काल्पनिकता पर आधारित है 'नैना' : संजीव पालीवाल
प्रभा खेतान फाउंडेशन बुक्स एन बियॉन्ड के कलम कार्यक्रम के तहत बुधवार को एक होटल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें लेखक संजीव पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक नैना पर चर्चा की।
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : प्रभा खेतान फाउंडेशन की 'कलम' श्रृंखला के तहत बुधवार को एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में संजीव पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक 'नैना' पर चर्चा हुई। श्री सीमेंट, दैनिक जागरण, अहसास वुमन ऑफ फरीदाबाद और बुक्स एन बियान्ड के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में लेखक संजीव पालीवाल से शिल्पा अरोड़ा ने नैना से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर सवाल किए। मंच संचालन अहसास वुमन ऑफ फरीदाबाद की संयोजक श्वेता अग्रवाल ने किया।
संजीव पालीवाल के अनुसार उन्हें पुस्तक लिखने की चाह तो थी, पर उनकी चाह और विचारों को कलमबद्ध होने में 20 वर्ष लग गए। उनके मित्र जयप्रकाश पांडेय ने किताब लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। संजीव के अनुसार एक बार उन्होंने जयप्रकाश पांडे को साढ़े तीन हजार शब्दों की लिखी कहानी भेजी थी। उनकी कहानी को काफी सराहा गया। उसके बाद रोजाना 500 शब्द लिखकर उन्हें भेजता था। यही कहानियां व किस्से पुस्तक बन गई। पालीवाल ने कहा कि किताब लिखने की प्रेरणा सुरेंद्र मोहन पाठक से मिली। किताब काल्पनिकता पर आधारित है और नैना एक काल्पनिक नाम है, जिसकी कहानी के अंत तक मृत्यु हो जाती है। यह किताब महिला सशक्तिकरण पर आधारित है और नैना के सुख दुख को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि पुस्तक प्रेमियों में अब गिरावट आई है। इसका मुख्य कारण टीवी का आना है। किताबों से चलचित्रों को देखकर समझाना आसान है। स्कूलों में अब पाठ्यक्रम पर ध्यान दिया जाता है, जबकि पहले पाठ्यक्रम के अलावा किताबें पढ़ने पर भी ध्यान दिया जाता था। उन्होंने कहा कि स्कूलों में किताबें पढ़ने की प्रथा दोबारा से लागू करनी चाहिए। साथ ही अध्यापकों को किताबों से छात्रों को सवाल देने चाहिए और अगले दिन छात्रों से जवाब पूछने चाहिए। इससे किताब पढ़ने का प्रचलन दोबारा बढ़ेगा। संजीव पालीवल से फरीदाबाद से अपना पुराना रिश्ता बताते हुए कहा कि वर्ष 1989 में नौकरी के लिए विभिन्न कंपनी के कई चक्कर लगाए थे, लेकिन नौकरी नहीं मिलने पर वापस लौटना पड़ा। कार्यक्रम के अंत में साकेत मित्तल ने संजीव पालीवाल और शिल्पा अरोड़ा को भगवान गणेश की प्रतिमा देकर सम्मानित किया। फरीदाबाद में साहित्य प्रेमी बहुत ही कम हैं और इस तरह के कार्यक्रम से साहित्य के प्रेमी बढ़ते हैं। यह एक अच्छा कार्यक्रम हैं। प्रभा खेतान फाउंडेशन का धन्यवाद करना चाहूंगा कि मुझे कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया।
-गौरव अरोड़ा, एनआइटी साहित्य संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रभा खेतान फाउंडेशन का सराहनीय कदम है। हिदी को जीवित रखने के लिए साहित्य से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
-शशिकांत, सेक्टर-15 मैं हिदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश से संबंधित हूं और साहित्य पढ़ना मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। कार्यक्रम में हिस्सा लेकर खुशी की अनुभूति हो रही है।
-मालविका शर्मा, ग्रेटर फरीदाबाद मेरी लिए एक नया अनुभव था और काफी प्रभावित हूं। आज तक मैने हिदी की किताबे नहीं पढ़ी है, लेकिन कार्यक्रम में हिस्सा लेकर हिदी की किताबों के प्रति रुचि बढ़ी हैं।
-अमन गुप्ता, सेक्टर-14