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शौर्य गाथाः पति को याद करते हुए नम हो गई वीरांगना बीरवती की आंखें, जाहिर की स्मारक बनाने की इच्छा

वीरांगना बीरवती बताती हैं कि उनके पति विक्रम सेना में भर्ती होने के दो वर्ष बाद रानीखेत कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर में तैनात थे। आठ सितंबर-1965 को पाकिस्तान से युद्ध शुरू हो गया। उन्हें भी युद्ध में भेज दिया। वे सियालकोट सेक्टर पाकिस्तान में तैनात थे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Tue, 10 Aug 2021 03:07 PM (IST)Updated: Tue, 10 Aug 2021 03:07 PM (IST)
शौर्य गाथाः पति को याद करते हुए नम हो गई वीरांगना बीरवती की आंखें, जाहिर की स्मारक बनाने की इच्छा
वीरांगना बीरवती बलिदानी पति विक्रम के चित्र को हाथों में लिए’ जागरण

बल्लभगढ़ (फरीदाबाद) [सुभाष डागर]। पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध में बलिदान देने वाले पति विक्रम सिंह की स्मृतियों को याद करते हुए वीरांगना बीरवती की 56 वर्ष बाद आंखें नम हो गईं। उन्होंने अपने आंसुओं को पोंछते हुए कहा कि उन्हें अपने पति पर गर्व है। उन्होंने मातृभूमि की रक्षा खातिर अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी और बलिदान दिया। युद्ध में पीठ नहीं दिखाई।

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शौर्य गाथा

वीरांगना बीरवती बताती हैं कि उनके पति विक्रम सेना में भर्ती होने के दो वर्ष बाद रानीखेत कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर में तैनात थे। आठ सितंबर-1965 को पाकिस्तान से युद्ध शुरू हो गया। उन्हें भी युद्ध में भेज दिया। वे सियालकोट सेक्टर पाकिस्तान में तैनात थे। उन्होंने वहां पर आमने-सामने पाकिस्तानी सैनिकों से जमकर लड़ाई लड़ी और सीने पर गोली लगी। गोली लगने से वे मौके पर ही मातृभूमि पर बलिदान हो गए। विक्रम 22 सितंबर-1965 को शहीद हुए, पर परिवार को इसकी जानकारी 12 दिन बाद मिली, जब डाकिया संदेश लेकर आया। तब पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया।

वीरांगना बीरवती के अनुसार उन्हें बाद में साथियों ने बताया था कि विक्रम ने जम कर दुश्मन सेना पर गोलियां बरसाई। तब कुमाऊं रेजीमेंट ने करीब 100 पाकिस्तानी सैनिक मारे थे।। तब आज की तरह सैनिक का पार्थिव शरीर तिरंगा में लिपट कर नहीं आता था और न ही सरकार से बहुत बड़ी सहायता मिलती थी। तब सरकार ने 2200 रुपये आर्थिक सहायता के रूप में अवश्य दिए थे। फिर सरकार ने काफी दिन बाद पेंशन देनी शुरू की। पेंशन के सहारे ही बच्चों का पालन-पोषण किया।

स्मारक बनाने की इच्छा

वीरांगना बीरवती की इच्छा है कि बलिदानी पति विक्रम सिंह का गांव में स्मारक बने। अपनी इच्छा को कई बार जाहिर भी कर चुकी हैं, पर अभी तक पूरी नहीं हो पाई। पंचायत कहती है कि ऊपर से लिखवा कर ले आओ। कुछ पंचायत से मदद कर देंगे, कुछ मदद उन्हें देनी होगी। अब उन्हें ये पता नहीं है कि इसके लिए कहां से मंजूरी मिलेगी। सरकार हर वर्ष चार बाद बुलाकर सम्मानित करती है, लेकिन इस कार्य के लिए प्रशासन भी कुछ सहयोग नहीं कर रहा है।

परिचय

विक्रम सिंह का जन्म गांव सुनपेड़ के किसान भूरू सिंह के परिवार में हुआ और 10वीं तक पढ़े। फिर 12 जुलाई-1963 को सेना की कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए। विक्रम सिंह की शादी सेना में भर्ती होने से दो वर्ष पहले गांव छांयसा के रहने वाले बुद्धा की बेटी बीरवती से हो गई। विक्रम सिंह के दो बच्चे हैं। एक बेटा और एक बेटी। उनके अब दोनों बच्चों की शादी हो चुकी है।


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