चरित्रवान नागरिक बनाने के लिए संस्कृत भाषा का पठन पाठन बहुत जरूरी : सदानंद महाराज
जागरण संवाददाता, भिवानी : संस्कार आचरण में होते हैं, आचरण भक्त में होता है। इसलिए हम सभ
जागरण संवाददाता, भिवानी : संस्कार आचरण में होते हैं, आचरण भक्त में होता है। इसलिए हम सभी को भारतीय संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों की रक्षा कर चरित्रवान नागरिक बनाने के लिए संस्कृत भाषा का पठन और पाठन करना चाहिए। बहुत पढ़-लिखकर अनेक उपाधियों से विभूषित होकर भी अनेक विकार मनुष्य के अंदर रह जाते हैं, ऐसे व्यक्ति का आचरण अनुकरणीय नहीं हो सकता, इसलिए सदैव विकार और द्वेष से दूर रहकर ही संस्कृति से संस्कारवान बने मनुष्य का आचरण ही अनुशरण योग्य होता है। यह बात श्रीकृष्ण प्रणामी जनकल्याण ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय संत स्वामी सदानंद महाराज ने आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं संत सम्मेलन में उपस्थित संतों, विद्वानों एवं श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कही। दादरी गेट क्षेत्र स्थित श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर के राधिकाधाम में महामति प्राणनाथ प्राकट्य चतुर्थ शताब्दी महोत्सव के तीसरे दिन सोमवार को हरियाणा साहित्य संस्कृत अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोठी एवं संत सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय संत स्वामी सदानंद महाराज की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर हरियाणा संस्कृत साहित्य अकादमी के निदेशक डा. सोमश्वर ने बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। राष्ट्रीय संगोष्ठी में हरियाणा संस्कृत साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक संस्कृत भाषा के पितामह डा. रामेश्वरदत्त शास्त्री, जिला शिक्षा अधिकारी सुरेश शर्मा, लंदन से डॉ. तिलक चेतन्य, पिहोवा डीएवी कॉलेज के प्राचार्य डा. कामदेव झा, डा. सुधीकांत भारद्वाज, सीबीएलयू हिन्दी विभागाध्यक्ष बाबूराम वक्ता के रूप में मौजूद रहे। राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए हरियाणा संस्कृत साहित्य अकादमी के निदेशक डा. सोमेश्वरदत्त ने कहा कि आज संस्कृत भाषा विश्व भर में अपनी विशेषताओं के लिए प्रचलित हैं। उन्होंने कहा कि विश्व के सबसे बड़े अनुसंधान केन्द्र नाशा ने भी संस्कृत भाषा को वैज्ञानिक एवं कम्प्यूटर के लिए उपयुक्त भाषा माना है। संस्कृत साहित्य अकादमी संस्कृत भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए अहम कदम उठा रही हैं। इस भाषा को जन-जन तक पहुंचाने एवं उसकी महत्ता को समझाने के लिए ही इस तरह के सम्मेलन कर विद्वानों से सुझाव एवं विचार भी आमंत्रित किए जाते हैं, ताकि उन्हें भविष्य में लागू कर नीति बनाकर सुधार के लिए कदम उठाए जा सकें। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति और संस्कार दोनों की जननी भी हैं, इसलिए प्रत्येक मनुष्य में नैतिक मूल्यों और संस्कृति के संस्कार जागृत करने में भी इस भाषा का अहम योगदान रहा है। सम्मेलन में कालींपोंग पंश्चिमी बंगाल से मोहनप्रिय आचार्य महाराज, करनाल से स्वामी जगतराज महाराज, स्वामी मुकुंद शरण महाराज ने भी संस्कृत भाषा एवं उसके विकास पर विस्तार से प्रकाश डाला। जिला शिक्षा अधिकारी रामोतार शर्मा ने कहा कि हरियाणा संस्कृत अकादमी संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए जो योगदान दे रही हैं, उससे नई पीढ़ी में संस्कृति और संस्कारों के ज्ञान का संचार हो रहा है। इसके साथ साथ शिक्षा विभाग भी अपने पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा से स्कूलों के अंदर बच्चों में नैतिक मूल्यों एवं सदाचारी जीवन के साथ साथ अच्छे आचरण की नींव को मजबूत कर रहे हैं। राष्ट्रीय संगोष्ठी में श्रीकृष्ण प्रणामी विश्व परिषद के राष्ट्रीय महासचिव, मीडिया प्रमुख एवं कार्यक्रम संयोजक डा. मुरलीधर शास्त्री ने कहा कि राष्ट्रीय संत स्वामी सदानंद महाराज के सानिध्य में गौ संवर्धन के साथ साथ संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति के उत्थान एवं विकास के लिए अनेक परोपकारी कार्य किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि देशभर में इस तरह की राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं संत सम्मेलनों के जरिए स्वामी सदानंद महाराज देश की भावी पीढ़ी में भारतीय मूल्यों एवं नैतिकता के संचार का मंत्र फूंक राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान दे रहे हैं। राष्ट्रीय संगोष्ठी में हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डा. सोमेश्वरदत्त सहित वक्ताओं का श्रीकृष्ण प्रणामी जनकल्याण ट्रस्ट की ओर से अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर ट्रस्ट के समस्त पदाधिकारियों एवं श्रद्धालुओं का अहम योगदान रहा। संगोष्ठी में तिगड़ाना स्कूल के प्राचार्य डा. अनिल गौड़ ने भी संस्कृत भाषा पर अपना वक्तव्य दिया।