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पंडित नेकीराम शर्मा ने अपना पूरा जीवन आजादी के आंदोलन में लगा दिया

जागरण संवाददाता भिवानी स्वतंत्रता सेनानी एवं हरियाणा केसरी पंडित नेकीराम शर्मा ने जीवन भर

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 12:59 AM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 12:59 AM (IST)
पंडित नेकीराम शर्मा ने अपना पूरा जीवन आजादी के आंदोलन में लगा दिया
पंडित नेकीराम शर्मा ने अपना पूरा जीवन आजादी के आंदोलन में लगा दिया

जागरण संवाददाता, भिवानी: स्वतंत्रता सेनानी एवं हरियाणा केसरी पंडित नेकीराम शर्मा ने जीवन भर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने अंग्रेज डीसी के 25 मुरब्बे जमीन देने के प्रलोभन को न केवल ठुकरा दिया, बल्कि यह भी कहा कि ये पूरा देश ही मेरा है, अंग्रेजों तुम मुझे क्या जमीन दोगे। उनके प्रपोत्र पराग शर्मा व उनकी करीबी पूर्व न्यायाधीश सुभाष कौशिक ने बताया कि पंडित नेकीराम शर्मा का जन्म 7 सितंबर 1887 को भिवानी जिले के केलगां गांव में पंडित हरीप्रसाद मिश्र के घर हुआ। उन्होंने उत्तर प्रदेश के सीतापुर, बनारस व अयोद्धा में रहकर संस्कृत में उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्हें दिसंबर 1905 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सालाना अधिवेशन बनारस के मौके पर देश के श्रेष्ठ नेताओं गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, पंजाब केसरी लाला लाजपतराय, बाबू सुरेंद्र नाथ बैनर्जी व महामना पंडित मदन मोहन मालवीय से मिलने का मौका मिला तथा उनके भाषणों से प्रेरणा मिली। वे 1907 में 20 वर्ष की आयु में वापस अपने गांव केलगां लोट आए। अंग्रेज सरकार द्वारा 1907 में भगत सिंह, चाचा सरदार अजीत सिंह, लाला लाजपतराय को मांडले जेल भेजना तथा 1908 में लोकमान्य तिलक पर अभियोग चलाना नेकीराम को सहन नहीं हुआ और वे अंग्रेजी सरकार के घोर विरोधी बन गए। जब लोकमान्य तिलक को 6 वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनाई तो नेकीराम ने एक दिन का उपवास रखा तथा यह प्रतिज्ञा की कि जब तक अंग्रेजी राज समाप्त नहीं हो जाता, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। पंडित नेकीराम के दिल में अंग्रेज सरकार द्वारा जनता के विरुद्ध किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ आग धधक रही थी। वे एक समय में अंग्रेजों के विरुद्ध बम बनाकर उन्हें हिसात्मक तरीके से लड़ना चाह रहे थे, परन्तु इस काम के लिए कलकता पहुंचे तो उनकी मुलाकात कांग्रेस के प्रमुख नेता बाबू सुरेंद्र नाथ बेनर्जी से हो गई। पंडित जी को अहिसा का पाठ पढ़ाया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह़्वान पर 1921 में उन्हें असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार किया गया। महात्मा गांधी से उनकी पहली मुलाकात 1915 में मुम्बई कांग्रेस के दौरान हुई। वे गांधी जी की प्रेरणा से अस्पृश्यता के विरुद्ध अभियान में शामिल हो गए। होमरूल आंदोलन में कार्य करते हुए नेकीराम की पहली मुलाकात मार्च 1918 में उत्तर प्रदेश में इटावा नामक स्थान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू से हुई। यह मुलाकात बाद में मजबूत दोस्ती में बदल गई। 30 जून 1918 को होमरूल आंदोलन में उन्हें एक अन्य नेता आसफ अली के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।

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इतिहासकार एवं समाजसेवी कामरेड ओमप्रकाश बताते हैं कि होमरूल आंदोलन में पंडित नेकीराम की लोकप्रियता से भयभीत होकर अंग्रेज उन्हें लोभ लालच देकर अथवा डराकर तोड़ना चाहते थे। उन्हें रोहतक के अंग्रेज डीसी जोसफ ने 25 मुरब्बे जमीन मुफ्त में देने का प्रस्ताव रखा था, जिसको पंडित नेकीराम द्वारा ठूकरा दिया गया। फिर देशद्रोही घोषित कर जेल भेजने की धमकी दी गई। जिसका उन पर कोई असर नहीं हुआ।

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पंडित नेकीराम ने 1920 में गांधी जी को बुलाया था भिवानी

असहयोग आंदोलन को लोकप्रिय बनाने के लिए 22 अक्तूबर 1920 को अंबाला डिवीजनल पोलिटिकल कांफ्रेस भिवानी में बुलाई गई। उसमें पंडित नेकीराम के आग्रह पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, शोकत अली, मोहम्मद अली, मोलाना अबुल कलाम आजाद एवं कस्तूरबा गांधी शामिल हुए। उस समय इस कांफ्रेस में 60 हजार लोगों की हाजिरी थी, जिसमें 50 हजार किसान थे। पंडित नेकीराम शर्मा रौलेट एक्ट विरोधी आंदोलन 1919, असहयोग आंदोलन 1920-22, नमक सत्याग्रह 1930-34, व्यक्तिगत सत्याग्रह 1940-41 एवं भारत छोड़ा आंदोलन 1942-44 में अग्रणी भूमिका में रहे और 2200 दिन जेल में रहे।


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