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विकास से कोसो दूर जिस गांव में हुई थी आलिया भट्ट की फिल्म की शूटिंग, पढ़िये- कैसे हुआ उसका कायाकल्प

मांगर गांव में विभिन्न सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए सेंटर में विशेष व्यवस्था की गई है। उन्हें कंप्यूटर सेंटर में प्राथमिकता दी जाती है। उनके पढ़ने के लिए अलग से स्थान भी निर्धारित किया गया है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 11:46 AM (IST)Updated: Sat, 26 Sep 2020 12:13 PM (IST)
विकास से कोसो दूर जिस गांव में हुई थी आलिया भट्ट की फिल्म की शूटिंग, पढ़िये- कैसे हुआ उसका कायाकल्प
मांगर गांव में पढ़ाई करते छात्र। यहां पर कंप्यूटर की भी व्यवस्था है।

हरेंद्र नागर [फरीदाबाद]। साल 2014 में आई बॉलीवुड फिल्म 'हाईवे' की शूटिंग के लिए निर्देशक इम्तियाज अली को ऐसे गांव की लोकेशन चाहिए थी जो बाकी जिले से कटा हो। जहां तक पहुंचने का रास्ता बीहड़ से भरा और दुर्गम हो। इसके लिए उन्होंने फरीदाबाद के गांव मांगर को चुना। फिल्म में जब नायक नायिका का अपहरण करके लाता है तो उस हिस्से की शूटिंग इसी गांव में हुई थी। फिल्म में जो गांव दिखाया गया है, गांव मांगर उसी तरह बाकी शहर से कटा हुआ है। अरावली की गोद में बसे इस गांव में विशेष भाैगोलिक स्थिति के कारण पहुंचना आसान नहीं है। इसका असर यहां रहने वाले ग्रामीणों के बच्चों पर भी पड़ता है। गांव में 10वीं कक्षा तक का सरकारी विद्यालय है, जिसमें स्टाफ की कमी हमेशा बनी रहती है। कंप्यूटर शिक्षा तो बच्चों के लिए बहुत दूर की कौड़ी है। गांव के निवासी समाजसेवी और पर्यावरण प्रेमी सुनील हरसाना ने बच्चों के लिए कंप्यूटर शिक्षा के सपने को भी पूरा कर दिया है। हाल ही में गांव में एक कंप्यूटर सेंटर बनाया गया है, जिसमें गांव के बच्चे निश्शुल्क कंप्यूटर सीख सकते हैं। इसके साथ ही एक पुस्तकालय भी बनाया गया है, जिसमें विभिन्न विषयों की पुस्तकें रखी गई हैं। साथ ही एक शिक्षक भी नियुक्त कर दिया है, जो बच्चों को गणित के अलावा अंग्रेजी व कंप्यूटर की पढ़ाई कराता है। इस बदलाव से बच्चे और ग्रामीण बेहद खुश हैं।

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सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए अलग व्यवस्था

विभिन्न सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए सेंटर में विशेष व्यवस्था की गई है। उन्हें कंप्यूटर सेंटर में प्राथमिकता दी जाती है। उनके पढ़ने के लिए अलग से स्थान भी निर्धारित किया गया है। अब इस सेंटर में करीब 50 बच्चे रोजाना पहुंचते हैं।

दिलचस्प है कंप्यूटर सेंटर शुरू होने की कहानी

सुनील हरसाना बताते हैं कि कंप्यूटर सेंटर शुरू होने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। उनका कहना है कि गांव की भौगोलिक स्थिति की वजह से शिक्षा के लिए सीमित विकल्प हैं। इस कारण बच्चे रोजगार के क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं। पिछले कुछ सालों से गांव में सुनील के नेतृत्व में एक ईको क्लब चलाया जा रहा है। इस क्लब की वजह से आसपास के पर्यावरणविद् व प्रकृति प्रेमी गांव का दौरा करते हैं। क्लब की गतिविधियों में शामिल होने वाले बच्चों के उत्साह को देखते हुए उन्होंने कंप्यूटर शिक्षा और बेसिक अंग्रेजी सिखाने का सुझाव दिया। समस्या थी कंप्यूटर सेंटर के शुरुआत करने के लिए धन इकट्ठा करना।

इसके अलावा गांव में कंप्यूटर सेंटर के लिए जगह, शिक्षक और रखरखाव भी एक मुद्दा था। इत्तेफाक से उद्योगपति इश्केंद्र ने कंप्यूटर और पुस्तकालय का खर्च उठाने के लिए सहमति दे दी। इसके बाद शिक्षकों के वेतन और कंप्यूटर सेंटर के रखरखाव की जिम्मेदारी गांव में ही शिक्षण कार्यक्रम चलाने वाली संस्था लक्ष फाउंडेशन ने ले ली। ग्राम पंचायत ने कंप्यूटर और पुस्तकालय के लिए जगह उपलब्ध करवा दी। साथ ही ग्रामीण और हरियाणा शिक्षा विभाग में गणित अध्यापक के तौर पर नियुक्त रणबीर ने सप्ताह में दो दिन गणित की विशेष कक्षा लगाने की जिम्मेदारी ले ली है। इस तरह गांव में कंप्यूटर सेंटर चल पड़ा।

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