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धर्म और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक अवश्य हैं लेकिन दोनों का महत्व अलग-अलग : कंवर महाराज

जागरण संवाददाता भिवानी धर्म और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक अवश्य हैं लेकिन दोनों का महत्व

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 06:46 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 06:12 AM (IST)
धर्म और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक अवश्य हैं लेकिन दोनों का महत्व अलग-अलग : कंवर महाराज
धर्म और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक अवश्य हैं लेकिन दोनों का महत्व अलग-अलग : कंवर महाराज

जागरण संवाददाता, भिवानी : धर्म और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक अवश्य हैं लेकिन दोनों का महत्व अलग-अलग है। धर्म जीवन का मर्म है। सच्चाई और नियमों का पालन करते हुए जीवन जीना धर्म है लेकिन आत्मिक उन्नति के लिए कार्य करना अध्यात्म है। यह सत्संग वाणी राधा स्वामी दिनोद के कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधा स्वामी आश्रम में फरमाई। हु•ाूर कंवर साहेब ने कहा कि तन मन की बात को छोड़ कर आत्मा की उन्नति के लिए कार्य करना अध्यात्म है। धर्म झूठ ईष्र्या बेईमानी और कपट से बचना और अपने कर्तव्य को पूर्णता के साथ निभाना है। धर्म कहता है कि जो धारण करने योग्य है उसे धारण करो। धर्म हम गृहस्थ कार्य करते हुए भी कमा सकते हैं लेकिन गुरु की शरणाई में इंसान अध्यात्म कमाने के लिए जाता है। उन्होंने कहा कि यदि पिता अपना कर्तव्य निभाए पुत्र अपना, भाई-बहन अपना तो सर्वत्र धर्म का पसारा हो सकता है। गुरु महाराज ने कहा कि स्वर्ग बैकुंठ तो धर्म कर्म करने से, दान पुण्य करने से मिल जाएंगी लेकिन चौरासी से मुक्ति सतगुरु की शरणाई से ही मिलेगी। इंसान दुनियादारी की गंदगी को अपने सिर पर उठाए घूमता है। इंसान इस गफलत में है कि जो मैं करता हूं वो होता है। वो भूल जाता है कि वो केवल दो हाथ वाला ही है जबकि वो परमात्मा तो लाखों करोड़ों हाथों वाला है। कर्ता तो कोई और है लेकिन माध्यम इंसान को बनाया जाता है। यही करनी है। जो करनी कर जाता है वो भवसागर से पार चला जाता है पर जो बातों का भक्त है वो एक जन्म से दूसरे जन्म यू हीं ठोकर खाता घूमता है।

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उन्होंने कहा कि दो तरह से गुरु भक्ति करो। या तो तुम गुरु के बन जाओ या गुरु को अपना बना लो। गुरु को पूर्ण समर्पण कर दो क्योंकि गुरु हर विधि से शिष्य का कल्याण ही करता है। नालायक बेटा, अल्सेटा चेला, बाली जैसा भाई, हिरणाकुश जैसा पिता हो तो इनको अविलम्ब छोड़ देना चाहिए। जिस प्रकार कोयल अपने बच्चों को समय आने पर ले जाती है वैसे ही संतों का जीव लाख कोस दूर क्यों ना हो समय आने पर वो संतों के पास पहुंच ही जाता है। गुरु अपनी शिष्य की परख करता है। वो जानबूझ कर उसको संसार के थपेड़े सहने के लिए उसे मुक्त छोड़ता है। संत जानते है कि जब तक मन में कामना रहेगी तब तक तृष्णा बनी रहेगी। आज ढोंगी गुरुओं की बहुतायत है ऐसे में इंसान को सूझ बूझ की आवश्यकता है। गुरु महाराज ने कहा कि दान करो तो खुशी से करो।


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