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हरियाणा के इस हॉट सीट पर 20 साल बाद दो कट्टर प्रतिद्वंद्वी आमने-सामने, कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होते ही मुकाबला हुआ दिलचस्प

महेंद्र प्रताप सिंह और कृष्णपाल गुर्जर के बीच यूं तो विधानसभा चुनाव में कई मुकाबले हुए हैं पर लोकसभा में दोनों के बीच पहली बार भिड़ंत होगी। यह दोनों 20 साल बाद चुनावी रण में आमने सामने होंगे। इससे पहले 2004 के विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच तत्कालीन मेवला महाराजपुर विधानसभा सीट पर मुकाबला हुआ था जिसमें महेंद्र प्रताप सिंह विजयी हुए थे।

By Jagran News Edited By: Sonu Suman Published: Fri, 26 Apr 2024 12:34 PM (IST)Updated: Fri, 26 Apr 2024 12:34 PM (IST)
फरीदाबाद लोकसभा सीट पर महेंद्र प्रताप सिंह और कृष्णपाल गुर्जर आमने-सामने।

सुशील भाटिया, फरीदाबाद। चुनावी महासमर के महा-मुकाबले में 20 साल बाद दो कट्टर प्रतिद्वंद्वी फिर आमने-सामने होंगे। नौ बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके, पांच बार के विधायक, वर्ष 1991 से 1996 तक चौधरी भजनलाल की सरकार में और 2009 से 2014 तक चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह को कांग्रेस ने फरीदाबााद संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित कर दिया है। 

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भाजपा ने पहले ही मौजूदा सांसद और केंद्र में भारी उद्योग एवं ऊर्जा राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर को अपना प्रत्याशी घोषित कर रखा है। अब कांग्रेस के प्रत्याशी भी आने से महासमर का महा-मुकाबला रोचक हो गया है। बृहस्पतिवार देर रात को कांग्रेस आलाकमान द्वारा घोषणा के बाद सैनिक कॉलोनी स्थित महेंद्र प्रताप सिंह के निवास पर खूब आतिशबाजी हुई।

लोकसभा में पहली बार दोनों दिग्गज भिड़ेंगे

महेंद्र प्रताप सिंह और कृष्णपाल गुर्जर के बीच यूं तो विधानसभा चुनाव में कई मुकाबले हुए हैं, पर लोकसभा में दोनों के बीच पहली बार भिड़ंत होगी। यह दोनों 20 साल बाद चुनावी रण में आमने सामने होंगे। इससे पहले 2004 के विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच तत्कालीन मेवला महाराजपुर विधानसभा सीट पर मुकाबला हुआ था, जिसमें महेंद्र प्रताप सिंह 63 हजार वोटों के अंतर से विजयी हुए थे।

करण सिंह दलाल भी थे टिकट की होड़ में

वैसे महेंद्र प्रताप सिंह 2019 में सक्रिय चुनावी राजनीति से सन्यास ले चुके थे, जब उनकी राजनीतिक विरासत को उस साल हुए विधानसभा चुनाव में विजय प्रताप सिंह ने संभालते हुए बड़खल सीट से चुनाव लड़ा था। लोकसभा चुनाव की टिकट के पैनल में नाम भी विजय प्रताप सिंह का गया था, पर पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा चाहते थे कि महेंद्र प्रताप सिंह ही लोकसभा चुनाव लड़े, इसलिए उन्हें मनाया गया और अब उनके नाम की घोषणा भी हो गई। टिकट की दौड़ में करण सिंह दलाल भी थे, इसीलिए इस संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था, जिसका पर्दा अब उठ गया।

21 साल की उम्र में महेंद्र बने थे सरपंच

महेंद्र प्रताप सिंह मात्र 21 साल की उम्र में 1966 में अपने गांव नवादा कोह के सरपंच बन गए थे और फिर 1972 में ब्लॉक समिति के लिए चुने गए। वर्ष 1977 में उन्होंने पहली बार मेवला महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा, पर उन्हें गजराज बहादुर नागर के सामने हार का सामना करना पड़ा। खैर अगले वर्ष 1982 में इसी सीट से महेंद्र प्रताप सिंह ने जीत हासिल की और उसके बाद राजनीतिक जीवन में पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अगली बार 1987 में जब चौधरी ताऊ देवीलाल के न्याय युद्ध की आंधी थी, तब भी विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे थे। 

कांग्रेस ने विधायक दल का नेता भी बनाया

तब राज्य विधानसभा की 90 सीट में से कांग्रेस सिर्फ पांच सीट ही जीत पाई थी और उनमें महेंद्र प्रताप सिंह एक थे। तब चौधरी भजन लाल की धर्मपत्नी जसमा देवी भी चुनाव जीत कर विधायक बनीं थी, पर कठिन परिस्थितियों में चुनाव जीतने वाले महेंद्र प्रताप सिंह को कांग्रेस ने विधायक दल का नेता बना कर पुरस्कार भी दिया था। महेंद्र प्रताप सिंह ने फिर 1991 में भी चुनाव जीत कर विजय की हैट्रिक लगाई और तब भजन लाल की सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री बने।

1996 में महेंद्र को 26 हजार मतों से हराया

जैसा कि पहले बताया कि महेंद्र प्रताप सिंह भाजपा प्रत्याशी कृष्णपाल गुर्जर के पुराने प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। गुर्जर ने 1996 में पहली बार भाजपा के टिकट पर महेंद्र प्रताप सिंह काे 26 हजार मतों से हराया था। दोनों के बीच यह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता 2000 के विधानसभा चुनाव में भी कायम रही। इस चुनाव में महेंद्र प्रताप सिंह को कांग्रेस का टिकट नहीं मिला, पर वो पार्टी से किनारा कर बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गए, मगर कांटे के मुकाबले में 161 मतों से हार गए थे। 

2004 में महेंद्र ने कृष्णपाल को दी थी शिकस्त

खैर 2004 के चुनाव में महेंद्र प्रताप सिंह ने भाजपा के कृष्णपाल गुर्जर को पराजित कर बदला चुकाया। यह इन दोनों के बीच अंतिम भिड़ंत थी, क्योंकि 2009 के चुनाव से पहले परिसीमन हो गया था और तब मेवला सीट खत्म हो गई थी। तिगांव और बड़खल के नाम से नई सीटें अस्तित्व में आईं। नए परिसीमन के बाद गुर्जर ने तिगांव सीट से चुनाव लड़ा और महेंद्र प्रताप सिंह ने बड़खल से। 

2014 में महेंद्र प्रताप को मिली थी हार

महेंद्र प्रताप सिंह ने यह चुनाव भी जीता और तब मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में बिजली, स्थानीय स्वशासन, राजस्व विभाग के कैबिनेट मंत्री बने। 2014 में भी महेंद्र प्रताप सिंह चुनाव लड़े, पर भाजपा की सीमा त्रिखा के हाथों उन्हें हार का वरण करना पड़ा था। अब एक बार फिर लोकसभा के महासमर में महेंद्र प्रताप सिंह और कृष्णपाल गुर्जर आमने-सामने होंगे। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार सूरमाओं का यह समर बेहद रोचक होगा।

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