मिट्टी खुद बताएगी अपने सीने पर पराली जलने की पीड़ा
गेहूं का सीजन खत्म हो रहा है। इसके बाद फिर आएगा धान का सीजन। इस दौरान तकरीबन डेढ़-दो माह का गैप होगा। इसी गैप का लाभ उठाकर कृषि वैज्ञानिक अभी से पराली प्रबंधन के तथ्यात्मक पहलुओं का अध्ययन शुरू कर दिया है। अध्ययन का आधार पराली जलाने व न जलाने वाले खेतों की मिट्टी को बनाया गया है। ये मिट्टी खुद अपने सीने पर जलने वाली पीड़ा वैज्ञानिकों की स्टडी के माध्यम से बताएगी। बस करीब एक माह का इंतजार कीजिए। इतने में रिपोर्ट आ जाएगी। ऐसी उम्मीद वैज्ञानिकों ने जताई है।
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद
गेहूं का सीजन खत्म हो रहा है। इसके बाद फिर आएगा धान का सीजन। इस दौरान तकरीबन डेढ़-दो माह का गैप होगा। इसी गैप का लाभ उठाकर कृषि वैज्ञानिक अभी से पराली प्रबंधन के तथ्यात्मक पहलुओं का अध्ययन शुरू कर दिया है। अध्ययन का आधार पराली जलाने व न जलाने वाले खेतों की मिट्टी को बनाया गया है। ये मिट्टी खुद अपने सीने पर जलने वाली पीड़ा वैज्ञानिकों की स्टडी के माध्यम से बताएगी। बस, करीब एक माह का इंतजार कीजिए। इतने में रिपोर्ट आ जाएगी। ऐसी उम्मीद वैज्ञानिकों ने जताई है।
दरअसल, शनिवार को जिले के गांव हसंगा में करनाल स्थित केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान तथा हिसार में चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक क्रमश: डा. सुरेश कुमार एवं डॉ. मनोज कुमार ने गांव हसंगा में मिट्टी के सैंपल लिये।
उन्होंने उन खेतों का चयन किया जहां पराली प्रबंधन किया गया था और जहां खेतों में पराली जलाई गई थी। पराली मिट्टी में मिलाने वाले किसानों के खेत से मिट्टी के सैंपल भरे। दो तरह की जमीनों की मिट्टी से यह निर्धारित किया जाएगा कि किस जमीन में सूक्ष्म पोषक तत्वों का कितना नुकसान अथवा फायदा पहुंचता है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पराली संबंधी जमीन की मिट्टी के अध्ययन के आधार पर खेतों में खाद की जरूरतों का हिसाब भी लगाया जा सकेगा। हसंगा के किसान सूरजभान के पराली प्रबंधन से प्रेरित कृषि वैज्ञानिकों ने उनकी जमीन से मिट्टी ली है। वैज्ञानिकों का मानना है कि खेतों में ही पराली जलाने के अनेक फायदे सामने आएंगे। -------------------------------
फसलों के साथ-साथ हमने दोनों तरह की जमीन देखी है। यह प्रक्रिया सभी जिलों में चलेगी। मिट्टी के सैंपलों की जांच करनाल स्थित हमारी लैब में ही की जाएगी। सभी जिलों की रिपोर्ट कंपाइल करने में वक्त लग सकता है। - डा. सुरेश कुमार, वैज्ञानिक केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल।