Move to Jagran APP

4 करोड़ की जमीन पर था 44 साल से कब्जा, आरटीआइ लगाकर छुड़वाया

राजेश भादू फतेहाबाद गांव माजरा के बलजीत सिंह ने पंचायत की जमीन पर 44 साल पुराना कब्जा

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 11:16 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 06:17 AM (IST)
4 करोड़ की जमीन पर था 44 साल से कब्जा, आरटीआइ लगाकर छुड़वाया
4 करोड़ की जमीन पर था 44 साल से कब्जा, आरटीआइ लगाकर छुड़वाया

राजेश भादू, फतेहाबाद :

loksabha election banner

गांव माजरा के बलजीत सिंह ने पंचायत की जमीन पर 44 साल पुराना कब्जा आरटीआइ लगाकर छुड़वा दिया। करीब चार करोड़ रुपये की मार्केट वेल्यू की जमीन पर कब्जा छुड़वाने के लिए बलजीत सिंह को कई परेशानी आई। कब्जाधारियों ने पहले तो शिकायत वापस लेने के लिए 50 लाख रुपये का प्रलोभन देने की कोशिश की, लेकिन जब शिकायतकर्ता नहीं माना तो कब्जाधारियों ने अपने राजनीतिक रसूख होने का दबाव बनाते हुए उसे जान से मारने की धमकी दी। लेकिन शिकायतकर्ता अपनी शिकायत पर अडिग रहा। उसका साथ तत्कालीन फतेहाबाद के डीडीपीओ राजेश खोथ (वर्तमान में जींद एसडीएम) ने भी बखूबी से साथ दिया। जिसके चलते राजनीतिक परिवार को पंचायत की 82 कनाल 8 मरले जमीन पर किया गया कब्जा छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

अब पंचायत माजरा को प्रति वर्ष कब्जा हटने के जमीन से लाखों रुपये का ठेका मिलता है। जो गांव के विकास पर ही खर्च होता है।

बलजीत सिंह ने बताया कि उनके गांव की पंचायत के पास कितनी जमीन है। इससे जानने के लिए एक आरटीआइ जनवरी 2012 में लगाई। जिसमें पंचायत के तत्कालीन सरपंच सुखविद्र ने जानकारी देते हुए बताया कि पंचायत के पास सिर्फ 23 एकड़ ही जमीन हैं। इसके बाद उसने राजस्व विभाग से पुराना रिकार्ड लिया। जिसमें सामने आया कि पंचायत के पास 33 एकड़ ही जमीन हैं। 10 एकड़ जमीन पर सरपंच खुद व उसके परिवार के लोगों ने कब्जा किया हुआ है। इसके बाद जून 2012 में एसडीएम फतेहाबाद की कोर्ट में केस दायर कर दिया। जो अगस्त 2015 में डीडीपीओ की कोर्ट में चला गया। उस दौरान फतेहाबाद के डीडीपीओ राजेश खोथ थे। उन्होंने मामले को तीव्रता से निपटान शुरू किया। करीब एक वर्ष बाद 10 जून 2016 को उन्होंने माना कि गांव के 9 लोगों ने पंचायत की जमीन पर कब्जा किया हुआ है। उन्होंने कब्जाधारियों को कब्जा छोड़ने के साथ जुर्माना भी लगाया।

------------------------

ये था मामला :

बलजीत ने बताया कि पंचायत की 82 कनाल 7 मरला जमीन पर एक राजनीतिक परिवार को वर्ष 1973 से कब्जा था। इस परिवार ने पंचायत की उक्त जमीन को 1972 में ठेके पर ली। इसके बाद पंचायत की जमीन खुद की पैतृक जमीन के साथ होने के बाद कब्जा कर लिया। यहां तक कि राजस्व विभाग के अधिकारियों से मिलते हुए कब्जाधारियों ने कब्जा की हुई जमीन का विरासत का इंतकाल भी खुद के नाम वर्ष 2011 में करवा लिया। ताकि कब्जा पक्का हो सके।

----------------------

आदेश के बाद नहीं छुड़वाया कब्जा तो फिर लगाइ आरटीआइ :

बलजीत सिंह ने बताया कि डीडीपीओ ने संबंधित कब्जाधारियों पर को कब्जा छोड़ने का आदेश बेशक 10 जून 2016 को दे दिया था। लेकिन संबंधित जमीन करोड़ों रुपये की होने की वजह से तत्कालीन डीसी ने डीडीपीओ के आदेश पर स्टे दे दिया। इसके बाद कब्जाधारी हिसार के आयुक्त के साथ मामला हरियाणा के उच्च न्यायालय तक ले गए। उच्च न्यायालय ने पूरा मामला फरवरी 2017 में खारिज कर दिया। परंतु बाद में कब्जा हटाने के लिए उपायुक्त द्वारा नियुक्त अधिकारी फतेहाबाद के बीडीपीओ ने कार्रवाई नहीं की। इसके बाद उन्होंने फिर से अगस्त 2017 में आरटीआई लगाई। बाद में बीडीपीओ ने कब्जा हटाने की कार्रवाई शुरू की। 14 सितंबर 2017 को कब्जा हटाने के लिए बीडीपीओ व सरपंच पुलिस फोर्स के साथ कब्जाई जमीन छुड़वाने के लिए गए। लेकिन उनके पास जमीन में कब्जा लेने के लिए ट्रैक्टर नहीं था। बिना कब्जा छुड़वाए वापस आने की कोशिश में थे तो बलजीत ने बताया कि उसने खुद का नया ट्रैक्टर व रूटावेटर देकर कब्जा छुटवाया।

---------------------

डीडीपीओ के आदेश के बाद नहीं भरे रुपये :

बलजीत ने बताया कि बेशक कब्जाधारी मुख्त्यार सिंह सदर, सुखविद्र सिंह, प्रवीन, राजरानी, बलदेव सिंह, सुखविद्र सिंह, सुखदेव सिंह, फौजा सिंह ने जमीन पर से कब्जा छोड़ दिया। लेकिन डीडीपीओ राजेश खोथ ने कब्जाधारियों पर पंचायत की जमीन पर कब्जा करके उस पर काश्त करने पर कब्जाधारियों पर जुर्माना भी लगाया था। जो प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष का 10 हजार रुपये हैं। अब शिकायतकर्ता का कहना है कि कब्जाधारियों पर 42 लाख रुपये का जुर्माना बनता हैं। उस जुर्माने को भरवाने के लिए वो लगे हुए है। ताकि पंचायत को बकाया रुपये मिल सके। एकमुश्त मिलने वाली राशि का प्रयोग वे गांव में शिक्षा के सुधार के लिए लगाएंगे।

-----------------

पंचायत की जमीन छुड़वाने में ग्रामीणों ने बहुत सहयोग दिया। वहीं तत्कालीन फतेहाबाद के डीडीपीओ राजेश खोथ ने कब्जा छुड़वाने का केस बिना किसी राजनीति दवाब में आए सुना और फैसला दिया। जबकि तत्कालीन डीसी एनके सौलंकी ने डीडीपीओ राजेश खोथ के फैसले पर कब्जाधारियों को स्टे दे दिया। हालांकि बाद में उन्हें स्टे हटा हटाना पड़ा।

- बलजीत सिंह, आरटीआइ एक्टिविस्ट, गांव माजरा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.