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पराली से जूती, चटाई एवं टोकरी बना देर रहीं पर्यावरण संरक्षण का संदेश

पराली जलाने की नहीं सजाने की वस्तु है। यह संदेश जम्मू कश्मीर से सूरजकुंड मेले में पहली बार आई हस्तशिल्पी दे रही हैं। इन हस्तशिल्पियों ने पराली से बेहद आकर्षक जूतियां चप्पल टोकरी आसन चटाई बनाए हैं। पराली से बने वस्तुएं पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रही हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Feb 2020 07:09 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 06:19 AM (IST)
पराली से जूती, चटाई एवं टोकरी बना देर रहीं पर्यावरण संरक्षण का संदेश
पराली से जूती, चटाई एवं टोकरी बना देर रहीं पर्यावरण संरक्षण का संदेश

अभिषेक शर्मा, फरीदाबाद : पराली जलाने की नहीं, बल्कि सजाने की वस्तु है। यह संदेश जम्मू-कश्मीर से सूरजकुंड मेले में पहली बार आई हस्तशिल्पी दे रही हैं। इन हस्तशिल्पियों ने पराली से बेहद आकर्षक जूतियां, चप्पल, टोकरी, आसन, चटाई बनाए हैं। मेले में पराली से बनी चीजें पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रही हैं। यह हस्तशिल्पी जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के नागसेनी एवं पाडर ब्लॉक से हैं। इन हस्तशिल्पियों का मानना है कि दिवाली के बाद दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में पराली जलाने से प्रदूषण जानलेवा स्तर पर पहुंच जाता है। यदि पराली का सही इस्तेमाल किया जाए, तो इसे आय का जरिया बनाया जा सकता है। दिल्ली के प्रदूषण को देखते ही पराली से सामान बनाने का विचार आया।

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भातन पंचायत की सरपंच सुलोचना ने बताया कि किश्तवाड़ को आतंकी गढ़ माना जाता है। लोगों के पास आय के कोई विशेष साधन उपलब्ध नहीं हैं। खेती से ही जीवनयापन करते हैं। महिलाएं घर पर पराली की वस्तुएं तैयार करती हैं, जिन्हें पुरुष बाजारों में बेचते हैं। मुक्ति सोसायटी ग्रामीण महिलाओं को पराली से वस्तुएं बनाने का प्रशिक्षण देती है। गेहूं, चावल, मक्के और कुदरु घास से चटाई, आसन, चप्पल सहित विभिन्न वस्तुएं बनाती हैं। इसके अलावा महिलाओं को खजूर के पत्तों से चटाई बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। स्वास्थ्य के लिए हैं लाभकारी

सुलोचना ने बताया कि पराली से बनी चप्पलें एवं जूतियां स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। दरअसल यह एक्यूप्रेशर का काम करती हैं, जिससे उच्च रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा यह पूरी तरह प्राकृतिक वस्तुओं से तैयार होने की वजह से पैरों में भी कोई बीमारी नहीं होती है। विश्वपटल तक ले जाने की है तैयारी

सुलोचना ने बताया कि किश्तवाड़ की इस कला को अब विश्व के विभिन्न देशों में ले जाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए वह प्रदेश एवं केंद्र सरकार के बातचीत कर रही हैं, ताकि किश्तवाड़ के निवासी भी देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों की तरह अच्छी आय प्राप्त कर सकें और एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।


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