.. दरकती शिक्षा, दर-ब-दर शिक्षक, दुखी भविष्य
मणिकांत मयंक फतेहाबाद पचास दिन से ज्यादा हो गए लॉकडाउन के। इस अवधि में सुशिक्षित समाज
मणिकांत मयंक, फतेहाबाद :
पचास दिन से ज्यादा हो गए लॉकडाउन के। इस अवधि में सुशिक्षित समाज के लिए बेहद जरूरी शिक्षा के तमाम खंभे दरकने लगे हैं। बुनियाद ही ऑनलाइन के प्रयोग में हिलती दिखाई दे रही है। दरकती शिक्षा का आलम यह कि प्राइमरी से उच्च शिक्षा तक से जुड़े देश के भविष्य कहे जाने वाले विद्यार्थी दुखी हैं। भविष्य की जड़ मजबूत करने वाले शिक्षक खुद कोरोना काल में दर-ब-दर हो गए हैं।
दरअसल, प्रदेश के हजारों शिक्षाकर्मियों को सरकारी व्यवस्था ने गैर-शैक्षिक कार्यों का अतिरिक्त भार दे दिया है। सरकार की नजर में हर मर्ज की दवा बने शिक्षक इन दिनों अध्यापन से दूर कंट्रोल रूम में सेवाएं दे रहे हैं। तीन शिफ्टों में। एक शिफ्ट में दो शिक्षक। सरकारी व्यवस्था को कंट्रोल करने में अहम भूमिका दे रहे हैं। व्यवस्था का आलम यह कि शिक्षकों की ड्यूटी अनाज मंडियों में भी लगा दी गई है। नागपुर के स्कूल में सेवारत एक शिक्षक तो फतेहाबाद की अनाज मंडी में श्रमिकों को सैनिटाइजेशन का पाठ पढ़ा रहे हैं। वह बताते हैं कि सुबह नौ बजे अनाज मंडी पहुंच जाते हैं। शाम के पांच तो मंडी में बज ही जाते हैं। ये गुरुजी अकेले नहीं हैं व्यवस्था की मंडी में। हर मंडी में कम से कम दो शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। ड्यूटी के प्रति शिक्षा महकमे की संवेदना इतनी कि लॉकडाउन के दौरान भी शिक्षकों कर घर-घर जाकर फैमिली आइडी के सर्वे का कार्यभार दिया गया है। इन्हें ऑनलाइन पढ़ाना भी है। घर-घर जाकर बच्चों के राशन बांटना, फीडबैक रिपोर्ट, होमवर्क आदि तो दिनचर्या में शुमार है ही। उधर, स्कूल प्रबंधन कमेटी के सदस्य मोनू के पिता सुभाष कहते हैं कि स्कूली शिक्षा की तो चूलें ही हिल गईं। पता नहीं इस देश के नौनिहालों की शिक्षा का क्या होगा?
----------------------------------------------
लॉकडाउन में छूट का प्रतिकूल प्रभाव
शिक्षाविद देवेंद्र सिंह दहिया कहते हैं कि लॉकडाउन में छूट का प्रतिकूल असर वैकल्पिक ऑनलाइन शिक्षा पर पड़ रहा है। बच्चों के अभिभावक कही दिहाड़ी तो कहीं अन्य रोजगार के लिए चले जाते हैं। बच्चों को घर में मोबाइल फोन उपलब्ध नहीं रह पाता। कई अभिभावक कहते हैं, पढ़ाना है तो सुबह सात से आठ बजे और शाम को सात बजे के बाद पढ़ाओ।
-----------------------------------------
मूल कार्य से शिक्षकों को भटका दिया गया है। दूसरे कार्यों में लगाना कतई अच्छी बात नहीं है। अच्छा होता कि इनकी ड्यूटी शिक्षण कार्यो में ही लगाई जाती। यूं तो शिक्षा टूट ही जाएगी।
- दिलीप बिश्नोई, राज्य कानूनी सलाहकार, रा.प्रा. शिक्षक संघ।
----------------------------------------------
सरकार के नीतिगत फैसलों को आकार देना शिक्षकों की ड्यूटी है। शिक्षक राष्ट्र-निर्माता होते हैं। बच्चों के भविष्य संवार रहे हैं। शिक्षा कहीं से भी टूटी नहीं है।
- प्रदीप डागर, निदेशक, मौलिक शिक्षा हरियाणा।
---------------------------------------------