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उम्मीद है खुशहाली, दीये लाएंगे दिवाली

राजेश कादियान बवानीखेड़ा दीपावली पर्व की आहट से ही कुम्हारों को खुशहाली की उम्मीद दि

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 05:29 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 05:29 AM (IST)
उम्मीद है खुशहाली, दीये लाएंगे दिवाली
उम्मीद है खुशहाली, दीये लाएंगे दिवाली

राजेश कादियान, बवानीखेड़ा:

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दीपावली पर्व की आहट से ही कुम्हारों को खुशहाली की उम्मीद दिखने लगी है। अर्से से लाकडाउन का दंश झेल रहे इन परिवारों को उम्मीद है कि मां लक्ष्मी दीपक रोशन के साथ ही इनके जीवन में रोशनी प्रदान करेंगी।

इसके लिए कुम्हार समाज ने तैयारी शुरू कर दी है। दीपावली 14 नवंबर को है। केवल एक माह ही शेष है। उन्हें चिंता है कि लोगों को परेशानी न हो और आय का साधन भी बढ़े।

ग्रामीण इलाकों में आज भी शहरी इलाकों के बजाय पर्व को रोशन करने के लिए दीये को ही महत्व दिया जाता है। चूंकि दीया हमारी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। इसलिए आज गांव के लोग घरों को रोशन करने के लिए मोमबत्ती या इलेक्ट्रॉनिक्स लड़ियों के बजाय दीये पसंद हैं। चीनी लड़ियों का बहिष्कार भी इनकी खुशहाली में चार चांद लगाने के लिए तैयार है।

गांव पुर निवासी करीब 63 वर्षीय करण सिंह ने बताया कि वे पीढ़ी दर पीढ़ी यही काम करते आए हैं। होश संभालने के साथ ही चाक पर मिट्टी के दीये बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले तो हाथ से ही चाक चलाया जाता था, लेकिन आज इसने तकनीकी रूप ले लिया है। उन्होंने बताया कि वे हर वर्ष दीपावली पर्व पर करीब दस हजार मिट्टी के दीयों का निर्माण करते हैं। इसके अलावा छोटी मटकी और करवाचौथ व्रत के लिए मिट्टी के करवों का भी निर्माण करते हैं। उन्होंने बताया कि पहले वे शहरी क्षेत्र में भी मिट्टी के दीये बेचने के लिए जाते थे, लेकिन शहरी क्षेत्रों में मांग कम है। आज भी चल रही अनाज के बदले दीये की प्रथा

उन्होंने बताया कि बड़ा दीया पांच रुपये प्रति दीये के हिसाब से बेचा जा रहा है। इसके अलावा अनाज के बदले भी मिट्टी के दीये बेचे जाते हैं। उन्होंने बताया कि अनाज के बदले दीये बेचने की परंपरा भी वर्षों पुरानी है। उनके पूर्वज तो हमेशा ही अनाज के बदले दीये बेचते थे, लेकिन अब कुछ लोग पैसे देकर भी दीये खरीदने लगे हैं। 50 परिवार दीपावली पर निर्भर

इसी प्रकार बिमला देवी ने बताया कि उनके गांव पुर में करीब 50 परिवार मिट्टी के दीयों का निर्माण करते हैं। उन्होंने बताया कि दीये बनाने के लिए वे आसपास के गांवों के जोहड़ों से मिट्टी लाते हैं। उन्होंने बताया कि उनका परिवार वर्षों से मिट्टी के दीये बना रहा है। मिट्टी के दीये बेचने के लिए उन्हें गांवों में फेरी लगानी पड़ती है। मिट्टी के दीपक ही पवित्र

इसी प्रकार सुरेन्द्र, दलबीर, दीपक, सुरेश और पिल्लू ने बताया कि दीपावली पर्व को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीयों को काफी पवित्र माना जाता है। वे हमारी संस्कृति को कायम रखने के लिए ही इस कार्य में वर्षों से जुड़े हुए हैं। वहीं कस्बा बवानीखेड़ा निवासी 55 वर्षीय महिला राजबाला ने बताया कि वह दीपावली पर्व पर बाजार में मिट्टी के दीये बेचने का काम करती है।


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