Move to Jagran APP

तो तै होली खेलन आयो री छोटा सो देवरिया..

तो तै होली खेलन आयो री छोटो सो देवरिया जैसे रसिया ढोलक चिमटा हारमोनियम के साथ ग्रामीण क्षेत्र में होली खेली जाती है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 Mar 2021 06:33 PM (IST)Updated: Sun, 28 Mar 2021 06:33 PM (IST)
तो तै होली खेलन आयो री छोटा सो देवरिया..
तो तै होली खेलन आयो री छोटा सो देवरिया..

जागरण संवाददाता, बल्लभगढ़: तो तै होली खेलन आयो री, छोटो सो देवरिया, जैसे रसिया ढोलक, चिमटा, हारमोनियम के साथ ग्रामीण क्षेत्र में होली खेली जाती है। इस दौरान खूब गुलाल उड़ाया जाता है और रंगो की की पिचकारी चलती है। होली वाले दिन ग्रामीण क्षेत्र की छटा अलग ही देखने को मिलती है।

loksabha election banner

औद्योगिक नगरी में अलग-अलग प्रदेशों के लोग रहते हैं। जो अपने प्रदेशों की परंपरा के अनुसार होली खेलते हैं। फरीदाबाद ब्रज क्षेत्र के नजदीक है, इसलिए यहां की ग्रामीण अंचल की होली में ब्रज की होली का रस-रंग देखने को मिलता है। यहां होली खेलने के दौरान दो पक्ष होते हैं। पुरुषों के हुरियारे और महिला पक्ष को हुरियारी कहते हैं। यहां पर पुरुष पक्ष रसिया और साकी गाते हैं, जबकि हुरियारी साकी पर पुरुषों को लठ मारती है, जबकि रसिया पर हुरियारी व हुरियारे लोक नृत्य करते हैं। साकी इस तरह से गाई जाती है। जैसे ओ मन की प्यारी, ओम नाम सबसे बड़ा, इसते बड़ा ना कोय। हुरियारी तेरो मन रसिया से लग गयौ री इस पर महिला पीछे से पुरुषों को लठ मारती हैं। जबकि रसिया के बोल होते हैं जैसे होरी बरसाने में खेलेंगे, कह रहे कृष्ण मुरारी, कह रहे कृष्ण मुरारी, र.. र. र. कह रहे कृष्ण मुरारी।

इस तरह के होली के रसिया होली वाले दिन हर गांव मोहल्ले में पूरे दिन सुनने व देखने को मिलते हैं। गला साफ करने के लिए हुरियारी के सिर पर नाचते समय गुड़ रखा जाता है, जिसे हुरियारे नाचते समय बांट कर खाते हैं। जब होली का समापन होता है तो अकसर ये साकी गाई जाती है जैसे: जुग जुग जियो होली खेलन हारी, नोमे महीनो तोपे दूजा छौरा, धरियो नौम हजारी, करै दसोटन हमैं बुलाइयो होरी खेलन हारी, जुग जुग जियो होरी खेलन हारी। इस मौके पर हुरियारे की वेशभूषा कुर्ता, धोती और पगड़ी होती है, जबकि हुरियारी की वेशभूषा घाघरा, कमीज व ओढ़नी होती है। हालांकि आज भौतिकवाद के युग में ये परंपराएं बदलती जा रहीं हैं। अब युवा कुर्ता पायजामा व पैंट कमीज पहनकर व महिला सूट सलवार में नाचती हुई देखने को मिलती हैं। कई जगह तो तेज संगीत बजाकर होली मना लेते हैं। इस तरह के होली खेलने से आपसी भाईचारा भी कम होता जा रहा हैं, जबकि होली भाइचारे व प्रेम प्यार का प्रतीक है। यही कारण है कि बडे़-बड़े गांव जैसे भनकपुर, जवां, मोहना, बढ़राम जैसे गांव में एक दूसरे के मोहल्लों में जाकर होली खेलने की परंपरा है। होली का त्योहार केवल एक दिन ग्रामीण क्षेत्र में नहीं मनाया जाता। बल्कि इसका उत्सव होली के बाद आठ-दस दिनों तक चलता रहता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.