खेत खलिहान : 75 वर्ष की आयु में माल्टा, किन्नू की उन्नत खेती कर रहे छैलूराम भोपाली
पवन शर्मा, बाढड़ा : 1960 के दशक में जब राजस्थान की सीमाओं से लगते बाढड़ा क्षेत्र में कोसो
पवन शर्मा, बाढड़ा : 1960 के दशक में जब राजस्थान की सीमाओं से लगते बाढड़ा क्षेत्र में कोसों दूर तक तक पीने के पानी का टोटा था उस समय भी पहले पांच वर्ष सेना में नौकरी करने व उसके बाद मात्र 23 वर्ष की आयु में पंचायत समिति का चेयरमैन बनने वाले छैलूराम भोपाली ने ¨जदगी में अनेक उतार चढ़ाव देखे। आज भी 75 वर्ष की आयु में भी वे एक आधुनिक किसान नजर आते हैं। लंबे समय तक राजनैतिक गतिविधियों के बाद अब उनका ध्यान केवल अपने 18 एकड़ के किन्नू व माल्टा के बाग की देखरेख पर है। जिस उम्र में बुजुर्ग स्वयं चलने के मोहताज होते हैं उस आयु में भी बुजुर्ग किसान स्वयं बाग के पौधों को सींचने व बिक्री के समय मंडी के भावों के उतार चढ़ाव के लिए वाट्सअप से नजर रखते हैं। चारों तरफ हरा भरा नजर आता है बाग
गांव डांडमा निवासी हाल आबाद भोपाली के किसान छैलूराम के खेतों में पहुंच कर वहां का जायजा लिया जाए तो यहां पर प्रत्येक सीजन में चारों तरफ हरा भरा ही नजर आता है। रेतीले टिब्बों के बीच खेती करने वाले छैलूराम अब केवल परंपरागत कृषि पर निर्भर रहने की बजाए आधुनिक सिस्टम से खेती-बाड़ी करके अपने परिवार की आमदनी में बढ़ोतरी कर रहे हैं। उनके खेत में माल्टा, किन्नू के अलावा टमाटर, गाजर, देशी लौकी का सीजन के समय इतना उत्पादन होता है कि यह सारे साल इनसे ही अन्य फसलों की लागत भी प्राप्त कर लेते हैं। किसान छैलूराम 18 वर्ष की आयु में ही भारतीय आर्मी में भर्ती हुए। लेकिन पांच वर्ष बाद उन्होंने नौकरी का त्याग कर खेतीबाड़ी शुरू की और उसी समय 1972 को प्रदेश में हुए पंचायत समिति के चुनाव में उतर कर बाढड़ा के सबसे युवा चेयरमैन भी बने। उसके बाद उन्होंने वर्ष 2010 तक चालीस साल तक श्योराण खाप सहित अनेक सामाजिक संगठनों, राजनैतिक दलों में रहते हुए क्षेत्र में चौधर की। लेकिन उसके बाद उन्होंने किन्नू व माल्टा का बाग लगाने की योजना बनाई और उसके बाद तो वह क्षेत्र के सबसे बुजुर्ग होते हुए युवा किसानों में शुमार हो गए।
उन्होंने कहा कि जबसे उन्होंने खेती-बाड़ी व बागवानी की तरफ ध्यान दिया है आयु का ढलता पड़ाव भी आड़े नहीं आ रहा। पहले उनके आठ पुत्रों सहित सारा परिवार खेती से मात्र दो से ढाई लाख का भाव ले पाता था। लेकिन आज संयुक्त परिवार की कड़ी मेहनत से आधुनिक तौर पर बागवानी से 10 लाख प्रति वर्ष कमाना आसान हो गया। कंप्यूटर, मार्केट, सरकारी मदद ने बदली तस्वीर
75 वर्षीय किसान छैलूराम ने बताया कि किसान व कृषि के लिए अभी सरकार को और कदम उठाने पड़ेंगे। लेकिन समय के बदलाव में कई चीजों ने किसान की किस्मत को भी बदल दिया। पहले किसान जो भी फसल उगाता वह चंद बिचौलियों या छोटे व्यापारियों तक ही खरीद कर घरेलू खर्च कर लेता था वहीं कभी किसी बैंक से कर्जा ले लेता था तो उसकी तीन पीढि़यों को चुकाना पड़ता था। लेकिन आज किसान के लिए कंप्यूटर, मार्केट की डिमांड व सरकारी मदद तीनों ने ही उनके जीवन में ऐतिहासिक सुधार ला दिया है। कंप्यूटर से किसान को उसके दैनिक लेनदेन व भावों में उतार चढ़ाव का पता चलता है वहीं परिवहन के साधनों से वह डिमांड के आधार पर अपने उत्पादनों को छोटे शहरों की बजाए बड़े शहरों तक भेज सकता है। पहले किसी भी फसली नुकसान के लिए तो दूर बल्कि महामारी फैलने पर भी किसान व उसकी संतान को कोई मदद नहीं मिलती थी। लेकिन आज स्वयं किसान के परिवार के अलावा उसकी फसलों का भी बीमा होता है और कई बार अन्य प्राकृतिक आपदाओं में सरकार द्वारा उसकी मदद होना भी उसके लिए शुभ संकेत हैं।