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.. आ जाओ री गोरैया कि अब तो आगन सूने

जागरण संवाददाता फतेहाबाद बीघड़ रोड इलाके में अकस्मात ही सही गोरैया अपना वजूद दिखा जाती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2020 11:40 PM (IST)Updated: Sat, 21 Mar 2020 06:16 AM (IST)
.. आ जाओ री गोरैया कि अब तो आगन सूने
.. आ जाओ री गोरैया कि अब तो आगन सूने

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद : बीघड़ रोड इलाके में अकस्मात ही सही गोरैया अपना वजूद दिखा जाती है। इसी इलाके की 83 वर्षीय सोमवती यही बताती हैं। वह गोरैया के वजूद पर सवाल के साथ बताती हैं कि उनका गाव से वास्ता रहा है। आगन और दालान में सुबह-सवेरे गोरैया की चहचहाहट संगीत की अनुभूति देती थी। करीब पंद्रह-बीस साल पहले तक। वह झुंड में आना और दिलोदिमाग पर छा जाना, आज भी याद है। सोमवती इतना कह अतीत से वर्तमान में लौटती हैं। कहती हैं, अब वो नजारा ही कहा? वक्त ने भी क्या करवट ली है?

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सोमवती के ऐसे सवाल जायज हैं। वन्य प्राणी विभाग भी मानता है कि जिले के दो ही गावों-ढाणी गोपाल व ढिंगसरा में 300-300 गोरैया की पहचान हुई है। इतनी ही गोरैया है। बेशक, हरियाणा सरकार ने साल-दो साल पहले 50 लाख रुपये खर्च कर 300 घोंसले बनाने की बात कही थी। पर, कागजों से बाहर नहीं निकल पाई सरकार की यह मंशा। यहा के वन्य प्राणी अधिकारी बताते हैं कि इस जिले में गोरैया के लिए कुछ भी नहीं है। भविष्य में जो हो..। केवल सरकारी नीयत को ही दोष नहीं दिया जा सकता है। हकीकत तो यह कि कभी घरेलू गोरैया अब एक दुर्लभ पक्षी बन गई है। पूरे विश्व से विलुप्त होती जा रही है। हमारे घर-आगन में फुदकते हुए चहलकदमी करने वाली गोरैया कभी हम सबके जीवन का हिस्सा थी, अब दिखाई तक नहीं देती। कई बड़े शहरों से तो गायब ही हो गई है। छोटे शहरों व गावों में अल्पसंख्य ही सही इसे देखा जा सकता है। डर तो इस बात का है कि इस प्रजाति के साथ भी कहीं वैसा न हो जैसा गिद्धों के साथ हो गया। महज दो दशक पहले तक गिद्ध सामान्यतया दिखाई देते थे। आज विलुप्ति के कगार पर है।

एक सच्चाई यह भी है कि घर-आगन-दालान में गोरैया का चहचहाना सबको अच्छा लगता है। लेकिन घरों में उनके लिए जगह नहीं होने के कारण अंध-आधुनिकीकरण की दौड़ ने इस प्यारे पक्षी गोरैया के वजूद को संकट में डाल दिया है। मनुष्य की बदलती जीवन-शैली ने गोरैया के आवास, भोजन व घोंसले बनाने वाले स्थानों को नष्ट कर दिया है। अगर जल्दी ही मानव समाज ने अपने अनियंत्रित विकास को गति देना बंद नहीं किया तो कालातर में यह दुर्लभ वन्य प्राणियों की सरकारी सूची में शामिल हो जाएगी। देर से ही सही इसके विलुप्त होने के खतरे की ओर सरकार का भी ध्यान तो आया है मगर धरातल पर काम सरकारी ही हो रहा है। जन-जन के मानस पटल पर अंकित गोरैया आ भी जाओ..तुम बिन जीवन-आगन सूने पड़े..।


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