लोग हुए स्वास्थ्य के प्रति सजग, फिर बढ़ा पीतल के बर्तनों का प्रयोग
जासं रतिया गली मोहल्लों में कुछ वर्ष पहले सुनाई दी जाने वाली जो आवाज.. भांडे कली करा लो
जासं, रतिया : गली मोहल्लों में कुछ वर्ष पहले सुनाई दी जाने वाली जो आवाज.. भांडे कली करा लो, सुनाई पड़नी बंद सी हो गई थी। लेकिन अब दोबारा लोगों का रुझान पीतल के बर्तनों की तरफ होने से भांडे कली करवा लो वाली आवाज दोबारा सुनाई देने लग गई है। इस बारे में पिछले 30 वर्षाें से बर्तन कली का कार्य करने वाले गांव कलोठा निवासी सतपाल का कहना है कि करीब आठ से 10 वर्ष पहले लोगों ने आधुनिकता की होड़ में पड़ कर पीतल के बर्तनों का प्रयोग लगभग बंद कर दिया था जिसके चलते लोगों द्वारा पीतल के बर्तनों को कली करवाना बंद कर कर दिया। ऐसे में उनका बाप-दादा के समय से चल रहा उनका यह धंधा लगभग चौपट हो गया था लेकिन अब लोग अपनी सेहत को लेकर फिर जागरूक होने लग गए हैं। सतपाल के अनुसार काफी लोग स्टील, एल्मुनियम की बजाय अब फिर पीतल और मिट्टी के बर्तन प्रयोग करने लगे हैं। इस कारण लोग द्वारा अपने पीतल के बर्तनों को दोबारा कली करवाना शुरू कर दिया है। सतपाल का कहना है कि पहले उसके पिता, दादा जब यह कार्य करते थे तब जो बर्तनों पर कली की जाती है उसकी तारे 200 किलो के हिसाब से मिलती थी लेकिन अब महंगाई के दौर में वही तारे 4000 किलो के हिसाब से मिलने लगी हैं और कोयले के दाम भी काफी बढ़ गए हैं जिसके कारण बर्तन कली करने के रेट भी बढ़ गए हैं सतपाल के अनुसार पुराने बुजुर्ग लोग पीतल के बर्तन इसलिए प्रयोग करते थे क्योंकि पीतल के बर्तन में बनाया गया खाना ना केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि कई बीमारियों को दूर भगाने के अलावा पेट को शीतलता प्रदान करता है। सतपाल के अनुसार पहले काफी संख्या में लोग बर्तन को कली करने का कार्य करते थे लेकिन लोगों का रुझान पीतल के बर्तनों की तरफ कम होने के चलते पिछले कुछ समय से क्षेत्र में कुछ इक्का-दुक्का संख्या में लोग कली का कार्य करते थे तथा कुछ वर्ष पूर्व हम लोग यह कार्य छोड़ कर अन्य मेहनत मजदूरी का अन्य कार्य भी करने लगे थे। पीतल के बर्तनों का चलन दोबारा हो जाने से बर्तनों पर कली करवाने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है जिसके चलते उन्होंने भी दोबारा इस काम को अपना लिया है। सतपाल के अनुसार मैं पिछले कुछ महीनों से दोबारा प्रतिदिन विभिन्न गांवों व शहर में कली करने जाता हूं तथा अब दोबारा इस धंधे से उनकी दिहाड़ी बनने लगी है जिससे उनके परिवार की रोजी रोटी अच्छी चलने लग गई है।