रेगिस्तानी टीलों में पला लोहारू का छोरा फहराएगा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा
संवाद सहयोगी लोहारू लोहारू के रेगिस्तानी टीलों के बीच पला-बढ़ा एक गरीब किसान का बेटा
संवाद सहयोगी, लोहारू : लोहारू के रेगिस्तानी टीलों के बीच पला-बढ़ा एक गरीब किसान का बेटा भी दुनिया में लोहारू का नाम रोशन करने जा रहा है। नेपाल में हिमालय पर्वत की 17 हजार 980 फीट ऊंचाई पर स्थित काबरूडॉम चोटी पर तिरंगा फहराने के बाद दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के लिए उसका चयन हो गया है।
चौ. बंसीलाल राजकीय महाविद्यालय की बीए अंतिम वर्ष का छात्र है राहुल स्वामी। नजदीकी राजस्थान की सीमा के गांव लाडुंदा निवासी 18 वर्षीय राहुल के पिता मांगेराम स्वामी गरीब किसान हैं जो अपने बेटे को पर्वतारोही बनाने की बात सपने में भी नहीं सोच सकते। लेकिन कुछ नया करने का जुनून रखने वाले राहुल ने लोहारू के कॉलेज में पढ़ते हुए एनसीसी में अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया। यहीं से ही आगे बढ़ने के उसके सपने को पंख मिल गए।
वर्तमान में पश्चिम बंगाल में पर्वतारोहन की ही तैयारी कर रहे राहुल ने फोन पर बताया कि 2017 में राहुल ने एनसीसी जॉइन कर ली। एनसीसी के कमांडिग ऑफिसर कर्नल अनुपम सक्सैना ने राहुल को पर्वतारोहन के लिए प्रेरित किया, वहीं उसके माता-पिता के दिल से डर को निकाला। इसी के साथ उसे एनसीसी की ओर से पहली बार जम्मू कश्मीर पर्वतारोहन के लिए दल में भेज दिया गया। यहां उसने पहलगाम के पास 14 हजार 400 फीट ऊंची चोटी पर तिरंगे को लहराकर पर्वतारोहन का पहला टेस्ट पास कर लिया। इसके बाद राहुल का जुनून बढ़ता चला गया। एनसीसी या अन्य कोई सरकारी सहायता नहीं मिली तो वह खुद ही अपने खर्चे पर नेपाल की 17 हजार 980 फीट ऊंची को फतह करने के लिए निकल पड़ा। इसके लिए धन की कमी रोड़ा बनी। लेकिन जैसे-तैसे उसने 50-60 हजार रुपये का प्रबंध किया और करीबन 18 हजार फीट ऊंची इस चोटी पर भी तिरंगे को लहरा दिया। राहुल ने बताया कि इस तरह के पर्वतारोहन के लिए 5 लाख रुपये तक का खर्चा आता है, लेकिन उसकी सफलताओं को देखते हुए भारतीय पर्वतारोही संस्थान ने उसके ये 5 लाख रुपये नहीं लगने दिए।
राहुल ने बताया कि नेपाल की इस चोटी पर पहुंचते ही अंतरराष्ट्रीय चोटियों पर पर्वतारोहन के लिए 15 हजार फीट ऊंचाई की शर्त उसने पूरी कर दी। अब वह दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची दक्षिण अफ्रीका की चोटी पर हिदुस्तान के तिरंगे को लहराने के लिए जनवरी के अंत में निकलेगा। इसके अलावा दुनिया की सबसे ऊंची माउंट एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने के लिए उसका चयन हो चुका है। इसके लिए वह मई में यात्रा शुरू करेगा। इस दौरान एक माह तक जलवायु के अनुसार ढलने के लिए उसे विशेष ट्रेनिग दी जाएगी।
आर्थिक संकट आ रहा आड़े, सरकार से स्पोंसर बनने की गुहार
राहुल ने बताया कि ये सभी यात्राएं उसे अपने खर्चे से करनी पड़ रही हैं। किसान माता-पिता के पास इसके लिए कोई गुंजाइश नहीं है। देश का नाम पूरी दुनिया में करने के उसके इस जुनून में आर्थिक संकट उसके आड़े आ रहा है। वह चाहता है कि हरियाणा या राजस्थान सरकार या कोई अन्य संगठन उसकी इस यात्रा को स्पोंसर कर दे, ताकि वह बिना चिता के माउंट एवरेस्ट पर भी तिरंगे को लहराने के अपने सपने को पूरा कर सके।
कैसे होता है पर्वतारोहन
राहुल ने बताया कि पर्वतारोहियों का एक दल रवाना किया जाता है। उसके पीछे-पीछे उनके बचाव के लिए भी एक रेस्क्यू टीम रहती है। बर्फ या मौसम के किसी भी संकट के आने पर रेस्क्यू दल उन्हें बचाने के लिए आगे आ जाता है। रात को ठहरने के लिए पहाड़ों में बर्फ के बीच ही टेंट लगाकर उसमें सोना पड़ता है और वहीं खाना पकाकर खाना पड़ता है। ऐसी जगह पर मैग्गी आदि जल्द पक जाती हैं। पहाड़ी जानवरों से खतरे के बारे में पूछने पर बताया कि इतनी ऊंचाई पर कोई जानवर तो क्या पेड़ तक देखने को नहीं मिलते। इसलिए पहाड़ी जानवरों का कोई खतरा नहीं होता।