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जख्मी होने के बाद भी पांच आतंकियों को उतार दिया था मौत के घाट

अहीरवाल का इतिहास शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है। जिले के गांव कहाड़ी निवासी नायक लालचंद व उनके परिवार की शौर्य गाथा भी गर्व से सिर ऊंचा कर देती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 06:53 PM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 06:53 PM (IST)
जख्मी होने के बाद भी पांच आतंकियों को उतार दिया था मौत के घाट
जख्मी होने के बाद भी पांच आतंकियों को उतार दिया था मौत के घाट

कृष्ण कुमार, रेवाड़ी

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अहीरवाल का इतिहास शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है। जिले के गांव कहाड़ी निवासी नायक लालचंद व उनके परिवार की शौर्य गाथा भी गर्व से सिर ऊंचा कर देती है। लालचंद व उनके परिवार के खून में देश पर मर मिटने का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है। कारगिल युद्ध में जख्मी होने के बाद भी नायक लालचंद ने पहाड़ी पर घात लगाए बैठे पांच आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया था। उनके शरीर पर ग्रेनेड हमले से जख्मी होने के निशान आज भी मौजूद हैं। साल 1971 के युद्ध में लालचंद यादव के ताऊ कैप्टन नंदराम भी अपनी वीरता दिखा चुके है। सेना ने कैप्टन नंदराम को वीर चक्र से सम्मानित किया था। पहाड़ी पर छिपे थे पांच आतंकी

गांव कहाड़ी निवासी नायक लालचंद यादव कारगिल युद्ध के दौरान 22 ग्रेनेड अल्फा कोर में शामिल थे। उनकी नियुक्त कश्मीर अनंतनाग क्षेत्र में ओपी रक्षक में थी तथा टीम में 15 जवान शामिल थे। कारगिल युद्ध के दौरान पता लगा कि अनंतनाग के एक गांव में पहाड़ी पर पांच आतंकी छिपे हुए है। सूचना उनकी टीम गांव में पहुंच गई थी। लालचंद यादव के अनुसार जब वह पहाड़ी पर चढ़ रहे थे तो ऊपर घात लगाए बैठे आतंकियों ने फायरिग व ग्रेनेड से हमला कर दिया था। लालचंद पोजिशन लेते हुए आतंकियों के करीब पहुंच गए तथा एलएमजी (लाइट मशीनगन) से हमला कर दो आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। गड्ढे में छिपे कुछ अन्य आतंकवादियों व उनके बीच क्रास फायरिग होती रही। आतंकियों द्वारा ग्रेनेड से हमला किया गया, जिसमें उनका एक हाथ व एक पैर बुरी तरह से जख्मी हो गया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लालचंद ने आतंकियों को ललकारते हुए कहा कि हम हिदुस्तानी मर जाएंगे लेकिन कभी पीछे नहीं हटेंगे और उन्होंने दो और आतंकवादियों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। पांचवें आतंकी ने भागने का प्रयास किया, उसे भी उन्होंने ढेर कर दिया। पाकिस्तानियों में था लालचंद का खौफ

लालचंद यादव एलएमजी चलाने व सटीक निशाना लगाने में पारंगत थे। जब बार्डर पर ड्यूटी होती थी तो सामने की पोस्ट पर मौजूद रहने वाले पाकिस्तानियों में भी उनका खौफ रहता था। एलएमजी की आवाज सुनकर ही अधिकारी भी बता देते थे कि यह फायर लालचंद ने किया है। उनके मौसेरे भाई ग्रेनेडियर ओमकार कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे।


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