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सत्संग जीवन की चिताओं को हर कर मनुष्य के जीवन में सुख और शांति लाता है : कंवर महाराज

जीवन की चिताओं को हर कर मनुष्य के जीवन में सुख और शांति लाता है। कोरोना वायरस के कारण समाज में कई तरह की व्याधियों ने घर कर लिया। इनमें डिप्रेशन तनाव और दुश्चिंतता के मामलों में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 05:43 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 06:16 AM (IST)
सत्संग जीवन की चिताओं को हर कर मनुष्य के जीवन में सुख और शांति लाता है : कंवर महाराज
सत्संग जीवन की चिताओं को हर कर मनुष्य के जीवन में सुख और शांति लाता है : कंवर महाराज

जागरण संवाददाता, भिवानी : सत्संग जीवन की चिताओं को हर कर मनुष्य के जीवन में सुख और शांति लाता है। कोरोना वायरस के कारण समाज में कई तरह की व्याधियों ने घर कर लिया। इनमें डिप्रेशन तनाव और दुश्चिंतता के मामलों में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है। मनुष्य को सभी तनावों से केवल सत्संग साधन ही मुक्त कर सकता है। सत्संग हरि का भजन है परमात्मा का गुणगान है और परमात्मा ही जीवन की उथल पुथल को समाप्त कर सकता है। यह सत्संग वाणी परमसंत कंवर साहेब ने दिनोद में वर्चुअल सत्संग फरमाते हुए कही।

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गुरु महाराज ने कहा कि अगर आप इस आपाधापी से मुक्त होकर परमार्थ कमाना चाहते हो तो प्रेम और सेवा करना सीखो। बिना प्रेम के सेवा लाभ नहीं देती। सेवा निस्वार्थ होनी चाहिए और ये बिना प्रेम के सम्भव नहीं है। यह प्रेम ऐसा ही होना चाहिए जैसे पुत्र और मां का है। बेटे की तोतली बोली भी मां समझ लेती है वैसे ही भक्त के मन के ख्याल परमात्मा समझ लेते हैं।

उन्होंने कहा कि हम लग्न तो लगाते हैं लेकिन नकारात्मक। जितनी लग्न कामी को कामनी से लगती है उतनी ही लग्न यदि सकारात्मक रूप से गुरु के प्रति हो जाए तो आपके वारे न्यारे हो जाएंगे।

हुजूर कंवर साहब ने कहा कि जब तक गुरु से प्रेम नहीं है तब तक परमार्थ नहीं कमा सकते। बिना प्रेम के तो केवल हम नकल ही करते हैं। जो मनमुखी हैं वो भक्ति में नकल करते हैं और मन के वश में होकर ही विचरते हैं। जबकि गुरुमुख गुरु के ख्याल में ही रहता है वो हर पल गुरु को ही आगे रखता है इसलिये यदि अपने जीवन का कल्याण चाहते हो तो गुरु का हाथ पकड़ लो।

उन्होंने कहा कि इंसान के लिए उसके प्राण से प्यारा कुछ नहीं है। प्राण हैं तो सब कुछ है ऐसे ही जब गुरु आपका प्राण बन जाएगा तब आपका कल्याण निश्चित है। गुरु से बढ़कर दौलत कौन दे सकता है। गुरु ने तो सृष्टि का आधार शब्द का भेद ही दे दिया। क्योंकि सब कुछ शब्द में ही तो समाया है। बिना शब्द के भेद या ज्ञान के तो जीव ऐसे ही फिरता है जैसे धुंध में इंसान भटक जाता है।

उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि कितने युगों से हम जल को पाषाण को और कागज में लिखी बातों को पूजते आ रहे हैं। हम इनमें उलझ कर भक्ति के भटकाव में भटकते रहे। लेकिन अब वक्त गुरु के सानिध्य में तो हम भक्ति के मर्म को जान सकते हैं। उन्होंने कहा कि तीन चीज हाजिर ही आपके काम आएगी। हाजिर गुरु, हाजिर हकीम और हाजिर हाकिम। हाजिर गुरु ही आपको सतज्ञान की परख कराएगा। बीते हुए सन्त कबीर नानक आदि नहीं। इसी प्रकार आपकी बीमारी में भी हाजिर हकीम या डॉक्टर ही काम आएगा ना कि धन्वन्तरि वैद्य। राजा या हाकिम भी हाजिर ही काम आता है। हां ये सही है कि जो हमारे पूर्वज हैं वे हमारे सम्मानित हैं, पूज्य हैं, आदरणीय हैं लेकिन काम आएगा हाजिर ही।

गुर महाराज जी ने कहा कि इंसान पांच इंद्रियों के वश में अपना जीवन बर्बाद कर रहा है। भंवरा, मछली, मृग, हाथी और पतंगा एक इंद्री के वश में होकर अपने जीवन को मुसीबत में डाल लेते हैं जबकि मनुष्य तो पांच इंद्री का गुलाम है। ऐसे में उसका कैसे कल्याण हो। कल्याण तभी सम्भव है जब राधास्वामी की शरण ले लोगे। राधास्वामी दयाल अपनी मेहर से आपको परमात्म रूपी खजाने से सराबोर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में धैर्य और संयम से काम लें। खुद सुरक्षित रहें और औरों को भी सुरक्षित रखें। जरूरतमंद की मदद करें।


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