सत्ता का घमासान, मंडी में धान, किसान परेशान
जागरण संवाददाता फतेहाबाद जैसे-जैसे मतदान का समय निकट आ रहा है चुनाव प्रचार भी गति पक
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद : जैसे-जैसे मतदान का समय निकट आ रहा है, चुनाव प्रचार भी गति पकड़ रहा है। सत्ता के लिए शुरू हुए घमासान में किसान व उनके मुद्दे पिछड़ गए हैं। कई पार्टियों के घोषणा पत्र भी आ चुके हैं, लेकिन उनमें किसान से जुड़ी बुनियादी समस्याओं को दूर करने का जिक्र तक नहीं है। सत्ता के लिए चुनावी अभियान तेज होने के साथ अनाज मंडी में धान व कपास की आवक भी जोर पकड़ रही है। परंतु चुनावों में राजनीतिक दलों के द्वारा किसान के मुद्दे जस के तस बने हुए हैं।
शनिवार को फतेहाबाद अनाज मंडी में धान के साथ कपास की कई ढेरियां लगी हुई थीं यूं कहें की अनाज मंडी फसलों से सटी है। किसान एक दूसरे से हाल चाल पूछने की बजाए चुनावी चर्चा में व्यस्त। चुनावी चर्चा में किसान अपनी दुखभरी व्यथा भी दोहराने से नहीं भूलते। नरमे का भाव किसानों को समर्थन मूल्य से 400 से 500 रुपये कम मिल रहा है यही हाल परमल धान उत्पादक किसानों के साथ हो रहा है। नमी के नाम पर रुपये काटे जा रहे है। ग्वार व बाजरा खरीद में कमोबेश यही स्थिति बनी हुई है। अब तक जिन पार्टियों ने घोषणापत्र जारी किया है। उनमें सभी ने कर्जमाफी को ही किसानों के लिए बड़ा मुद्दा बनाया है। लेकिन मंडी में आए किसान इस घोषणा से खुश नहीं है। न ही सालाना छह हजार रुपये से। किसानों का कहना है कि उनकी अनेक अन्य मांगें है। पहले उनको पूरा किया जाए।--------------------------------------------------
यूं छलका किसानों का दर्द
मंडी में आए गांव बीघड़ के किसान मनप्रीत ने बताया कि वह 40 क्विंटल नरमा मंडी में बेचने लाया था। जो 5130 रुपये प्रति क्विंटल बिका। जबकि समर्थन मूल्य 5450 रुपये प्रति क्विंटल है। ऐसे में उसे हजारों रुपये का नुकसान हो गया। जो सरकार के सालाना छह हजार रुपये से कही गुणा है। वहीं हिजरावां खुर्द के किसान हरबंश सिंह ने बताया कि अब सब राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में ऋण माफी की बात कर रहे है। जबकि एक भी फसल को समर्थन मूल्य नहीं मिलता। ऐसे में जब तक किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही नहीं बिकेगी तो किसान का कर्ज यू ही बना रहेगा।
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बुनियादी समस्या का हो निदान :
गांव भिरड़ाना के किसान राकेश कुमार व झलनिया के कृष्ण कुमार का कहना है कि किसानों की बुनियादी समस्या के समाधान की जरूरत है। परंतु कोई भी राजनीतिक पार्टी इस तरफ ध्यान नहीं दे रही। दुखद तो यह है कि सभी राजनेता अपने प्रोफाइल में किसान लिखते है, लेकिन राजनीति पार्टी में खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने वाले नेता ही नहीं है। किसानों की मांग हैं कि फसलें तो समर्थन मूल्य पर बिके। अब कपास, बाजारा, मूंगफली व मूंग सहित अनेक खरीफ फसलों में से एक भी फसल समर्थन मूल्य पर नहीं बिक रही। न ही पशुओं के नस्ल सुधार पर कार्यक्रम तय हुआ। मंडी में भी किसानों का शोषण होता है। निगरानी व्यवस्था भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।