Move to Jagran APP

संतों की शरण में जाकर ही संवारा जा सकता है जीवन : संत कंवर महाराज

जागरण संवाददाता भिवानी इस दुनिया में सबके कर्म और विचार अलग-अलग हैं। जगत में कर्म की ह

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 07:22 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 07:22 AM (IST)
संतों की शरण में जाकर ही संवारा जा सकता है जीवन : संत कंवर महाराज
संतों की शरण में जाकर ही संवारा जा सकता है जीवन : संत कंवर महाराज

जागरण संवाददाता, भिवानी :

prime article banner

इस दुनिया में सबके कर्म और विचार अलग-अलग हैं। जगत में कर्म की ही प्रधानता है। जिनको ये बात समझ आ जाती है वे संतों की शरण में जाकर अपना जीवन संवार लेते हैं जबकि जो ये नहीं समझ पाते वो यूं ही भटका खाते हैं। समझते वो है जो गुरु के स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूपों को समझ लेते हैं। यह सत्संग विचार सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में प्रकट किए। हुजूर महाराज ने कहा कि गुरु रूप को वो ही देख सकता है जिसने पांचों इंद्रियों और पांचों विकारों को जीत लिया है। गुरु की देह तो शगुन रुप है और ये ही शगुन रूप निर्गुण का भेद देता है। निर्गुण रूप विदेह है और जो विदेह है वो तो कण-कण में बसा हुआ है। जब विदेह रूप में परमात्मा हमें हर पल देख रहा है तो फिर हम क्यों गंदे मंदे कामों से नही घबराते।

हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि सतगुरु ने शगुन रूप भी जीव को चेताने के लिए धरा है। सतगुरु चेताते हैं कभी चेतावनी दे कर तो कभी विरह जगा कर। कभी भयानक भाव दिखा कर तो कभी प्रेम जगा कर। रूह जो इस जगत में आकर भटक गईं है उसे उसका असल लक्ष्य जताना ही सतगुरु का कार्य है। आत्मा परमात्मा से इसी प्रकार बिछड़ी हुई है जैसे बून्द बादल से बिछड़ती है।सतगुरु इस आत्मा को परमात्मा से इसी प्रकार मिला देता है जैसे बून्द वापस सागर में समा जाती है। उन्होंने कहा कि हमारी आत्मा हमारे शरीर में वैसे ही सवारी कर रही है जैसे हम कार में सफर करते हैं। हमें बहुत सी वस्तुओं का अहंकार हो जाता है। इस अहंकार को मिटाना आवश्यक है। जिस शरीर का बल का काया का हम अहंकार करते हैं वो शरीर एक बूंद मात्र था जब हम मां के गर्भ में आये थे। परमात्मा ने उसी बून्द को आकार दिया और चौरासी लाख चोलों में से सबसे उत्तम चोला इंसानी चोला दिया।

उन्होंने कहा कि चोला मिला था प्रभु से लग्न जगाने के लिए। मालिक की मौज में रहकर परमात्मा की भक्ति के लिए लेकिन इंसान बल बुद्धि चतुराई में गाफिल हो गया। इसी गफलत में ही वो एक दिन पानी के बुलबुले की भांति फूट जाता है और पछताता है। इस शरीर को इंसान सुख आराम और वैभव के संग्रह का कारण मान लेता है। दो घड़ी के आगे के भविष्य के लिए तो हम इतने चितित रहते हैं लेकिन असल भविष्य को अंधकारमय कर रहे हैं। असल भविष्य तो उस अगत का है जब हम जगत को त्याग कर जाएंगे। उन्होंने पूछा कि हम किस बात का अभिमान करते हैं। जो सूरज अब चढ़ा है वो शाम को ढल जाएगा। सुख दुख में और दुख सुख में बदलेगा। धर्म परीक्षा मांगता है। इस पर चलना बहुत धर्य और साहस का काम है। धर्म पर चलने वाला तो सब कुछ बर्दाश्त करता है। जिसने गुरु को मान लिया उसने बाकी सब कुछ त्याग दिया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.