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उज्ज्वला का उजाला खत्म, घरों में फिर जलने लगे चूल्हे

त्योहारों का सीजन चल रहा है और गरीब का गैस से नाता फिर टूट

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 08:32 PM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 08:32 PM (IST)
उज्ज्वला का उजाला खत्म, घरों में फिर जलने लगे चूल्हे
उज्ज्वला का उजाला खत्म, घरों में फिर जलने लगे चूल्हे

मदन श्योराण, ढिगावा मंडी : त्योहारों का सीजन चल रहा है और गरीब का गैस से नाता फिर टूटता जा रहा है। गैस का सिलेंडर गरीबों की पहुंच से बाहर 1000 रुपये के पार पहुंच गया है। इससे उज्जवला योजना के लाभार्थियों में निराशा है। योजना के फ्लाप होने से गांव में फिर से परंपरागत चूल्हे जलने लगे हैं। रसोई गैस के बढ़ते दामों के चलते कई परिवारों ने सिलेंडर भरवाने बंद कर दिए हैं और इन्हें एक तरफ घर के कोने में रख दिया गया है।

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उज्जवला योजना में कई परिवारों ने जब कनेक्शन लिए थे तो रसोई के दाम ज्यादा नहीं थे, मुफ्त में सिलेंडर बांटे जा रहे थे लेकिन आज बढ़ते दामों के चलते स्थिति यह हो गई कि मेहनत-मजदूरी करके परिवार चलाने वालों के लिए सिलेंडर भरवाना भारी पड़ने लगा है। सिलेंडर घरों के कौने में धूल फांक रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादातर कनेक्शन बंद हो गए

केंद्र सरकार ने जैसे ही सब्सिडी बंद की लोगों ने रिफिल लेनी ही बंद कर दी। सिलेंडर महंगा होने की वजह से ज्यादातर लाभार्थियों ने लकड़ी जलाने में ही भलाई समझी। शहरी क्षेत्रों में तो फिर भी कुछ रिफिल की जा रही है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में तो शायद ही कोई घर हो जो अब योजना का लाभ उठा रहा हो। यह थी उज्जवला योजना

उज्जवला योजना के तहत चूल्हा रेगुलेटर और पाइप के करीब 17 सौ रुपये लिए जाने थे। यह पैसा उपभोक्ता से नहीं लेकर उन्हें लोन दिया गया। बाद में सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी से इस रकम की भरपाई होनी थी। उस समय तो सिलेंडर 600 रुपये और सब्सिडी 250 रुपये जमा हो रही थी। यह अनुदान उपभोक्ता को नहीं मिल कर चूल्हे की कीमत में समायोजित होना था।

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ऐसे में अब कई परिवारों की रसोई फिर से मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी जलाकर बनने लगी है। रसोई का धुआं फिर से पूरे घर में भरने लगा है। दैनिक जागरण की टीम ने ग्रामीण क्षेत्रों के कई गांव में उज्जवला योजना की हकीकत जानी तो यहां पर कई परिवार ऐसे सामने आए, जो सिलेंडर नहीं भरवा पा रहे है। परिवारों का कहना है कि दाम इतने अधिक बढ़ गए हैं कि इससे कम में लकड़ी और उपलों से काम चल जाता है। एक साथ सिलेंडर के इतने पैसे देना उनके साम‌र्थ्य के बाहर है।

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सुशीला, प्रेमा, वीरमति, कलावती, संतोष, केला देवी, रुकमणी आदि महिलाओं ने बताया कि कोरोना ने सब कुछ छीन लिया। परिवार को पालना मुश्किल हो गया। ऐसे में इतना महंगा गैस सिलेंडर कहां से भरवाएं। सिलेंडर भले ही गरीबों को उज्जवला योजना के तहत मुफ्त मिला हो लेकिन सिलेंडर के दाम 1000 रुपये के पार होने से ग्रामीणों को भरवाना मुश्किल हो रहा है। महंगाई होने के कारण लंबे समय से गरीबों के सिलेंडर खाली पड़े हैं। जिसे अब घर के एक कोने में रख दिया है। वहीं खाना अब लोहे या मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी जलाकर बनाया जा रहा है। सुबह-शाम यही क्रम चलता है।


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