वट सावित्री व्रत: छांव के साथ-साथ शीतलता प्रदान करता है बरगद का पेड़
बरगद के पेड़ का न केवल पर्यावरण संतुलन में योगदान है बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। मंदिरों में खासतौर पर पीपल और बरगद के पेड़ मिलते हैं। लोग रोजाना मंदिरों में जाकर इन पेड़ों की पूजा करते हैं।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: बरगद के पेड़ का न केवल पर्यावरण संतुलन में योगदान है बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। मंदिरों में खासतौर पर पीपल और बरगद के पेड़ मिलते हैं। लोग रोजाना मंदिरों में जाकर इन पेड़ों की पूजा करते हैं। धार्मिक महत्व होने के कारण इनको दैवीय पेड़ भी कहा जाता है। 10 जून को वट सावित्री व्रत है। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। कहा जाता है कि वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा कर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले लिए थे।
कृषि विश्वविद्यालय हिसार से सेवानिवृत्त मुख्य वैज्ञानिक डा. नंदलाल भाटिया ने बताया कि बरगद का पेड़ छांव देने के साथ-साथ ठंडक भी देता है। इन पेड़ों की आयु कई सौ साल होती है। एक बार बरगद का पौधा लगाने के बाद इनको ज्यादा देखरेख की जरूरत भी नहीं होती है। बरगद का पौधा तीन से चार फुट गहरे गड्ढे में लगाएं। इसमें गोबर की खाद का प्रयोग करें। पौधा लगाने के लिए सही समय मानसून और फरवरी व दिसंबर माह है। इसके अलावा पौधा शाम को पांच बजे के बाद लगाएं ताकि रात के समय ठंडक से वह ठीक से जम सके। डा. नंदलाल भाटिया का कहना है कि शहर में कई जगहें ऐसी हैं जहां पर पांच सौ साल पुराने बरगद के पेड़ भी मिलते हैं। पहले के समय में गांवों में मुख्य जगहों, चौराहों पर बरगद के पेड़ देखने को मिलते थे। वट सावित्री व्रत के लिए मंदिर में जाकर बरगद के पेड़ की पूजा करती हूं। इस बार मैंने संकल्प लिया है कि मैं अपनी सोसायटी में ही बरगद का पौधा लगाउंगी और अन्य लोगों को भी पौधारोपण के लिए प्रेरित करूंगी।
- कविता, सेक्टर 104 निवासी वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा का बहुत महत्व है। यह पेड़ अन्य से पांच गुणा अधिक आक्सीजन देता है। महामारी में अपनों को आक्सीजन की कमी के चलते खो दिया है इसलिए इस बार मैं ऐसे पौधे लगाउंगी जो आक्सीजन देते हैं।
- मीनाक्षी पांडेय, गोदरेज समिट सोसायटी