Move to Jagran APP

कपास की फसल में समय रहते रोगों से बचाव का प्रयास करें

खरीफ सीजन के दौरान जिले के किसानों द्वारा लगाई जानी वाली फ

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 06:25 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 06:25 AM (IST)
कपास की फसल में समय रहते रोगों से बचाव का प्रयास करें
कपास की फसल में समय रहते रोगों से बचाव का प्रयास करें

जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : खरीफ सीजन के दौरान जिले के किसानों द्वारा लगाई जानी वाली फसलों में कपास मुख्य नकदी फसल है। बीते कुछ वर्षों के दौरान कपास की फसल में सफेद मक्खी, उखेड़ा इत्यादि रोग आने के कारण फसल लगभग बर्बाद हो गई थी। जिससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। कृषि अधिकारी डा. रमेश रोहिल्ला के अनुसार यदि किसान फसल में समय रहते रोगों से बचाने का प्रयास करें और उचित मात्रा में खाद दें तो अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। दादरी कृषि एवं किसान कल्याण विभाग कार्यालय में कार्यरत बीएओ डा. रमेश रोहिल्ला ने बताया कि मौजूदा समय में कपास की फसल में फल बनने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस स्टेज पर पौधों को अधिक खुराक की आवश्यकता है। इसलिए किसान उचित मात्रा में खाद डालें। उन्होंने कहा कि जिन किसानों ने कपास में बीजाई के समय पर फास्फोरस व जिक सल्फेट नहीं डाला वे अब अवश्य डालें। इसके अलावा फूल आने पर कपास में नाइट्रोजन खाद अर्थात यूरिया भी डालें जो उखेड़ा रोग को रोकने में सहायक होगी। इस समय कपास में किसी प्रकार का खरपतवार न रहने थे अन्यथा पौधों को खाद का लाभ सही तरीके से नहीं मिल पाएगा और उनके वृद्धि रुक जाएगी। इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें। कपास की फसल में सिचाई का भी ध्यान रखे और टिडे आने शुरू होने पर पानी की कमी न रहने दें अन्यथा फल व फूल गिरने की समस्या आ सकती है। बाक्स:

loksabha election banner

फूल-पत्ती रोकने के लिए हामोन का प्रयोग

डा. रोहिल्ला ने कहा कि वर्तमान में किसानों को कपास के फूल-पत्ती झड़ने की समस्या से जूझना पड़ रहा है। लेकिन किसानों को इससे परेशान होने की बजाय इसके उपचार पर ध्यान चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे रोकने के लिए किसान नेप्थलीन एसिटिक एसिड का दो बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव फूल आने के समय अगस्त के दूसरे व तीसरे सप्ताह में करें तथा दूसरा छिड़काव इसके 20 दिन बाद करें। बाक्स:

कीटों का भी रखें ध्यान

डा. रोहिल्ला के अनुसार कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला, मिली बग आदि का भी प्रकोप है। इसलिए किसान अपनी फसलों को समय-समय पर संभालते रहें और जिस रोग के लक्षण या कीट का प्रभाव दिखाई दे उसके अनुसार कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर दवा छिड़काव कर दें। यदि किसान इन सब बातों पर ध्यान देंगे तो वे कपास की फसल में उत्पादन बढ़ा सकते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.