अनूप की पगड़ी बनी आकर्षण का केंद्र
आन-बान और शान का प्रतीक मानी जाने वाली पगड़ी का प्रचलन पूरे देश में है। पगड़ी हर धर्म के लोग पहनते हैं पर अलग-अलग। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में इसका खूब प्रचलन है।
प्रवीन कौशिक, फरीदाबाद : आन-बान और शान का प्रतीक मानी जाने वाली पगड़ी का प्रचलन पूरे देश में है। पगड़ी हर धर्म के लोग पहनते हैं, पर अलग-अलग। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में इसका खूब प्रचलन है। आज भी बड़े-बड़े चौधरियों की सिर की शान पगड़ी बनी हुई है, पर पगड़ी बांधने की कला हर किसी में नहीं है। चरखी दादरी निवासी अनूप कुमार सूरजकुंड मेले में कमाल की पगड़ी बांधकर देशी-विदेशी पर्यटकों को लुभा रहे हैं। हरियाणा की प्राचीन संस्कृति की झलक के लिए बनाए गए अपना घर में रहने वाले अनूप कुमार बीए प्रथम वर्ष के छात्र हैं। थियेटर और डांस की कला भी अनूप के हुनर को चार-चांद लगा रही है। अनूप मेले में करीब 6 साल से लगातार आ रहे हैं। उन्हें पर्यटन निगम की ओर से विशेष तौर पर पगड़ी बांधने के लिए बुलाया जाता है। अनूप 7 से 8 सेकेंड में हर प्रकार की पगड़ी बांधने में माहिर हैं। इनकी बांधी हुई पगड़ी लोग घर में सुरक्षित रख लेते हैं और जब कभी बाहर जाते हैं तो इसे सिर पर सजा लेते हैं। देशी-विदेशी सभी अनूप द्वारा बांधी जा रही पगड़ी के दीवाने हो रहे हैं, तभी अपना घर में पगड़ी बंधवाने वालों की भीड़ लगी रहती है। हर धर्म में है पगड़ी का सम्मान
अनूप कुमार बताते हैं कि पहले सिर को सुरक्षित रखने के लिए पगड़ी का प्रयोग किया जाता था। इसे सिर के ऊपर बांधा जाता है इसलिए इसे सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। पगड़ी को लोक जीवन में पाग, पग, पगड, पगड़ी, पगडासा, साफा, पेचा, फेटा जैसे नामों से जाना जाता है। धर्म संप्रदाय में जाति के हिसाब से भी अलग-अलग पगड़ी का चलन है। जैसे हिदू, मुस्लिम, सिख पगड़ी, आर्य समाजी पगड़ी, बृज पगड़ी, अहीरवार पगड़ी, मेवाड़ी पगड़ी, खाद्री पगड़ी, सुनानी पगड़ी, सुनारी पगड़ी यह सब अलग-अलग समुदायों का प्रतीक बन गई है। अनूप ने बताया कि पहले उनके दादा गांव में पगड़ी बांधते थे। इसके साथ ही पगड़ी के बारे में लोगों को जागरूक भी करते थे। अनूप का उद्देश्य पगड़ी बांधकर हरियाणा की प्राचीन संस्कृ़ति को जीवित रखना भी है। करीब 5 साल पहले कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में हुए नेशनल फेस्ट में पगड़ी बांधने में अनूप ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था।