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दो बच्चों संग स्कूल पढ़ने जाती थी दिव्‍यांग सुनीता, हासिल की कामयाबी की बुलंदी

दो बच्‍चों की मां सुनीता ने 12वीं की परीक्षा 85 फीसदी अंकों से पास की है। उसकी राह न तो गरीबी रोक पाई और न ही उसकी दिव्‍यांगता। वह अपने बच्‍चों संग पढ़ने स्‍कूल जाती थी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 21 May 2018 02:46 PM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 09:16 AM (IST)
दो बच्चों संग स्कूल पढ़ने जाती थी दिव्‍यांग सुनीता, हासिल की कामयाबी की बुलंदी
दो बच्चों संग स्कूल पढ़ने जाती थी दिव्‍यांग सुनीता, हासिल की कामयाबी की बुलंदी

फतेहाबाद, [कप्तान आर्य]। अाम ताैर पर कहा जाता है कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती और लगन से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है, लेकिन 27 साल की सुनीता ने जो किया वह बेहद खास है। जिले के गोरखपुर गांव की दिव्यांग सुनीता ने दो बच्चों की मां हाेने के बावजूद जो जज्‍बा दिखाया उसकी मिसाल बहुत कम मिलती है। वह बिना किसी हिचक के अपने बच्‍चों के साथ स्‍कूल पढ़ने जाती थी। हरियाणा बोर्ड की परीक्षा में सुनीता ने 85 फीसद अंक प्राप्‍त किए हैं। गरीब परिवार की सुनीता के पति मजदूरी करते हैं, लेकिन शिक्षा के लिए पत्‍नी का पूरा साथ दिया।

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जेबीटी कर अध्यापिका बनाना चाहती है सुनीता

एक खास बात यह भी है कि सुनीता के दोनों बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, वह भी उनके साथ उसी स्कूल में पढ़ने जाती थी। सुनीता इस बात को लेकर खुश है कि उसने स्कूली पढ़ाई पूरी कर ली है और अब कॉलेज में कदम रखेगी। उसकी ख्वाहिश जेबीटी कर अध्यापिका बनने की है।

सुनीता का बेटा डेविड तीसरी कक्षा व लड़की जेविका छठी कक्षा में पढ़ती है। सुनीता दिव्यांग होने के कारण दूर तक चलने में असमर्थ है। इसके बावजूद उसने निश्चय किया कि वह घरेलू जिम्मेदारी के साथ पढ़ाई भी करेगी। सुनीता के जज्‍बे और कामयाबी पर गांव के लोगों को भी नाज है।

सुनीता का पति स्कूल छोड़ने जाता था तीनों को

सुनीता दिव्यांग होने के कारण ज्यादा चल फिर नहीं सकती। उनका घर गांव से तीन किलोमीटर दूर खेतों में है। इसलिए सुनीता का पति रामचंद्र पत्नी व दोनों बच्चों को रोजाना स्कूल छोड़ने जाता था। इसके बाद छुट्टी होने पर लेकर भी आता था। परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। पति रामचंद्र मजदूरी करता है। उसके पास केवल एक एकड़ जमीन है। उसमें गुजारे लायक अनाज हो जाता है। सुनीता स्कूल के बाद घर का काम करती थी और अपने बच्चों को भी पढ़ाती थी।

स्कूल में मम्मी नहीं, नाम से पुकारते थे बच्चे

स्कूल के नियम न बदले। दूसरे बच्चे देखकर अचंभित न हों। इसलिए उनके दोनों बच्चे स्कूल में सुनीता को मां नहीं करते, बल्कि नाम लेकर पुकारते थे। स्कूल में दूसरे बच्चों को जरा सा अंदाजा नहीं हो पाता था कि दोनों बच्चे और सुनीता का क्‍या रिश्‍ता हैं।

मायके में पढ़ाई न करने का मलाल

सुनीता को मलाल था कि वह मायके में नहीं पढ़ सकी। ससुराल गोरखपुर गांव आने पर उसने अपनी परिस्थितियों से लड़कर आठवीं, दसवीं व अब बारहवीं की परीक्षा पास की है। सुनीता का कहना है कि वह जेबीटी करके अध्यापिका बनना चाहती है। इस सपने को पूरा करने के लिए वह पुरजोर मेहनत कर रही है। इस काम में उसके पति का पूरा सहयोग रहा है।


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