बैलेंस शीट: यशलोक सिंह
आइटी-आइटीइएस कंपनियों द्वारा वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) को स्थायी बना दिया गया है। इसका असर यह हुआ कि जहां हमेशा रौनक छाई रहती थी अब वहां सन्नाटा पसरा रहता है।
वर्क फ्रॉम होम में गुम हुई साइबर हब की रौनक
आइटी-आइटीइएस कंपनियों द्वारा वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) को स्थायी बना दिया गया है। इसका असर यह हुआ कि जहां हमेशा रौनक छाई रहती थी, अब वहां सन्नाटा पसरा रहता है। हम बात कर रहे हैं अपने आकर्षण और आधुनिक जीवनशैली से हर किसी को अपनी ओर खींचने वाले डीएलएफ साइबर हब की। कोविड-19 महामारी की दस्तक के साथ आए लॉकडाउन से इसकी रौनक पर काली छाया पड़ गई है। जब लॉकडाउन का दौर खत्म हुआ तो लगा कि अब यहां फिर भी स्थितियां बदलेंगी और औद्योगिक क्षेत्रों की तरह यहां भी लोगों की चहलकदमी बढ़ेगी, मगर ऐसा नहीं हुआ। साइबर हब स्थित एक आइटी कंपनी में अधिकारी रजत बताते हैं कि कंपनी के ज्यादातर पेशेवर अपने घरों से काम कर रहे हैं, मगर उन्हें महीने में चार से पांच दिन ऑफिस आना पड़ता है। यहां आते हैं तो लगता ही नहीं कि यह वही पुराना साइबर हब है। क्या करके मानोगे
हे कोरोना वायरस, क्या करके मानोगे। ग्राहक घटा दिए, आमदनी घटा दी। अब क्या काम धंधा भी बंद कराने पर आमादा हो? गुरुग्राम का कारोबारी वर्ग इस महामारी से बुरी तरह त्रस्त है। हर किसी को अपने कारोबार को लेकर काफी चिता है। एक समय ऐसा लगने लगा था कि कारोबार की दुनिया में सब कुछ पटरी पर लौट रहा है। तभी कोरोना वायरस का संक्रमण फिर से तीव्र हो गया। इससे बाजारों में लौट रही थोड़ी-बहुत रौनक फिर से फीकी पड़ गई है। ग्राहक बाजारों से दूरी बनाने लगे हैं। सेक्टर-14 स्थित बाजार में रेडीमेड कपड़ों के कारोबारी विवेक राव कहते हैं कि कोरोना महामारी की मार अब असहनीय हो गई है। ग्राहक बढ़ने के स्थान पर फिर से कम होने लगे हैं। सदर बाजार के व्यापारियों का कहना है कि जैसे-जैसे कोरोना का ग्राफ जिले में बढ़ता जा रहा है, उनके कारोबार का ग्राफ गिरता जा रहा है। खाली बैठने से तो नहीं चलेगा काम
बिहार के मुंगेर जिला निवासी पूरन यादव बताते हैं कि वह उद्योग विहार में एक वस्त्र निर्माता कंपनी में बतौर कटिग मास्टर काम करते थे। कोरोना महामारी के बाद जब फैक्टरी में काम बंद हुआ तो वह अपने गृह राज्य चले गए थे। 28 अगस्त को वह गुरुग्राम लौट आए और जब अगले दिन फैक्टरी गए तो उन्हें बताया गया कि उनकी नौकरी तो सुरक्षित है, मगर अभी कंपनी के पास काम नहीं है। अक्टूबर में काम शुरू होते ही उन्हें बुला लिया जाएगा। पूरन को इस बात से बड़ी राहत मिली है कि आखिरकार उनकी नौकरी सुरक्षित है। वह कहते हैं कि खाली बैठने से गुजारा तो होने वाला नहीं है। कमरे का किराया भी देना है। ऐसे में उन्होंने रेहड़ी पर सब्जी बेचना शुरू कर दिया। उनके जैसे और भी कई औद्योगिक कामगार हैं जिन्होंने फिलहाल खाली बैठने के स्थान पर कुछ न कुछ वैकल्पिक रोजगार ढूंढ लिया।
कारोबार छोड़ कूड़े की चिता करें
फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैर-खतरनाक कूड़े को कैसे उठवाएं, इसे लेकर आइएमटी मानेसर के उद्यमी काफी समय से परेशान हैं। अब समस्या इतनी बढ़ गई है कि उद्यमियों को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें। मानेसर क्षेत्र में फैक्ट्री चलाने वाले उद्यमी एमके जैन का कहना है कि कोरोना महामारी से उपजे संकट में वह अपने कारोबार की चिता करें या कूड़े के बारे में। वह बताते हैं कि हर तीसरे-चौथे दिन फैक्ट्री का गार्ड उनके सामने हाजिर होता है और कहता है कि साहब कूड़ा उठवाने का इंतजाम कीजिए। बड़ी दिक्कत हो गई। यह आए दिन की समस्या हो गई है। उद्यमियों का कहना है कि हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एचएसआइआइडीसी) को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि जिससे फैक्ट्री परिसरों से निकलने वाला कूड़ा प्रतिदिन उठवाया जा सके। अभी फैक्ट्री मालिकों को खुद ही निजी स्तर पर कूड़ा उठवाने का प्रबंध करना होता है।