हर गांव हो गोशाला, बेसहारा को मिले सहारा
जागरण संवाददाता फतेहाबाद जिले में गोशाला और नंदीशाला की संख्या कम होने के कारण सड़
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद:
जिले में गोशाला और नंदीशाला की संख्या कम होने के कारण सड़कों पर बेसहारा पशु घूमते नजर आते हैं। शहरों में तो जिला प्रशासन इन गोवंशों को पकड़वा देगा, लेकिन गांवों की सड़कों पर घूमने वाले इन गोवंशों से कैसे मुक्ति मिलेगी। इसका एक ही समाधान है कि प्रत्येक गांव में गोशाला बनाई जाए, लेकिन यह बिना सहायता के होना संभव नहीं है। इसके लिए ग्रामीणों को अपने स्तर पर अभियान चलाना होगा। साथ ही जिला प्रशासन और सरकार की तरफ से सहायता मिले तो यह समस्या दूर हो सकती है। अगर प्रत्येक गांव में गोशाला ना बन सके तो तीन-चार गांवों को एक साथ मिलाकर गोशाला बनाई जा सकती है। इसके लिए धर्म गुरुओं को आगे आना होगा। लोगों से आह्वान करना होगा कि गायों की सेवा सबसे बड़कर है। वहीं माना जाता है कि जिस गांव में गोशाला बनी हुई है वहां पर कभी अकाल भी नहीं पड़ा है।
जिले का जिक्र करे तो जिले में 258 ग्राम पंचायतें है, लेकिन गोशाला केवल 62 गांवों में ही बनी हुई। ऐसे में कैसे संभव हो जाए कि इन गोवंशों को इन्हीं गोशाला में रखा जाए। इसके लिए प्रत्येक गांव में गोशाना का निर्माण न हो बल्कि तीन-चार आसपास के गांवों को मिलाकर एक गोशाला का निर्माण किया जा सकता है। जिले में इन 62 गोशालाओं और नौ नंदीशाला में करीब 65000 गोवंश है। इनकी देखभाल करने में लाखों रुपये खर्च हो रहे है। सरकार की तरफ से मिले सहायता
सरकार की तरफ से अब केवल 150 रुपये प्रति पशु के हिसाब से साल में एक बार मिल रहा है। ऐसे में जिले में 65000 गोवंश है। ऐसे में प्रत्येक पशु के लिए 20 पैसे प्रति दिन आ रहा है। गोशाला प्रबंधक की माने तो एक पशु पर 25 रुपये खर्च हो रहा है। ऐसे में 20 पैसे से कैसे समाधान होगा। सरकार की ओर से सर्वे कराना चाहिए जिस गांव की गोशाला की हालत पतली है उसे आर्थिक सहायता दे। अगर ऐसा होगा तो सड़कों पर घूमने वाले गोवंशों से मुक्ति मिल जाएगी। लॉकडाउन में हालत पतली
पहले गांव की तरफ से प्रत्येक गोशाला में सत्संग कराया जाता था। सत्संग का एक ही उद्देश्य होता था कि गांव में हवन होने से शांति बनी रहेगी और जो दान आएगा, उससे गोशाला संचालन में प्रयोग किया जाएगा, लेकिन पिछले छह महीने से सत्संग और धार्मिक कार्यक्रम भी बंद पड़े है। ऐसे में इन गोशालाओं में आर्थिक संकट आ गया है। गोशाला प्रबंधक खुद मान रहे है कि अगले दो महीने के बाद चारे का संकट भी पैदा हो जाएगा। शहर के जो दानी सज्जन है वो शहरों की गोशाला में दान दे रहे है। ऐसे में गांव के लोगों द्वारा प्रत्येक साल रुपये इकट्ठे किए जा रहे ताकि इन गोशालाओं को चलाया जा सके। आंकड़ों पर नजर
जिले में ग्राम पंचायतें : 258
जिले में गोशालाएं : 62
इनमें गोवंश : 50,000 जिले में नंदीशाला : 9
इनमें गोवंश : 15,000
कुल गोवंश : 65,000 ऐसी गोशालाओं से लेनी होगी प्रेरणा
गांव बड़ोपल की श्रीकृष्ण गोशाला में गोमूत्र से अर्क बनाना शुरू कर दिया है। गांव के सरपंच जोगिद्र पूनिया व गोशाला के प्रधान जगदीश थापन के प्रयास से इस गोशाला को दान की जरूरत नहीं बल्कि खुद कमाई कर रही है। शुरू में गोमूत्र से अर्क बनाया गया। उसके बाद साबून से लेकर हर प्रकार के प्रोडेक्ट तैयार किए जा रहे है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस प्रोडेक्ट को बेचने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ रहा, बल्कि आसपास के लोग अपने आप ही ले जाते है। ऐसे में जिले की ऐसी गोशाला है जो अपने आप में मिशाल है। अन्य गोशाला प्रबंधक को भी इससे प्रेरेणा लेनी चाहिए। सरकार जो गोशालाओं के रख-रखाव के लिए जो राशि दे रही है उसे बढ़ाना चाहिए। अगर ऐसा हो गया तो जो सड़कों पर गोवंश घूमते नजर आ रहे है वो नहीं आएंगे। वही लोगों को प्रेरित करना चाहिए कि घर के अंदर ही गाय पाले। गोशाला खोलने का अंतिम उपाय नहीं है। लोगों को जागरूक करना चाहिए कि गाय भैंस से अधिक अच्छी है। अगर ऐसा करने में हम सफल हो गए तो इन गोवंशों से मुक्ति मिल जाएगी।
शमशेर आर्य, प्रदेशाध्यक्ष, हरियाणा राज्य गोशाला। आज अनेक गांवों में जो गोशाला बनी हुई है उनकी आर्थिक स्थित खराब है। आने वाले कुछ दिनों में चारे का संकट पैदा हो जाएगा। ऐसे में हमें प्रयास करना चाहिए कि चारा भी देना चाहिए। वहीं हर गांव में छोटी-छोटी गोशाला का निर्माण हो जाए तो लोग अपने आप ही दान देने शुरू कर देंगे। गांव में एक व्यवस्था बना दी जाए कि प्रति एकड़ के हिसाब से साल में एक बार रुपये देंगे। जिससे लोगों पर बोझ भी नहीं बढ़ेगा और इस समस्या का निदान भी हो जाएगा।
अशोक भुक्कर, कार्यवाहक प्रधान गोशाला संघ फतेहाबाद। वर्जन
सरकार ने नंदीशाला आदि खोल दी है। लेकिन इसमें सहयोग राशि भी बढ़ानी चाहिए। वहीं लोगों को चाहिए कि सप्ताह में एक बार अपने घर से चारा आदि डालना चाहिए। वहीं नगरपरिषद व सरकारी नौकरी में लगे कर्मचारियों को भी दान आदि देना चाहिए। अगर ऐसा करेंगे तो नंदीशालाओं में भी इन गोवंशों को रखा जा सकता है।
धर्मपाल सैनी, संयोजक नंदीशाला टोहाना।