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तंत्र के गण : सामाजिक समरसता है औद्योगिक नगरी की पहचान

देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। सभी धर्मों के लोगों में महोत्सव को लेकर उत्साह है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 10:52 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 10:52 PM (IST)
तंत्र के गण : सामाजिक समरसता है औद्योगिक नगरी की पहचान
तंत्र के गण : सामाजिक समरसता है औद्योगिक नगरी की पहचान

सुशील भाटिया, फरीदाबाद

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देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। सभी धर्मों के लोगों में महोत्सव को लेकर उत्साह है। राजधानी दिल्ली से सटी औद्योगिक नगरी फरीदाबाद एक लघु भारत की तरह है, जहां सभी धर्मों, संप्रदाय, देश के विभिन्न प्रदेशों की अलग-अलग संस्कृति, सभ्यता से जुड़े लोग रहते हैं और यहां के निवासी खुशनसीब हैं कि कभी भी यहां न तो सांप्रदायिक दंगे हुए और न ही जातीय हिसा।

हिदू-सिखों में रोटी-बेटी का रिश्ता

वर्ष 1984 में देश के विभिन्न हिस्सों में, यहां तक की राजधानी दिल्ली में सिख दंगे हुए और निर्दोष सिख दंगों की आग में झुलसे, वहीं अपने शहर में ऐसी कोई बड़ी घटना नहीं हुई। यहां तक कि हिदू भाई सिखों की रक्षा के सुरक्षा कवच बन कर सामने आए। गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव के अवसर पर मुस्लिम विद्वानों ने गुरुद्वारा सिंह सभा सेक्टर-15 में जाकर माथा टेका और सर्व धर्म स्वभाव का उदाहरण प्रस्तुत किया। इससे भी पहले श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के गुरु गद्दी दिवस के 300 साल पूरे होने पर निकले नगर कीर्तन का भी पूरे शहर में हिदू, मुस्लिम, ईसाई भाईयों व संस्थाओं ने जिस जोश व खुशनुमा माहौल में स्वागत सत्कार, अभिनंदन किया था, वो यह साबित करने के लिए काफी है कि अपना जिले के लोगों में सामाजिक समरसता कूट-कूट कर भरी है।

यहां ईद की खुशियों में हिदू भाई उसी शिद्दत से शरीक होते हैं, तो क्रिसमस के उल्लास में हिदू-ईसाई भाईयों के बीच कोई फर्क नजर नहीं आता। गुरुपर्व पर गुरुद्वारों में हिदू-सिख एक समान समर्पित भाव से सेवा करते हैं। अपने शहर में तो हिदू-सिखों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है।

लघु भारत की मिलती है झलक

हमारे शहर में बंगाल का दुर्गा महोत्सव हो या महाराष्ट्र का परंपरागत गणेशोत्सव, ओडिशा के मूल निवासियों द्वारा निकाली जाने वाली भगवान श्रीजगन्नाथ की रथ यात्रा हो, तमिलों का पर्व पोंगल, केरल का ओणम और पूर्वांचल से जुड़े लोगों का छठ उत्सव आदि सभी उसी शिद्दत व उल्लास के साथ मनाए जाते हैं और सभी एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होकर माहौल को और खुशनुमा तो करते ही हैं, साथ में भारतीय संस्कृति के विभिन्न रूपों को एक सामाजिक समरसता की माला में पिरो कर सही मायने में लघु भारत के सपनों को साकार करते हैं।

मानस की जात सभै एकै पहिचानबो

अभी गत वर्ष कोरोना काल में जब लाकडाउन हुआ, तो दानी सज्जनों ने हर वर्ग, हर धर्म, जाति के जरूरतमंदों की दिल खोल कर सेवा की। यही दानी सज्जन, सामाजिक समरसता को संजो कर रखने वाले लोग की असल मायने में तंत्र के गण हैं। इसमें मदरसा, मस्जिद, ईदगाह, मंदिर, गुरुद्वारा तथा चर्च से जुड़े लोग आगे आए।

मकसद यही कि भाईचारा सर्वोपरि है और गुरु गोबिद सिंह जी ने भी अपनी बाणी में यह फरमाया है मानस की जात सभै एकै पहिचानबो अर्थात मनुष्य एक दूसरे से ऊंच-नीच का व्यवहार करता है, जबकि सब में उसी प्रभु की लौ प्रज्ज्वलित हो रही है। अगर इस कथन के अनुसार सभी मनुष्य व्यवहार करें, ऊंच-नीच का भेद खत्म कर बराबरी का व्यवहार करें, सभी कंधा से कंधा मिलाकर देश को आगे बढ़ाने के लिए काम करें, तो कल्पना करें कि अपना देश कितना शक्तिशाली हो जाएगा। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में हम सबको यही संकल्प लेना होगा।

हमने समाज को जोड़ने के मकसद से कई वर्ष पहले संगठन बनाया था। लोगों में धर्म को लेकर भेदभाव खत्म हो, एकजुटता हो। सभी भाईचारे के साथ रहें। एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल हों। इस तरह की कोशिशों से लोगों की सोच बदली है। मैं दीपावली और होली पर हिदू भाइयों को बधाई देने जाता हूं और वे मेरे यहां ईद पर आते हैं।

-मौलाना जमालुद्दीन, सर्वधर्म संगठन

हम सब एक ईश्वर की संतान हैं। हमारे कर्म ठीक होने चाहिए। कोई भी धर्म बिखराव करना नहीं सिखाता। भाईचारा है, तो शांति है। इसके लिए जरूरी है कि हम एक रहें।

-ब्रह्माकुमारी पूनम, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेवा केंद्र

मैं हुबली से 1990 में फरीदाबाद में आया था, तब यहां सिर्फ घूमने के मकसद से आया था, पर यहां के लोगों का प्यार देख कर यहीं का होकर रह गया। यहां के तीज-त्योहार में शामिल होता हूं। मुझे यहां पूरा मान-सम्मान मिला, मेरा कारोबार यहीं स्थापित हुआ। यह शहर सामाजिक समरसता का उत्कृष्ट उदाहरण है।

-रहमान, स्वर्ण कारोबारी

हमारे यहां की संस्कृति बेहद समृद्ध है। औद्योगिक नगरी की एक खासियत है कि जो भी ईमानदारी व नेकनीयती से यहां आया, तो फिर यहीं का होकर रह गया। इस शहर की धरती से उसकी जड़ें गहरी होती चली गई। इस शहर ने भी उनको पूरा सम्मान व समृद्धता दी। आजादी के अमृत महोत्सव के यही भाव देश के हर क्षेत्र के लोगों में होने चाहिए।

-अजय जुनेजा, उद्योगपति


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