प्रकृति के साथ अन्याय करते है उनके लिए प्रभु सजा का प्रावधान भी करता है : कंवर महाराज
जागरण संवाददाता भिवानी परमात्मा ने इंसानियत की परीक्षा पूरी दुनिया में एक साथ ली। कोरोना मह
जागरण संवाददाता, भिवानी : परमात्मा ने इंसानियत की परीक्षा पूरी दुनिया में एक साथ ली। कोरोना महामारी के रूप में परमात्मा ने इंसान को यह चेतावनी भी दी कि जो रास्ते से भटकते हैं प्रकृति के साथ अन्याय करते है उनके लिए प्रभु सजा का प्रावधान भी करता है। इंसान को कष्ट तब उठाना पड़ता है जब वो परमात्मा की रजा के विपरीत चलता है। इंसान परमात्मा की संतान है उसका पहला कार्य भी इंसान की सेवा है। जो संगत की सेवा और सतगुरु के हुक्म में रहता है उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता। सतगुरु आज्ञा में तर्क वितर्क करना आफत को बुलाना है। सुख चाहते हो तो प्रेम प्रीत और सेवा से मुहं ना मोड़ो। यह सत्संग वचन परमसन्त सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने भिवानी के रोहतक रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में उपस्थित सेवादारों को फरमाये। सेवादार दो मार्च को हुजूर कंवर साहेब के जन्मदिवस के अवसर पर होने वाले सत्संग की तैयारियों के लिए सेवा कार्य के लिए जुटे थे। उलेखनीय है कि हर वर्ष गुरु महाराज का जन्मदिन साध संगत धूम धाम से मनाती है। इस अवसर हर हुजूर कंवर साहेब संगत को सत्संग फरमाते हैं।
गुरु महाराज ने कहा कि मैंने सतपुरुष के हुक्म से पूरे कोरोना काल में आपके आत्मिक बल की उन्नति के लिए प्रतिदिन सत्संग की खुराक दी सत्संग हर संकट का समाधान है। कलयुग को पाप युग इसलिए ही कहा जाता है कि हर कोई सत्संग से दूर भाग रहा है। जिसका संग अच्छा नहीं है वो किसी ना किसी प्रकार से दुखी है। कोई मां बाप की सेवा नहीं कर रहा कोई जुबान से किसी का अहित कर रहा है तो कोई किसी के सुख से दुखी है। मन वचन कर्म तीनों से ही इंसान सही नहीं है। ये तीनों तभी ठीक होंगे जब आपकी संगति अच्छी होगी और संगत अगर सतपुरुष की सतगुरु की हो तो कहने ही क्या। उन्होंने सेवा का महत्व बताते हुए फरमाया कि सेवा का भक्ति में बहुत बड़ा महत्व है। हुजूर महाराज ने कहा कि संतों का जीवन इस बात की प्रेरणा देता है कि हमें किसी का अहित करने का ख्याल भी मन में नहीं लाना चाहिए। काल और माया के बंधन को तोड़ना आसान नहीं है काल बड़ी चालाकी से इंसान के क्षणिक सुखों के माध्यम से उसकी बुद्धि को हरता है। इंसान का चोला हमें यही समझ और विवेक धारण करने के लिए मिला है कि हम पूर्ण सन्त सतगुरु को खोज कर उनसे जीवन का अमोल मर्म समझ कर परमात्मा की भक्ति कमानी चाहिए। हुजूर महाराज ने कहा कि परमात्मा तो भक्त के वश में रहते हैं वे तो उस भक्ति को भी मान लेता है जो दुखों की मार से डर कर की जाती है। आप किसी भी तरह करो लेकिन परमात्मा को याद अवश्य करो। आपके अंतर में परमात्मा के प्रति प्रेम विरह और तड़प होनी चाहिए। कितने गीत हम उन भक्तों के गाते हैं जिन्होंने अपने प्रेम से सेवा से और विश्वास से अपने सब काम परमात्मा से करवाये। परमात्मा से प्रीत तब होगी जब आप गुरु से प्रीत करना सीख लोगे। सतगुरु परमात्मा के ही हरकारे हैं। जो भक्त होता है वो दुनिया की किसी रुकावट से नहीं घबराते। जब तक आपके कर्म पवित्र नहीं है,चरित्र अच्छा नही है, घरों में प्यार प्रेम नहीं है,मां बाप की सेवा नहीं है,बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं है तब तक आप कितनी ही भक्ति कर लो कोई फायदा नहीं है।