पश्चिम बंगाल का कांथा वर्क लेकर आई हैं वसमीन बेगम
अपने देश में विद्यमान विविध संस्कृतियों रीति-रिवाजों के साथ ही विभिन्न समृद्ध शिल्पकलाएं भी देखने को मिलती हैं। इनमें से एक है पश्चिम बंगाल की कांथा कढ़ाई। बंगाल में कांथा का मतलब कपड़े के टुकड़े से होता है। कांथा कढ़ाई में धागों से प्राकृतिक ²श्यों और फूल-पत्तियों को डिजाइन किया जाता है।
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : अपने देश में विविध संस्कृतियों, रीति-रिवाजों के साथ ही विभिन्न समृद्ध शिल्पकलाएं भी देखने को मिलती हैं। इनमें से एक है पश्चिम बंगाल की कांथा वर्क (कढ़ाई)। बंगाल में कांथा का मतलब कपड़े के टुकड़े से होता है। कांथा कढ़ाई में धागों से प्राकृतिक ²श्यों और फूल-पत्तियों को डिजाइन किया जाता है।
पश्चिम बंगाल की वसमीन बेगम अपने पति कबीर अली शाह के साथ टसर सिल्क पर कांथा वर्क की साड़ी और सूट लेकर आई हैं। नाबार्ड के सौजन्य से उन्हें 34वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में स्टाल नंबर 610 मिला है। जेके कलेक्शन बुटीक की संचालिका वसमीन बेगम के स्टाल पर साड़ी के साथ बेडशीट तथा दुपट्टे भी हैं। दर्शक मेले में छोटी चौपाल के पास आकर यहां आसानी से पहुंच सकते हैं और कांथा वर्क की साड़ियां और सूट खरीद सकते हैं। वसमीन बेगम के अनुसार करीब 2000 महिलाएं उनकी बुटीक से जुड़ी हैं। कांथा कढ़ाई में अब हो रहा बदलाव
कांथा कढ़ाई बंगाल की प्राचीन कलाओं में से एक है। एक वक्त था, जब इस कला में पुरानी साड़ियों और धोती के सफेद सूती कपड़े को जोड़कर निचली सतह बनाई जाती थी। अब तो कांथा कढ़ाई में शहरी परिधान और आंतरिक डिजाइन में नए कपड़े का इस्तेमाल होने लगा है। कढ़ाई में रंगीन धागों का खूबसूरती से प्रयोग किया जाता है। वसमीन बेगम बताती हैं कि कांथा कढ़ाई एक हस्तशिल्प है, जिसमें सुई और रंग-बिरंगे धागों की मदद से सुंदर डिजाइन बनाए जाते हैं। कढ़ाई करना बड़ा ही बारीक और हुनर का काम है।