छोटे बच्चों के लिए भी खुल गए शिक्षा के मंदिर के द्वार
करीब 11 महीने से सूने पड़े राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में बुधवार को रौनक लौट आई।
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : करीब 11 महीने से सूने पड़े राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में बुधवार को फिर से रौनक लाने की शुरुआत हुई। तीसरी से पांचवीं तक के विद्यार्थियों की कक्षाएं कोरोना संक्रमण से बचाव के तमाम उपायों के साथ लगनी शुरू हुई, पर छात्रों की संख्या करीब दस फीसद तक ही रही। इससे लगा कि अभिभावक अभी अपने नौनिहालों के जीवन की सुरक्षा के प्रति चितित हैं। वैसे अध्यापक अपने बीच लंबे समय बाद छोटे बच्चों को पाकर उत्साहित थे। राजकीय प्राथमिक विद्यालय ऐतमादपुर में छात्रों का फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया गया। विद्यालय प्रमुख चतर सिंह ने बताया कि छात्र विद्यालय की आत्मा होते हैं। उनके बिना विद्यालय सूना सा था। 22 मार्च से बंद थे विद्यालय
22 मार्च जनता कर्फ्यू के बाद से ही विद्यालय बंद चल रह थे। अक्टूबर से विद्यालयों को चरणबद्ध तरीके से लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। पहली कड़ी में 9वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों की कक्षाएं लगना शुरू हुई थी। इसके बाद 21 दिसंबर से छठी से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों की कक्षाएं शुरू कर दी गई है। अब तीसरी से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए विद्यालय खोले गए। अभी फिलहाल सुबह 10 से दोपहर एक बजे तक कक्षाएं लगाई जा रही हैं। शिक्षा निदेशालय ने राजकीय एवं निजी विद्यालय प्रबंधकों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि कोई भी प्रबंधक बच्चों को स्कूल बुलाने के लिए दबाव नहीं बनाएगा। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के कई विद्यालयों में अध्यापक छात्रों के आने की राह देखते रहे। सहमति पत्र जरूरी, कोरोना रिपोर्ट नहीं
शिक्षा निदेशालय ने तीसरी से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए कोरोना जांच की रिपोर्ट आवश्यक नहीं थी, लेकिन अभिभावकों की सहमति पत्र के बिना छात्रों को प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा था। जो नहीं लाए थे, उनको साथ ही साथ फार्म भरवा कर उनकी सहमति ली गई। इसके अलावा प्रवेश द्वार एवं कक्षाओं में छात्रों के हाथ सैनिटाइजर से साफ करवाए गए। छात्रों को मुंह-नाक से मास्क नहीं हटाने की हिदायत दी गई। एक बेंच पर केवल एक ही छात्र को बैठने की अनुमति थी। इसके अलावा छात्रों के बीच शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए एक बेंच छोड़कर बैठाया गया था। प्राथमिक विद्यालय कौराली और बदरौला का निरीक्षण किया था। यहां कौराली में कोई भी छात्र नहीं पहुंचा था, जबकि बदरौला में केवल तीन छात्र ही पहुंचे थे। इसके अलावा विद्यालय प्रमुखों ने बच्चों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए अपनी ओर से उचित इंतजाम किए थे।
-रितु चौधरी, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी स्कूल आकर बहुत अच्छा लगा। मोबाइल पर पढ़ाई समझ में नहीं आती है। कक्षा में अध्यापक से बार-बार पूछ सकते हैं, जबकि मोबाइल क्लास में इतना समय नहीं मिल पाता है।
-संजीव, तृतीय कक्षा आनलाइन शिक्षा में काफी परेशानी होती है। कुछ समझ में नहीं आता है। स्कूल आकर अच्छा लग रहा है। एक वर्ष बाद सहपाठियों से मिलने का मौका मिला।
-कलसुम, तृतीय कक्षा स्कूल की तुलना आनलाइन से नहीं की जा सकती है। स्कूल में काफी अच्छे से समझ में आता है, लेकिन आनलाइन शिक्षा में काफी परेशानी होती है। कोई दुविधा होने पर पूछने का समय नहीं मिल पाता है।
-सत्यम, तृतीय कक्षा