Move to Jagran APP

आधुनिकता के दौर में बदल रहा बनारसी साड़ियों का स्वरूप

बिजेंद्र बंसल, फरीदाबाद बनारस की परंपरागत साड़ी अब आधुनिकता के दौर में अपना रंग और ि

By JagranEdited By: Published: Fri, 08 Feb 2019 08:52 PM (IST)Updated: Fri, 08 Feb 2019 08:52 PM (IST)
आधुनिकता के दौर में बदल 
रहा बनारसी साड़ियों का स्वरूप
आधुनिकता के दौर में बदल रहा बनारसी साड़ियों का स्वरूप

बिजेंद्र बंसल, फरीदाबाद

loksabha election banner

बनारस की परंपरागत साड़ी अब आधुनिकता के दौर में अपना रंग और डिजाइन भी बदल रही है। उत्तर भारत में दक्षिण भारतीय सिल्क की साड़ियों का आकर्षण परंपरागत बनारसी साड़ियों पर जब भारी पड़ने लगा तो बनारस के खांटी हस्तशिल्पियों की सूझबूझ को आगे ले जाने के लिए उनके परिवार के ही युवा हस्तशिल्पियों ने इस बदलाव को आगे बढ़ाने का काम शुरू कर दिया है। बनारसी कढ़ाई के साथ बंगाल का टशर जॉरजट और आसाम का मूंगा सिल्क भी बनारस के कारीगरों ने अपना लिया है। तीन प्रदेशों के समन्वय से बनी बहुरंगी ¨कग खाब साड़ी को उत्तर भारत में खूब पसंद किया जा रहा है। ¨कग खाब से लेकर बनारसी कारीगरों की बंगाल-बिहार के टशर जॉरजट पर मीना कारीगिरी, बनारसी ब्रोकेट पर कडुवां जंगला साड़ी सहित आसाम का मूगा कतान टुपट्टा का नमूना देखना है तो सीधे चले आइए सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में। यहां मेले के सहभागी देश थाईलैंड पैवेलियन में घुसते ही बनारस के कई कारीगर अपनी कारीगिरी के विशेष नमूने लेकर आए हैं। इनमें स्टॉल नंबर 947 पर बनारस के जलालपुरा से आए कारीगर मोहम्मद कलीम बताते हैं कि बनारसी जंगला साड़ी बेशक 8 हजार से 45 हजार तक में तैयार होती है मगर जैसे उसमें हाथ से कढ़ाई का काम होता है वैसे ही उसे बनाने में समयावधि भी बढ़ जाती है। 45 हजार रुपये वाली साड़ी बनाने में दो माह से कम नहीं लगता। युवा कलीम बेशक अभी राज्य पुरस्कार से नवाजे गए हैं मगर उनके भाई मोहम्मद सलीम को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.