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112 साल पुराना लोहारू का राजस्व रिकॉर्ड फांक रहा धूल

तहसील के 19 पटवारी एक किलोमीटर के दायरे में तीन जर्जर भवनों में बैठने को मजबूर हैं। भवनों का न कोई साइन बोर्ड और न कोई पहचान।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 06:23 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 06:23 AM (IST)
112 साल पुराना लोहारू का राजस्व रिकॉर्ड फांक रहा धूल
112 साल पुराना लोहारू का राजस्व रिकॉर्ड फांक रहा धूल

एमके शर्मा, लोहारू : आजादी से पहले 1908 बंदोबस्त का लोहारू तहसील का राजस्व रिकॉर्ड स्थायी पटवारखाने व संसाधनों के अभाव में धूल फांक रहा है। तहसील के 19 पटवारी एक किलोमीटर के दायरे में तीन जर्जर भवनों में बैठने को मजबूर हैं। भवनों का न कोई साइन बोर्ड और न कोई पहचान। गर्मी के माहौल में परेशान लोग इन्हें ढूंढते ही घूमते रहते हैं।

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लोहारू तहसील के 46 गांवों के राजस्व रिकॉर्ड को संभालने के लिए सरकार ने यहां 23 पटवारी के पद दिए हुए हैं। लेकिन चार पद रिक्त होने के कारण तैनात केवल 19 पटवारी ही हैं। इन पटवारियों के बैठने के लिए कोई स्थायी पटवार खाना नहीं है। तीन अलग-अलग जर्जर भवनों में ये पटवारी बैठते हैं। इन भवनों में किस गांव के पटवारी बैठते हैं, इस तरह की न कोई पहचान है और न ही कोई साइन बोर्ड। परेशान लोग आमजन से ही पूछते-पूछते वहां तक पहुंचते हैं। उन्हें जवाब मिलता है कि गलत आ गए, तुम्हारा पटवारी दूसरी जगह बैठता है। इस तरीके से तहसील कार्यालय के एक किमी के दायरे में फैले इन तीन भवनों के बीच जरूरतमंद लोग भीषण गर्मी में पैदल भटकते हुए काफी परेशान होते रहते हैं।

कुछ पटवारी पुराने शहर की मस्जिद के सामने के अंग्रेजों के जमाने के एक जर्जर प्राइवेट भवन की छतनुमा कोठरियों में बैठते हैं। दो मंजिला भवन कब ढह जाए, इसका अंदाजा काम का दबाव झेल रहे न तो पटवारियों को है और न ही उनसे काम के लिए आए जरूरतमंद लोगों को।

कुछ पटवारियों के बैठने की दूसरी जगह थाने के पास बीडीपीओ कार्यालय में है। यह जगह भी सरकार द्वारा कंडम घोषित हुई बताई गई है। यहां पर भी किस-किस गांव के पटवारी बैठते हैं, इसका कोई साइन बोर्ड नहीं है।

तीसरी जगह तहसील कार्यालय है। यहां चुनिदा पटवारी ही बैठते हैं। परेशान लोगों ने बताया कि कोई भी फर्द आदि लेने के लिए पहले उन्हें तहसील कार्यालय के कंप्यूटर रूम में आना पड़ता है। इसके बाद पटवारियों से साइन कराने के लिए उन्हें उक्त तीनों जगहों में जाना पड़ता है। पटवारी की तयशुदा जगह तक वे पहुंच भी जाते हैं तो कई बार जवाब मिलता है कि पटवारी अभी-अभी तहसील में गए। फिर उन्हें पैदल तहसील में जाना पड़ता है, वहां जवाब मिलता है कि पटवारखाने में गए। इस तरीके से सरकार को सभी पटवारियों के एक ही जगह बैठने का स्थायी पटवारखाना नहीं होने के कारण लोग बहुत दुखी रहते हैं।

इधर पटवारियों ने भी मांग की कि सरकार स्थायी पटवार खाने का भवन तहसील परिसर में बनवाकर दिया जाए। इसमें सभी 19 पटवारी इकट्ठे बैठ होंगे तो लोगों को परेशानी नहीं होगी। इसके अलावा आजादी से पहले की लोहारू तहसील में 1908 बंदोबश्त के राजस्व रिकॉर्ड की सुरक्षा के लिए उनके पास अलमारी जैसे संसाधन भी नहीं हैं। इसलिए स्थायी पटवार खाना बनवाकर रिकॉर्ड को सुरक्षित रखने की भी व्यवस्था की जाए। कानूनगो अनिल कुमार ने इस बारे में बताया कि राजस्व रिकॉर्ड को पटवारी अपने स्तर पर संभाल कर रखे हुए हैं। स्थायी पटवारखाना बन जाए तो पटवारी भी परेशान न हों और जनता भी।


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