Move to Jagran APP

शहर की फिजा: प्रियंका दुबे मेहता

प्रशिक्षक राहुल यादव के 19 योग कलाकार जब टीवी पर गुरुग्राम के नाम की हुंकार भरते हैं तो उनकी पृष्ठभूमि नहीं प्रतिभा की चमक से शहर रोशन हो उठता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 07:04 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 07:04 PM (IST)
शहर की फिजा: प्रियंका दुबे मेहता
शहर की फिजा: प्रियंका दुबे मेहता

सपनों की चमक से जगमगाया शहर

loksabha election banner

प्रतिभा और संसाधनों का मेल होता तो संसाधन संपन्नता के इस दौरान में हर तीसरा विद्यार्थी होनहार, हर तीसरा खिलाड़ी चैंपियन और हर तीसरा कलाकार चमकता सितारा होता। प्रतिभा संसाधनों की मोहताज होती तो आज एक टीवी शो में धूम मचाने वाले कन्हई गांव के चैंपियन किसी सामुदायिक भवन के आयोजनों में सिमट कर रह गए होते। अभ्यास करने के लिए भवन खाली होने का इंतजार न करते। वारियर्स स्क्वाड की भूमि और नंदिनी भी लोगों के घरों के चूल्हे चलाते हुए अपनी मां की तरह अपने सपनों के पंख जला चुकी होतीं। पिता की तरह फर्श चमकाते हुए अपने अरमानों का गला घोट चुकी होतीं। बात संसाधनों की नहीं, सपनों की है, उन्हें पूरा करने के जुनून की है। प्रशिक्षक राहुल यादव के 19 योग कलाकार जब टीवी पर गुरुग्राम के नाम की हुंकार भरते हैं तो उनकी पृष्ठभूमि नहीं, प्रतिभा की चमक से शहर रोशन हो उठता है।

जिसकी लाठी, उसका पार्क

इंटरनेट मीडिया के क्रांतिकारी युग में लाठी वाला जुमला भले ही बीते दौर का सुनाई देता हो लेकिन यह आज भी सेक्टर 15 से लगे जिम पार्क की स्थिति पर सटीक बैठता है। फिटनेस उपकरणों से लैस यह पार्क बच्चों की खिलखिलाहट और बुजुर्गों के ठहाकों से गुलजार रहता था। चाहे सेक्टरवासी हों या प्रशासनिक अधिकारी, झाड़सा बांध पर सैर करने वाले खास-ओ-आम स्वास्थ्य लाभ लेते थे। यह तो थी अच्छे दिनों की बात। अब एक दिन अचानक पार्क तक पहुंचने वाली पूरी की पूरी सीढ़ी उखाड़, रातों-रात दीवार खड़ी कर दी गई। सीधे तौर पर नहीं, दबी जुबान से सभी कह रहे हैं कि रास्ता एक महिला अधिकारी के कोप से टूटा। परेशान सभी हैं लेकिन न तो सेक्टरवासी इस तानाशाही पर सवाल उठा पा रहे हैं और न ही अधिकारी इसका संज्ञान ले रहे हैं। शायद यह सोचकर कि आखिर भैंस तो लाठी वाले की ही होगी न।

कैसे बनेगी मजबूत इमारत

सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की नई पौध को आंगनबाड़ी में शिक्षा के जल से सिचित किया जाएगा। नई शिक्षा नीति के तहत फैसले को लेकर अभिभावकों को तो मंच नहीं मिला पाया लेकिन अध्यापकों ने इसका पुरजोर विरोध शुरू कर दिया। सरकार से प्रश्न यह है कि आखिर पहले ही काम के बोझ से दबे आंगनबाड़ी के 'स्तंभों' पर विद्यार्थियों के भविष्य की मजबूत नींव कैसे रखी जा सकेगी। अध्यापक सत्यनारायण यादव के साथ प्राथमिक अध्यापकों ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर इस सोच को सोच के स्तर पर ही दफन नहीं किया गया तो सबसे जरूरी कक्षाओं में ही प्रतिभाएं कुम्हला जाएंगी और प्रशिक्षित शिक्षकों के अभाव में कमजोर बुनियाद पर बड़ी कक्षाओं की इमारत खड़ी होने से पहले ही ढह जाएगी। जमीनी स्तर की जरूरतों और समस्याओं को समझने का दम भरने वाली नई शिक्षा नीति में इस तरह की लापरवाही गले नहीं उतर रही है।

तारीखों से टूटता मनोबल

नियम कानून तो बन जाते हैं लेकिन जब पालन की बात आती है तो कोई जवाबदेही नहीं। अब शिक्षा के अधिकार अधिनियम 134ए की लालटेन थमा देने मात्र से कमजोर तबके के बीच शिक्षा का उजियारा फैलना होता तो न जाने कितनी जिदगियां रोशन हो चुकी होतीं। न तो स्कूल प्रबंधन ऐसा चाहते हैं और न ही विभागीय अधिकारियों और प्रशासन का कोई जोर चल रहा है। एक तरफ कोर्ट केस चल रहा है, दूसरी तरफ प्रवेश परीक्षा हो रही है और तीसरी तरफ अभिभावक अधिकारियों के दरवाजे खटखटा रहे हैं। अभिभावकों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि कोर्ट में चल रहा मामला उनके बच्चों के दाखिलों के संबंध में है या नहीं। अधिकारी उन्हें स्कूल भेजते हैं और स्कूल उन्हें तारीख का हवाला देते हैं। अभिभावकों की बस इतनी गुजारिश है कि स्थिति स्पष्ट हो जाए, तारीख पर तारीख से उनका मनोबल ही टूट रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.