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कपड़ों की तुरपाई से बुना बेटी के डाक्टर बनने का सपना

हर मां-बाप का सपना होता है कि उनकी संतान पढ़-लिख कर आगे बढ़े।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 07:30 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 07:30 PM (IST)
कपड़ों की तुरपाई से बुना बेटी के डाक्टर बनने का सपना
कपड़ों की तुरपाई से बुना बेटी के डाक्टर बनने का सपना

प्रवीन कौशिक, फरीदाबाद : हर मां-बाप का सपना होता है कि उनकी संतान पढ़-लिख कर आगे बढ़े, उनका नाम रोशन करे। इसके लिए माता-पिता को तपस्या करनी पड़ती है, साथ में बच्चों की भी मेहनत व समर्पण भाव का होना बेहद जरूरी होता है। जब यह दोनों मिल जाते हैं, तो फिर सपनों को सफलता के पंख लग ही जाते हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है पलवली गांव निवासी जगपाल सिंह और परमार्थी की बेटी सुरभि ने, जो शुक्रवार को डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर गांव लौटी। डाक्टर बिटिया का स्वजन सहित आस-पड़ोस के लोगों ने जोरदार स्वागत किया। सुरभि गांव की एकमात्र डाक्टर हैं, जो ग्रामीण क्षेत्र की बेटियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गई हैं। बचपन में देखा डाक्टर बनने का सपना

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सुरभि ने डाक्टर बनने का सपना बचपन में ही देख लिया था। इस बारे में माता परमार्थी और पिता जगपाल को भी बता दिया था। 12वीं करने के बाद वर्ष 2015 में बैचलर आफ होम्योपैथिक मेडिसन एंड सर्जरी की पढ़ाई करने के लिए राष्ट्रीय स्तर का टेस्ट दिया था, जिसमें सुरभि की 52वीं रैंक आई और कोलकाता के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ होम्योपैथिक कालेज में एडमिशन हुआ। सुरभि ने साढ़े पांच साल की पढ़ाई करने के बाद एक साल की इंटर्नशिप की और गत वर्ष 31 दिसंबर को कोर्स पूरा हो गया था। वैसे मार्च 2021 में पढ़ाई पूरी होनी थी, लेकिन कोरोना के चलते कुछ महीने का अतिरिक्त समय लग गया। इसके साथ-साथ एमडी करने के लिए 18 सितंबर-2021 को आल इंडिया आयुष पोस्ट ग्रेजुएट एट्रेंस टेस्ट दिया, जिसमें उसकी 67वीं रैंक आई। अब सुरभि का 25 जनवरी को एमडी के लिए एडमिशन होना है। मां ने कपड़े सिले तो पिता ने बेचा दूध

सुरभि का डाक्टर बनने का सफर आसान नहीं रहा। इसके लिए इनके पिता जगपाल और माता परमार्थी ने कड़ी तपस्या की है। पिता जगपाल सिंह एस्काटर्स उद्योग में नौकरी करते हैं और माता परमार्थी गृहिणी हैं। हर महीने मिलने वाले वेतन से बच्चों की पढ़ाई में दिक्कत आ रही थी। इसलिए जगपाल ने नौकरी के साथ-साथ बचे समय में घर-घर जाकर दूध बेचा। माता परमार्थी ने कपड़ों की सिलाई का काम शुरू किया। दूध बेचकर आने के बाद जगपाल पत्नी संग कपड़ों की तुरपाई कराते थे। इससे जो पैसे आते थे, उनसे बच्चों की फीस भरते थे। ग्रामीण रामबीर नंबरदार, सतपाल, जसपाल, जयपाल, नरेंद्र शर्मा और हेमंत, जगमोहन परमार ने डाक्टर बिटिया को बधाई दी है। बेटियों को जरूर पढ़ाएं

डा.सुरभि कहती हैं कि ग्रामीण अंचल में कई बार बेटियां उच्च शिक्षा के लिए बाहर नहीं जा पाती। क्योंकि घर से कोसों दूर जाना पड़ता है। लेकिन जिस प्रकार उनके माता-पिता ने उस पर विश्वास किया है, उसी प्रकार सभी अपनी बेटियों को आगे पढ़ाएं। सुरभि का भाई शुभम एमबीए कर रहा है। बड़ी बहन एमएससी बीएड है और टीचर है।


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