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यूरिया खाद की किल्लत नहीं हो रही दूर, लगी हैं लंबी लाइन

गेहूं की फसल को बोए हुए करीब डेढ़ महीने का समय पूरा हो चुका है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 08:24 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 08:24 PM (IST)
यूरिया खाद की किल्लत नहीं हो रही दूर, लगी हैं लंबी लाइन
यूरिया खाद की किल्लत नहीं हो रही दूर, लगी हैं लंबी लाइन

जागरण संवाददाता, बल्लभगढ़: गेहूं की फसल को बोए हुए करीब डेढ़ महीने का समय पूरा हो चुका है। बारिश से पूरी फसल में पानी लग चुका है। यूरिया खाद की किल्लत अभी तक दूर नहीं हो पाई है। अधिकारी भी यूरिया को लेकर खासे चितित है। जिले में सात हजार मीट्रिक टन यूरिया की मांग की थी और अब तक 53 सौ मीट्रिक टन यूरिया आ चुका है।

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जिले में शहरीकरण बढ़ने के कारण लगातार कृषि योग्य भूमि का रकबा घटता जा रहा है। इस बार जिले में 25 हजार हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की बोआई की गई है। दो हजार हेक्टेयर भूमि पर सरसों की बोआई की गई है और पांच हजार हेक्टेयर भूमि पर सब्जी लगाई गई हैं। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने सरकार से पूरे सत्र के लिए सात हजार मीट्रिक टन यूरिया की मांग की थी। 53 सौ मीट्रिक टन यूरिया आ चुका है। फिर भी सभी कृषि प्राथमिक सहकारी समितियों, कृभको, इफको किसान सेवा केंद्र, निजी खाद विक्रेताओं के यहां पर यूरिया खरीदने आने वाले किसानों की लंबी लाइन लगी हुई है। नीमका निवासी यशपाल नागर का कहना है कि कोरोना को ध्यान में रखते हुए सरकार को यूरिया जल्द उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि किसान लाइन में न लगें और शारीरिक दूरी बनाकर रखें।

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प्रशासन एक तरफ तो कहता है कि कोरोना के नियमों का पालन करो, दूसरी तरफ खुद ही ऐसे हालात पैदा करता है कि लोग नियमों का उल्लंघन करें। ऐसे हालात यूरिया को लेकर बने हुए हैं।

-बेगराज नागर, नीमका।

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यूरिया लेने के लिए लाइन में बुजुर्ग, बच्चे, महिला सुबह सात बजे कड़कती ठंड में लग जाते हैं, लेकिन मिल नहीं रहा है। कई-कई किलोमीटर तक चक्कर काट रहे हैं।

-प्रेम सागर, भैंसरावली।

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सरकार जब आधी जनवरी तक भी यूरिया नहीं दे पाई, तो फसल का उत्पादन कैसा होगा, इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बार निश्चित रूप से गेहूं का उत्पादन घटेगा।

-देवराज, बदरौला प्रहलादपुर।

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जिले में लगातार यूरिया के रैक लग रहे हैं। अभी पिछले सप्ताह एनएफएल का रैक लगा था। अब इफको का 154 मीट्रिक टन यूरिया आया है। फिर भी किसान लाइन लगाए हुए हैं, ये समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर यूरिया कहां जा रहा है।

-डा. हरीश यादव, गुणवत्ता नियंत्रक निरीक्षक कृषि एवं किसान कल्याण विभाग फरीदाबाद।


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