिकित्सक परिवार से नाता
जब नूंह गुरुग्राम का हिस्सा था तब मदन लाल मलिक वहीं रहा करते थे। उनकी ससुराल में भी चिकित्सक थे। ऐसे में उन्होंने उनकी मदद ली और मोबाइल स्वास्थ्य केंद्र के जरिये स्वास्थ्य जांच और इलाज मुहैया करवाने लगे। वे याद करते हुए बताते हैं कि जब 1975 में उन्होंने शिविर लगवाया तो उसमें दस हजार लोग अपने स्वास्थ्य की जांच और इलाज करवाने के लिए पहुंचे। उस समय उनके घर के 14 कमरे लोगों से भर गए थे। चिकित्सकों से लेकर मरीजों तक के रुकने की व्यवस्था उन्होंने करवाई थी। वह ओपीडी दस दिनों तक चलती रही थी। आज भी हैं सक्रिय
मदन मलिक बताते हैं कि जब उन्होंने देखा कि इस तरह की सुविधा सरकार दे रही है तो उसका लाभ आम आदमी तक पहुंचना चाहिए। ऐसे में उन्होंने स्वयं जरिया बनकर यह काम शुरू कर दिया। आज भी वे समाज से स्वास्थ्य को लेकर जागरूक और सक्रिय रहते हैं। इस उम्र में भी लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं दिलवाने के लिए चिकित्सकों और संस्थानों से मदद लेते हैं। स्वस्थ समाज को लेकर मदन मलिक की प्रतिबद्धता ही थी कि वे 16 वर्षों तक जस्टिस गोपाल चैरिटेबल अस्पताल के प्रभारी रहे।