मां-बाप से बढ़कर परमात्मा का भी दर्जा नहीं : कंवर महाराज
जागरण संवाददाता भिवानी दुनियादारी के लोग जन्म दिवस को पूरे हर्ष और आनंद से मनाते तो हैं
जागरण संवाददाता, भिवानी : दुनियादारी के लोग जन्म दिवस को पूरे हर्ष और आनंद से मनाते तो हैं लेकिन इस हर्ष में ये भूल जाते हैं कि हमने इस अनमोल जीवन का प्रभु की भक्ति के बिना और एक वर्ष कम कर लिया। जन्म दिवस हर्ष उल्लास का नहीं बल्कि चेतावनी का विषय है कि अब भी चेत जा और परमात्मा का भजन करें। यह सत्संग विचार सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने रोहतक रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। वह अपने 74वें जन्मदिवस पर एकत्रित संगत में सत्संग फरमा रहे थे।
उन्होंने कहा कि इंसान का चोला बहुत बहुमूल्य है। इसके लिए तो देवी देवता भी तरसते रहते हैं। इंसान का जीवन क्षणभंगुर भी है। कोई साथ नहीं जाएगा सब शमशान तक के साथी हैं फिर किसके लिए पाप कमाते हो। उन्होंने फरमाया कि बाहर भटकना छोड़ कर अपने घर में बैठे परमात्मा की सेवा करो। मां-बाप से बढ़कर परमात्मा का भी दर्जा नहीं है। गुरु का भी वही हो पाता है जो मां बाप का होता है।
उन्होंने कहा कि गुरु को माथे से मत उतरने दो क्योंकि यदि गुरु एक पल के लिए भी माथे से उतर गया तो समझो काल ने अपनी घेरी डाल ली। लाख कहानी किस्से याद कर लो कोई फायदा नहीं फायदा तभी होगा जब आप में सूझ समझ विवेक जागृत हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस अनमोल जीवन की पूंजी यदि हमने यू हीं बर्बाद कर दी तो ये अवसर फिर नहीं आएगा। संतों की संगत यदि आधी घड़ी की भी मिल जाए तो वो इतनी कीमती है कि उसका मोल नहीं लगाया जा सकता। गुरु हमें यही वचन फरमाते हैं कि मन वचन और कर्म से किसी को पीड़ा ना पहुंचाओ। परोपकार करो और इसकी शुरूआत अपने घर से करो। घर में बैठे माता-पिता इस दुनिया के हर देवी देवता से बढ़ कर हैं। गुरु की शरण में भी वही जाते हैं जिनके संस्कार अच्छे हैं। संस्कार उसके अच्छे होंगे जिसने अपने मां बाप के वचन को माना है। कंवर महाराज ने कहा कि ऐसी करनी करके जाओ कि जब आप इस जगत से जाओ तो भी आपके गीत गाए जाएं। अपनी वाणी को ऐसी बनाओ कि वो औरों की भी पीड़ा हर ले। शब्द-शब्द में भेद है और शब्द-शब्द में भाव है लेकिन जो उस शब्द को खोलता है वो सन्त है। हुजूर साहेब ने कहा कि राजा, न्यायाधीश और सतगुरु किसी जाति धर्म वर्ग क्षेत्र के नहीं होते वे तो सबके होते हैं। अगर ये तीनों भेदभाव करते हैं तो समझो उनमें इन पदों का सम्मान करने की योग्यता नहीं है। महाराज ने कहा कि यदि गुरु ही शिष्य को भरमाएगा तो उसे बचा भी कौन सकता है। इसी तरह शिष्य को भी गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भक्ति एक ऐसे ऊंचे फल की भांति है जिसे कोई बिरला पंछी ही खा सकता है। भक्ति इस जगत का सबसे बड़ा सुख है। महाराज ने कहा कि नेक इंसान की संगत करो। इच्छाओं और तृष्णाओं को काबू करो। बड़े बुजुर्गों की कद्र करो। बच्चों को अच्छी शिक्षा दो।