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पराली प्रबंधन पर किसान सुनील लांबा बने मिसाल

धान की सीधी बिजाई से पानी की बचत और पराली न जलाकर पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में गांव अलखपुरा निवासी किसान सुनील लांबा पिछले पांच वर्षो से लगे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 04:41 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 04:41 AM (IST)
पराली प्रबंधन पर किसान सुनील लांबा बने मिसाल
पराली प्रबंधन पर किसान सुनील लांबा बने मिसाल

राजेश कादियान, बवानीखेड़ा:

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धान की सीधी बिजाई से पानी की बचत और पराली न जलाकर पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में गांव अलखपुरा निवासी किसान सुनील लांबा पिछले पांच वर्षो से लगे हैं। इतना ही नहीं पर्यावरण संतुलन के लिए उन्हें हर वर्ष पराली न जलाने से आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है, लेकिन उन्होंने इसकी कभी भी परवाह नहीं की और पर्यावरण संतुलन के लिए हमेशा ही आगे रहे। सुनील लांबा पिछले लंबे अर्से से प्रति वर्ष 50 से 55 एकड़ भूमि पर धान की फसल पैदा करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे अक्सर फसलों की उचित पैदावार व पौषण के लिए समय-समय पर हिसार स्थित चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों की सलाह लेने जाते हैं। करीब पांच वर्ष पूर्व वे एक वैज्ञानिक के संपर्क में आए तो उन्होंने खेतों में पराली जलाने से उपजाऊ भूमि में होने वाले नुकसान के बारे में उन्हें जानकारी दी। वैज्ञानिक ने बताया कि पराली जलाने से जमीन के पौषक तत्व कम हो जाते हैं और उर्वरा शक्ति भी कमजोर हो जाती है। इससे हर वर्ष पैदावार घट जाती है और धीरे-धीरे भूमि बंजर बन जाती है। इस सलाह पर उन्होंने खेतों में पराली जलाना बंद कर दिया। बाद में उन्हें जानकारी मिली की पराली जलाने से वायु प्रदुषण भी अधिक बढ़ता है और हवा भी जहरीली हो जाती है। उन्होंने बताया कि प्रदुषण से इंसान ही नहीं जीव-जंतू की सेहत पर भी असर पड़ता है। इसी के चलते उन्होंने कभी भी खेतों में पराली न जलाने का संकल्प लिया ताकि वे भी पर्यावरण संतुलन में कुछ हाथ बटा सकें। उन्होंने बताया कि पिछले पांच वर्षों से उन्होंने पराली जलाना बंद कर दिया है। उन्होंने बताया कि वे मजदूरों से पराली की कटाई कराते हैं प्रति एकड़ कटाई के लिए मजदूर करीब 1500 रूपये लेते हैं। कटाई के बाद वे पराली को एकत्रित करते हैं और बाद में उसे 700-800 रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से राजस्थान के व्यापारियों को बेच देते हैं। हालांकि धान की कटाई का खर्चा अधिक है जबकि पराली बेचने से आमदनी कम होती है। इसके बावजुद भी वे पर्यावरण संतुलन के लिए ही यह कार्य कर रहे हैं। साथ-साथ उन्होंने बताया कि फिलहाल पराली जलाने से प्रदुषण में ज्यादा बढौतरी हो रही है इसी के चलते उन्होंने किसानों को जागरूक करने के लिए पर्यावरण सुधार समूह के नाम से एक संस्था भी गठित की है। इस संस्था के वे स्वयं अध्यक्ष हैं। इस संस्था से जिले के कई गांवों के किसानों को जोड़ा गया है और उन्हें इसके माध्यम से पराली न जलाने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके साथ-साथ यह संस्था खास तौर पर सरकार के प्राथमिक स्कूलों की सफाई भी करती है और पौधे भी रोपित करती है।

बॉक्स: किसान सुनील लांबा ने बताया कि वे पराली न जलाने के साथ-साथ पानी की बचत के लिए भी धान की सीधी बिजाई करते हैं। उन्होंने बताया कि धान की सीधी बिजाई से पानी की काफी बचत होती है। सीधी बिजाई से धान की फसल की भूमि को गिला ही रखा जाता है। जबकि पौध से रोपित की गई फसल में पानी का ठहराव रखना पड़ता है। उन्होंने बताया कि सीधी बिजाई से धान की फसल सात-आठ बार पानी लगाने से तैयार हो जाती है। अगर बारिस हो तो पानी की ओर अधिक बचत होती है। जबकि पौध से तैयार की जाने वाली फसल के लिए 26-27 बार पानी लगाना पड़ता है।


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