शिव पुराण कथा में गणेश प्राकट्य पर दिए प्रवचन
भिवानी : कथा प्रवचन केवल किसी को सलाह दे देने की भांति नहीं होने चाहिए। ए
जागरण संवाददाता, भिवानी : कथा प्रवचन केवल किसी को सलाह दे देने की भांति नहीं होने चाहिए। एक प्यासे को पानी की आवश्यकता होती है, उसे केवल पानी पीने की सलाह दे देने मात्र से उसकी प्यास नहीं बुझ जाएगी या फिर उसके सामने पानी का हाइड्रोजन और आक्सीजन का फार्मूला रख देंगे तो भी प्यास नहीं बुझेगी। उसे तो कैसे भी पानी चाहिए, ताकि वह उसे पीकर अपनी प्यास बुझा सके। विशेष रूप से आजकल का व्यस्त जीवन लगभग अस्त-व्यस्त है। सभी को सलाह के साथ समाधान के रूप में सहायता की भी जरूरत है। कोई प्यासा सलाह कब तक सुनता रहेगा। समस्या ग्रस्त व्यक्ति रोज-रोज कथाएं भी कितनी सुनता रहेगा। इसलिए अपेक्षाकृत श्रोताओं की संख्या घट रही है। ये भिवानी श्री गीता कुंज में चल रही श्री महाशिवपुराण कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज ने गणपति प्राकट्य की चर्चा करते हुए कहा।
उन्होंने बताया कि गणेश जी की अग्र पूजा का विधान क्यों बनाया, उन्हें ही ऐसा अधिकार मिला तो क्यों, गणेश कोई कथा वाचन नहीं करते रहे, वस्तुत: वे बोलते कम हैं और उन्होंने क्रियात्मक रूप से करके अधिक दिखाया है। उनकी कृति और आकृति दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। उनकी जुबान के आगे सूंड़ है, उनका पूरा शरीर तो दिखाई पड़ता है। संभवत: जुबान किसी-किसी ने बहुत ही कम देखी होगी। गणेश को अध्यक्ष पद पर केवल भीड़ से जैसे तैसे वोट लेकर नहीं बना दिया गया। उन्हें तो उनकी बुद्धि की परिपक्वता को देखकर अध्यक्ष बनाया गया है। कार्यक्रम में पवन बुवानीवाला ने महाराज का आशीर्वाद प्राप्त किया। सोहन लाल मुंजाल, कैलाश गर्ग, विशंभर अरोड़ा ने भी पूजन किया।